कावेरी विवाद में जानबूझ कर तमाशबीन बनी हुई हैं भाजपा और कांग्रेस

BJP and Congress keep distance from the Cauvery dispute

राष्ट्रीय दल इस मुद्दे से इसलिए भी दूर हैं कि यदि इसमें सीधे हाथ डालेंगे तो दूसरे राज्यों में भी ऐसे ही विवाद उत्पन्न होंगे, जहां इन्हीं दलों की सरकारें हैं। ऐसे में दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दल तमिलनाडू में चल रहे राजनीतिक नाटक को लेकर तमाशबीन बने हुए हैं।

तमिलनाडू में राजनेता मतदाताओं का जितना भावनात्मक शोषण करते हैं, वैसा शायद ही देश के अन्य किसी राज्य में हो। खासतौर से फिल्मी सितारों से नेता बने नायक अपनी राजनीति चमकाने के लिए शोषण का कोई मौका नहीं छोड़ते। इससे बेशक कानून−व्यवस्था पटरी से उतरे या फिर राज्य और देश का नुकसान हो। इसकी किसी को चिंता नहीं है। चिन्ता है तो इस बात की कि चुनाव में सत्ता कैसे हथियाई जाए। जबकि सभी मतदाताओं के हितैषी होने का दम भरते हैं।

ताजा विवाद का विषय है, कावेरी जल प्रबंधन बोर्ड के गठन का। सुप्रीम कोर्ट ने इसका आदेश दिया है। केन्द्र सरकार को इसका गठन करना है। बस यही मुद्दा तमिलनाडू की राजनीति में तूफान लाया हुआ है। ऐसा नहीं है कि इसके गठन में देरी से तमिलनाडू का तात्कालिक कोई भारी नुकसान हो रहा हो। कावेरी पानी का मुद्दा कर्नाटक और तमिलनाडू के किसानों से जुड़ा है। सभी दल किसानों के वोट बैंक को हथियाने के हथकंडे अपनाते रहे हैं। वैसे तो तमिलनाडू में गाहे−बेगाहे राजनीतिक झंझावात आते रहते हैं, मुद्दा चाहे कोई भी हो। नेता−अभिनेता उन्हें भुनाने के इंतजार में रहते हैं।

भाजपा और कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टियों को छोड़ कर सभी क्षेत्रीय पार्टियां कावेरी बोर्ड गठन के मुद्दे पर स्वार्थ की रोटियां सेक रही हैं। इनका जनाधार यहां कमजोर है। हाल में राजनीतिक दल बनाने वाले कमल हसन ने कावेरी बोर्ड मुद्दे का आगाज किया है। कमल हसन ने आईपीएल की टीम चेन्नई किंग्स-11 के खिलाड़ियों को खेलने पर गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है। कावेरी बोर्ड गठन को प्रदेश के स्वाभिमान से जोड़ते हुए चर्चित तमिल अभिनेता रजनीकांत भी इसमें कूद पड़े। रजनीकांत इस मुद्दे की आड़ में अपनी राजनीतिक नींव मजबूत कर रहे हैं। रजनीकांत ने खिलाड़ियों को काली पट्टी बांध कर खेलने की हिदायत दी है। इन दोनों तमिल सुपर स्टार के कावेरी मामले में पड़ने से दूसरे क्षेत्रीय अभिनेता और फिल्म एसोसिएशन भी साथ दे रही हैं।

इन दोनों अभिनेताओं को खेल से होने वाले मनोरंजन से तमिलनाडू का स्वाभिमान भंग होने का खतरा दिख रहा है। अपनी फिल्मों की कमाई से नहीं। फिल्मों से करोड़ों कमाने वाले अभिनेताओं को सिनेमा के जरिए मनोरंजन से कोई ऐतराज नहीं है। आईपीएल के मैचों से ऐतराज है। इनकी फिल्में बॉक्स पर सुपरहिट रही हैं। इनसे तगड़ी कमाई हो रही है। आश्चर्य की बात तो यह है कि चेन्नई सुपरकिग्ंस पर मैच फिक्सिंग को लेकर दो साल तक प्रतिबंध रहा है। इसे तमिलनाडू के स्वाभिमान को ठेस लगने का मुद्दा नहीं माना गया। इस मुद्दे पर किसी नेता−अभिनेता ने उंगली तक नहीं उठाई। कमल हसन नए राजनीतिक दल के गठन के बाद बेशक भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज उठाने की बात करते हों, किन्तु इससे पहले किसी ने भी तमिलनाडू में भ्रष्टाचार का मुद्दा पूरी शिद्दत से नहीं उठाया।

दिवंगत मुख्यमंत्री जयललिता के सामने तो ये सारे अभिनेता घिघियाते नजर आते थे। जबकि उस दौरान प्रदेश में भ्रष्टाचार चरम पर था। दरअसल नेता हों या अभिनेता, सबको पता है कि भ्रष्टाचार से लड़ना आसान नहीं है। राजनीति दल हों या सरकारी मशीनरी, भ्रष्टाचार सबकी रगों में बह रहा है। जबकि दूसरे सतही मुद्दों पर राजनीति आसानी से चमकाई जा सकती है। दिवंगत पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता को भ्रष्टाचार के मामले में सजा मिली। जयललिता के सामने सभी नेता बौने साबित हुए। इसलिए किसी का आवाज मुखर करने का साहस नहीं हुआ। जयललिता की सहेली शशिकला इसी आरोप में सजा भुगत रही है।

तमिलनाडू में जयललिता के निधन के बाद एक तरह का राजनीतिक शून्य पैदा हो गया है। नए पुराने नेता−अभिनेता और उनके दल जयललिता की साख को भुनाने की पुरजोर कोशिश में लगे हुए हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो अम्मा जैसी हैसियत बनाने की रस्साकसी में लगे हुए हैं। जयललिता के बाद बिखरे हुए वोट बैंक पर सबकी निगाहें लगी हुई हैं। बस कोई मुद्दा हाथ लगना चाहिए, अपनी सैल्यूलाइड छवि को भुनाने का मौका अभिनेता हाथ से नहीं जाने देना चाहते। वैसे भी तमिलनाडू में सिनेमा और राजनीति का लंबा इतिहास रहा है। जयललिता ने इसी छवि को भुनाया और लंबे अर्से तक राज किया। जयललिता ने किसी को सत्ता के आस−पास फटकने तक नहीं दिया। उसके सामने सारे अभिनेता नतमस्तक रहते थे।

आजादी के बाद से फिल्मी सितारे अपनी महत्वकांक्षाओं की पूर्ति राजनीति के सहारे करते रहे हैं। रजनीकांत और कमल हसन इसी कड़ी का हिस्सा हैं। ऐसा भी नहीं है कि कर्नाटक और तमिलनाडू में कावेरी नदी का विवाद नया हो। इस पर दोनों ही प्रदेशों में जमकर राजनीतिक तमाशे हुए हैं, जो अब भी चल रहे हैं। नदी जल बंटवारे को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से पहले तमिलनाडू और कर्नाटक में बंद की राजनीति हुई। दोनों ही प्रदेशों के राजनीतिक दल इस मुद्दे के जरिए सत्ता पाने के ख्वाब संजोए बैठे हैं। इस पर जितना उबाल तमिलनाडू में हैं, उतना कर्नाटक में नहीं है। कारण भी साफ है। कर्नाटक में राष्ट्रीय पार्टियों का वर्चस्व है। जबकि तमिलनाडू में क्षेत्रीय दल सत्ता की बंदरबांट के इंतजार में हैं। राष्ट्रीय दल इस मुद्दे से इसलिए भी दूर हैं कि यदि इसमें सीधे हाथ डालेंगे तो दूसरे राज्यों में भी ऐसे ही विवाद उत्पन्न होंगे, जहां इन्हीं दलों की सरकारें हैं। ऐसे में दोनों प्रमुख राष्ट्रीय दल तमिलनाडू में चल रहे राजनीतिक नाटक को लेकर तमाशबीन बने हुए हैं। इसके अलावा भी कांग्रेस और भाजपा तमिलनाडू में राजनीतिक आधार मजबूत करने की फिराक में हैं। क्षेत्रीय दलों से गठबंधन इनकी मजबूरी है। ऐसे में कावेरी मुद्दे पर सीधे कूदना इन्हें घाटे का सौदा नजर आ रहा है। जबकि क्षेत्रीय दलों ने इसे सत्ता प्राप्ति की दिशा में महत्वपूर्ण दांव बनाया हुआ है। यह दांव कितना सफल होता है, या खाली जाता है, इसका निर्णय तो चुनावों के बाद ही होगा किन्तु तब तक कावेरी में बहुत सारा राजनीति का प्रदूषित जल बह चुका होगा।

-योगेन्द्र योगी

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