वंदे मातरम गाने वाले क्या सब देशभक्त ही हैं?

वंदे मातरम को जो न गाए, उसे देशद्रोही कहना भी उचित नहीं, क्योंकि जो नहीं गाता है, वह गलतफहमी का शिकार है, गलत कर्मों का नहीं। जो गाते हैं, क्या वे सब देशभक्त ही हैं?

वंदे मातरम को लेकर फिर बहस छिड़ गई है। मेरठ, इलाहाबाद और वाराणसी की नगर निगमों के कुछ पार्षदों ने इस राष्ट्रगान को गाने पर एतराज किया है। इसे वे इस्लाम-विरोधी मानते हैं। उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यह सोच चिंता का विषय है। मुझे पता नहीं कि योगीजी को वंदे मातरम के इतिहास की कितनी जानकारी है लेकिन वे चाहें तो अपने देश के मुसलमान भाइयों से दो-टूक शब्दों में कह सकते है कि वंदे मातरम इस्लाम-विरोधी बिल्कुल नहीं है।

मुस्लिम लीग के मौलानाओं ने कांग्रेस का विरोध करने के लिए इस राष्ट्रगान की आड़ ली थी। उन्हें दो शब्दों पर सबसे ज्यादा एतराज था। वंदे और मातरम्! उनका तर्क यह था कि इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी और की पूजा नहीं हो सकती। यह गान माता की पूजा की बात कहता है। माता भी कौन-सी? पृथ्वी। जो जड़ है। इस्लाम तो जड़-पूजा (बुतपरस्ती) के विरुद्ध है। जड़-पूजा से बड़ी काफिराना हरकत और कौनसी हो सकती है?

यहां मैं अपने मुसलमान भाइयों को बताऊं कि भारत को माता कहा गया है। ईश्वर नहीं। वंदे-मातरम में भारत के जलवायु, फल-फूल, नदी-पहाड़, सुबह-शाम और शोभा-आभा की प्रशंसा की गई है। किसी खास औरत की पूजा नहीं की गई है। वह कोई हाड़-मासवाली माता नहीं है। वह एक कल्पना भर है। यह कल्पना कई इस्लामी राष्ट्रों ने भी की है। अफगानिस्तान में इसे ‘मादरे-वतन’ क्यों कहते हैं? कम्युनिस्टों के जमाने में उसे वे ‘पिदरे-वतन’ कहते थे। 

बांग्लादेश के राष्ट्रगीत में मातृभूमि का जिक्र चार बार आया है। इंडोनेशिया, सउदी अरब और तुर्की के राष्ट्रगीतों में भी मातृभूमि के सौंदर्य के गीत गाए गए हैं। जहां तक ‘वंदे’ शब्द का सवाल है, संस्कृत की ‘वंद्’ धातु से यह शब्द बना है, जिसका अर्थ है- प्रणाम, नमस्कार, सम्मान, प्रशंसा, सलाम! कहीं भी इसका अर्थ पूजा करना नहीं है। बुत की पूजा जरूर हो सकती है लेकिन बुत तो उसी का होता है, जिसके नैन-नक्श हों, रंग-रूप हों, हाथ-पैर हों, जन्म-मृत्यु होती हों। राष्ट्र में तो ऐसा कुछ नहीं होता है। यदि कोई भारत माता की मूर्ति या चित्र बना दे और उसकी पूजा करता है तो उसे करने दो। आप मत कीजिए। मशहूर शायर अल्लामा इक़बाल ने क्या खूब लिखा है-

पत्थर की मूरत में तू समझा

है, खुदा है।

खाके-वतन का मुझको हर

जर्रा देवता है।।

‘वंदे मातरम’ में सारे राष्ट्र की भूमि को देवी कहा गया है जबकि इकबाल ने मातृभूमि के हर कण को देवता बना दिया है। क्या इकबाल मुसलमान नहीं थे या उन्हें इस्लाम की समझ नहीं थी? इस्लामी शायरों और विचारकों में उनका स्थान सबसे ऊंचा है। वंदे मातरम को जो न गाए, उसे देशद्रोही कहना भी उचित नहीं, क्योंकि जो नहीं गाता है, वह गलतफहमी का शिकार है, गलत कर्मों का नहीं। जो गाते हैं, क्या वे सब देशभक्त ही हैं? सब गाएं, इसके लिए जरूरी है कि प्रेम और तर्क से गलतफहमियों को दूर किया जाये।

उत्तर प्रदेश में सुरक्षा को लेकर हमेशा प्रश्न चिह्न लगते रहे हैं और बात जब बहन और बेटी की सुरक्षा को लेकर की जाती है, तो खुद प्रशासन के मुह पर भी ताला लग जाता है। हर बार की बात है चुनावों के दौरान महिलाओं की सुरक्षा को ही मुद्दा बनाया जाता है, और सरकार सत्ता में आते ही अपने वादों को भूल जाती है। क्या महिलाओं को अपनी सुरक्षा के लिए भी भीख मांगनी पड़ेगी? क्यों असुरक्षा की भावना उसको हमेशा घेरे रहती है? इस असुरक्षा की भावना और लगातार होते अत्याचार, छेड़-छाड़ की घटना और बलत्कार जैसे जघन्य अपराधों से कब तक उत्तर प्रदेश की महिलांए हमेशा ही असुरक्षित महसूस करती रहेंगी?

डॉ. वेद प्रताप वैदिक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़