बिहार टॉपर्स घोटाले से शिक्षा व्यवस्था की पोल खुली
बिहार टॉपर्स घोटाले ने एक बार फिर देश में शिक्षा व्यवस्था की पोल−पट्टी खोलने का काम किया है। इस घोटाले से एक बार फिर साफ हो गया है कि देश में शिक्षा माफियाओं का तंत्र कितना मजबूत और संगठित है।
महान दार्शिनक एवं शिक्षाविद् डॉ. राधाकृष्णन मनुष्य को सही अर्थों में मनुष्य बनाने के लिए शिक्षा को सर्वाधिक आवश्यक मानते थे। उनके अनुसार− 'शिक्षा वह है, जो मनुष्य को ज्ञान प्रदान करने के साथ−साथ उसके हृदय एवं आत्मा का विकास करती है। शिक्षा व्यक्ति को स्वयं के विकास के साथ−साथ समाज और राष्ट्र के विकास के लिए भी प्रेरित करती है।' वास्तव में शिक्षा ही किसी भी समाज के उत्थान का वास्तविक पैमाना होती है। कोई भी देश या समाज बीमार शिक्षा व्यवस्था के बलबूते आगे नहीं बढ़ सकता। नकल यानी ज्ञान की चोरी करने वाला अथवा चोरी के सहारे डिग्रियां बटोरने वाला देश और समाज विकास का ठीक−ठीक सपना भी नहीं देख सकता। बिहार टॉपर्स घोटाले ने एक बार फिर देश में शिक्षा व्यवस्था की पोल−पट्टी खोलने का काम किया है। इस घोटाले से एक बार फिर साफ हो गया है कि देश में शिक्षा माफियाओं का तंत्र कितना मजबूत और संगठित है। शिक्षा माफियाओं और सरकारी तंत्र का गठजोड़ शिक्षा व्यवस्था पर पूरी तरह काबिज और हावी है। इस सच्चाई से मुंह नहीं फेरा जा सकता है। परीक्षाओं में नकल देश की वो तल्ख हकीकत है जिसमें सिर्फ विद्यार्थी ही नहीं बल्कि घर से लेकर स्कूल तक और अभिभावक से लेकर अधिकारी तक सभी बराबर के जिम्मेदार हैं।
बिहार टॉपर्स घोटाले ने देशभर को हैरान तो किया है। वहीं बिहार की छवि को धूमिल करने का काम भी किया है। टॉपर्स घोटाला समूची शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करता है। जिनकी काबिलियत उन्हें परीक्षा में पास करने योग्य नहीं बताती उन्होंने अंक बटोरने में पूरे प्रदेश के छात्रों को पीछे छोड़ दिया। शिक्षा माफियाओं और सरकारी तंत्र का गठजोड़ शिक्षा व्यवस्था की रीढ़ तोड़ने का काम कर रहा है। ऐसे में अहम सवाल यह है कि क्या दोषी ये बच्चे हैं या फिर ये बच्चे खुद उस व्यवस्था का शिकार हैं जिसने अपने फायदे के लिए इन्हें अंधकार से भरे भविष्य की ओर धकेल दिया है। वहीं सवाल यह भी है कि क्या टापर्स को मासूम समझकर छोड़ दिया जाए। क्या टापर्स को मालूम नहीं था कि वो जो कुछ कर रहे हैं वो गलत और कानून के खिलाफ है। क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था टॉपर्स के नाम पर रटन्तु तोतों या किताबी कीड़ों को पैदा कर रही है। बोर्ड परीक्षाओं में नकल क्यों होती है, सवाल यह महत्वपूर्ण है। क्या कुछ ऐसा नहीं हो सकता कि नकल के बिना विद्यार्थी में परीक्षा देने की ललक पैदा हो सके? वहीं सवाल यह भी है कि वो कौन हैं जिन्होंने देश के भविष्य को ऐसा नुकसान पहुंचाया है जिसकी भरपाई करने में कई वर्ष लगेंगे। देखा जाए तो नकल शिक्षार्थियों पर उनकी इच्छा, रुचि एवं नैसर्गिक गुणों के विरुद्ध लादी हुई शिक्षा व्यवस्था का परिणाम है।
यूपी में पॉलीटेक्निक प्रवेश परीक्षा में भी बिहार बोर्ड की परीक्षा में टॉप करने वाले परीक्षार्थियों की झलक दिख रही है। सामूहिक नकल की आशंका के बाद संयुक्त प्रवेश परीक्षा परिषद में बयान के लिए बुलाए गए टॉपर्स की पोल सामान्य टेस्ट में ही खुल गई। पॉलीटेक्निक की प्रवेश परीक्षा में टॉप करने वाले परीक्षार्थी हिंदी में 'बुद्धं शरणं' नहीं लिख पाए। वहीं, अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई करने का दावा करने वाला एक अन्य टॉपर अपने रोल नंबर की स्पेलिंग तक नहीं लिख सका। टॉपर ने रोल नंबर '8' की स्पेलिंग ए टी ई लिखी। अंग्रेजी में '70' की स्पेलिंग भी वह सही नहीं लिख पाया। अब इन सभी टॉपर्स का रिजल्ट रद्द करने के साथ ही परीक्षा केंद्र प्रभारी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जाएगी।
अंग्रेजी कैलेण्डर के तीसरे महीने मार्च को नकल का महीना कहा जाए तो कोई बुराई नहीं होगी, असल में मार्च महीने की शुरुआत देशभर में बोर्ड परीक्षाओं से होती है। दसवीं और बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं के दौरान देश के लगभग सभी राज्यों में नकल माफिया पूरी तरह एक्टिव मोड में आ जाते हैं। वो अलग बात है कि हिन्दी पट्टी के राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश में नकल की खबरें अधिक प्रकाश में आती हैं। बिहार और उत्तर प्रदेश के नकल माफिया तो देशभर में कुख्यात हैं। हर वर्ष दसवीं व बारहवीं की बोर्ड परीक्षाओं में हजारों छात्र अनफेयर मीन्स केस (यूएमसी) में बुक होते हैं बावजूद इसके नकलबाजों और नकल माफियाओं के हौसले पस्त होने की हद दर्जे तक बढ़े हुए हैं। बिहार में प्रतिभा की कमी नहीं है। युवाओं ने सफलता के तमाम झंडे गाड़े हैं। सिविल सेवा की परीक्षाओं से लेकर तमाम प्रतियोगिता परीक्षाओं में बिहार के होनहार छात्रों ने बेहतर उपस्थिति दर्ज कराई है। लेकिन अब उसी बिहार में टॉपर को लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं। सरकार और पुलिस प्रशासन को टॉपरों के खिलाफ कार्रवाई करनी पड़ रही है, टॉप कराने के लिए पैसों का खुला खेल खेले जाने का पर्दाफाश हुआ है।
यूपी, बिहार में तो नकल माफिया छात्रों को परीक्षा पास कराने के लिए लाखों का ठेका लेते हैं और मार्च के महीने में प्रदेश में नकल की मंडी सज जाती है। सरकार नकल माफियाओं पर नकेल कसने के लाख दावे और प्रपंच करती है और परीक्षा शुरू होते ही 'व्यवस्था थोथी, खुली नकल की पोथी' की पुरानी पटकथा दोहराई जाती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या स्कूलों में छात्रों को पूरी पढ़ाई नहीं कराई जाती है कि वो अपने बलबूते परीक्षा दे पायें। क्या पाठयक्रम छात्रों के मानसिक स्तर से ऊपर है। क्या स्कूलों में योग्य शिक्षकों की कमी है। क्या छात्र नकल के बिना परीक्षा पास होने के काबिल नहीं हैं। नकल छात्रों की मजबूरी है या फिर वो खुद इस कृत्य में शामिल हैं। क्या वर्तमान शिक्षा का ढांचा और प्रणाली छात्रों को नकल के लिए प्रेरित करती है। क्या नकल अधिक अंक पाने का शार्ट कट है। क्या व्यवस्थागत दोष नकल माफियाओं को आक्सीजन प्रदान करती है। क्या शिक्षा माफिया, सफेदपोश नेता और सरकारी मशीनरी की तिगड़ी मोटी कमाई के चक्कर में व्यवस्था को पंगु बनाये हैं। ये वो तमाम सवाल हैं जिन पर व्यापक विमर्श की आवश्यकता है।
नकल माफियाओं की पकड़ इतनी मजबूत है कि हर साल वो ब्लैक लिस्टेड परीक्षा केंद्रों को सूची में शामिल करवाने में कामयाब हो जाते हैं। जिलों में मनचाहे कॉलेजों को बोर्ड परीक्षा का केंद्र बना कर उगाही की जमीन तैयार की जाती है। अव्वल तो यह है कि दर्जनों परीक्षा केंद्र ऐसे हैं जिसमें परीक्षार्थियों के बैठने की जगह तक नहीं है। परीक्षा के समय ही यह कालेज खुलते हैं जबकि बाकी समय कॉलेजों को भैंसों का तबेला बना दिया जाता है। जनवरी−फरवरी से ही शिक्षा माफिया परीक्षाओं की तैयारी में जुट जाते हैं। प्रैक्टिकल के नाम पर वसूली कर चुके शिक्षा माफिया अब परीक्षा में भी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। यूपी और बिहार में तो अधिकतर स्कूलों में छात्रों के बैठने के लिए फर्नीचर तक नहीं था। शिक्षा माफिया किराए के फर्नीचर का जुगाड़ करके काम चला रहे हैं। शिक्षा माफिया हाई स्कूल बोर्ड की परीक्षाओं से लेकर मेडिकल, इंजीनियरिंग समेत विभिन्न परीक्षाओं में नकल का ठेका लेने का काम करते रहे हैं। 'मुन्ना भाइयों' की धरपकड़ की कोशिश में कभी−कभार कोई गिरोह पकड़ लिया जाता है मगर उसके बाद वह कब बरी हो जाता है, किसी को पता नहीं चलता। तब तक अगले साल की परीक्षाएं आ जाती हैं और नए सिरे से वही कवायद शुरू हो जाती है। कुल मिलाकर स्थिति में कुछ बुनियादी फर्क नहीं पड़ता।
सरकार के पास बहानों की कमी नहीं है। असल में मोटी कमाई के फेर में शिक्षा विभाग और सरकारी मशीनरी सब कुछ जानते हुए भी आंखें बंद किये रहती है। सरकारी स्कूलों में शिक्षक अक्सर डयूटी से गायब रहते हैं वहीं नियमित प्रशिक्षण के अभाव में वो पूरा पाठयक्रम पढ़ाने में सक्षम नहीं हैं। ऐसे में छात्र परीक्षा पास करने के लिए टयूशन, जुगाड़ या फिर नकल माफियाओं की ओर अग्रसर होता है। इसमें पढ़ाई के प्रति संजीदा और काबिल छात्रों को बड़ा नुकसान होता है। सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद सरकारी स्कूलों में हालत बद से बदतर होते जा रहे हैं। यूं तो सरकारी स्कूलों में खामियां काफी हैं लेकिन अब सवाल बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा पर उठाया जा रहा है। पर कड़वी सच्चाई यह भी है कि आजादी के सात दशकों में भी हमारे नीति निर्माता स्वायत्त शिक्षा व्यवस्था नहीं बना सके हैं।
शिक्षा क्षेत्र में आए दिन नए−नए नियम बनाकर व्यवस्था से खिलवाड़ करने की बजाय बुनियादी बदलाव लाकर शिक्षा व्यवस्था का स्तर ऊंचा किया जाना चाहिए। शिक्षा की साधारण परिभाषा है 'विद्यार्थी का सर्वांगीण विकास' परंतु वर्तमान शिक्षा अपने उद्देश्य से भटक गई है। जहां शिक्षा में सीखने पर अधिक जोर दिया जाना चाहिए, वहां वर्तमान शिक्षा परीक्षा पर आधारित हो चुकी है। सिर्फ अच्छे अंक लाना किसी छात्र के भविष्य को तब तक सुरक्षित नहीं बना सकता है जब तक कि उसे विषयों की गहन जानकारी न हो। प्रतियोगी परीक्षाओं में ऐसे छात्र फिसड्डी साबित हो जाते हैं और अपनी योग्यता के बल पर उनसे कम अंक प्राप्त किये छात्र बाजी मार ले जाते हैं। छात्रों को उसकी रुचि के अनुसार ही उसे विशेष क्षेत्र में दक्षता दी जानी चाहिए। मगर हमारी शिक्षा प्रणाली में यह संभव ही नहीं। इसलिए लादी हुई किताबें विद्यार्थियों पर बोझ बन जाती हैं। उस बोझ को वे नकल और अन्य तरीकों से हलका करना चाहते हैं। शिक्षा में पनपने वाली अनैतिकता एवं अशुचिता को रोकने के लिए आवश्यक है कि शिक्षा व्यवस्था में मौलिक परिवर्तन किया जाए। अगर सरकार नकल रहित परीक्षाएं करवाना चाहती है तो उसे कार्य संस्कृति में बदलाव करना होगा वरना हर साल देश में बढ़ती नक्कालों की फौज का रोक पाना संभव नहीं होगा।
अन्य न्यूज़