पंजाब में दलित को मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस ने चली है तगड़ी चाल

Charanjit Singh Channi
अशोक मधुप । Sep 20 2021 1:29PM

कैप्टन अमरिंदर सिंह के त्यागपत्र के बाद उन्हें लग गया था कि मुख्यमंत्री बनेंगे, किंतु अंतिम समय में पार्टी ने उनको भी यह कह कर पटकनी दे दी कि वह पार्टी के प्रदेश अध्य्क्ष हैं, इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता।

नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन अमरिंदर सिंह की लड़ाई में कांग्रेस ने इन दोनों को किनारे कर के चुपचाप जो तुरुप का पत्ता फेंका है, वह पार्टी में नई जान डाल सकता है। यदि पार्टी ने इसे ढंग से कैश किया तो पंजाब ही नहीं पूरे देश में ये लाभकर होगा। पार्टी अपने से काफी पहले छिटके दलित वोट को फिर से जोड़ सकती है। कांग्रेस की ये चाल जोरदार है। यह भविष्य बताएगा कि वह इसका कितना लाभ उठा पाएगी।

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पंजाब में नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच चल रहे विवाद में कांग्रेस ने जिस तरह से नवजोत सिंह सिद्धू को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया था, उससे लग गया था कि कांग्रेस  कैप्टन अमरिंदर सिंह के पर कतरने में लग गई है। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने समय की नजाकत को नहीं पहचाना। उधर सिद्धू को कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद लगने लगा था कि वे पार्टी के अगले पंजाब के मुख्यमंत्री होंगे। उन्होंने इसके लिए गोट बिछानी शुरू की। वे अपनी रणनीति में कैप्टन को पैदल करने में कामयाब हो गए पर कांग्रेस के चरित्र को नहीं पहचान पाए। वे ये नहीं समझ पाए कि पार्टी का ऊपरी नेतृत्व क्या सोच रहा है?

कैप्टन अमरिंदर सिंह के त्यागपत्र के बाद उन्हें लग गया था कि मुख्यमंत्री बनेंगे, किंतु अंतिम समय में पार्टी ने उनको भी यह कह कर पटकनी दे दी कि वह पार्टी के प्रदेश अध्य्क्ष हैं, इसलिए उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया जा सकता। कांग्रेस के पंजाब के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच जिस तरह तल्ख रिश्ते बन गए थे, उससे स्पष्ट हो गया था कि कैप्टन अमरिंदर सिंह को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ेगा। अपने हाथ से कुर्सी जाते देख उन्होंने अपने सबसे बड़े विरोधी पार्टी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को किनारे करने की ठान ली। कहना शुरू कर दिया था वह पाकिस्तान परस्त है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष से उनके नजदीकी रिश्ते हैं। लगता था कि जिस तरह से सिद्धू तेजी कर रहे थे, पार्टी को भी उनकी तेजी खल रही थी। पार्टी ने अंदर ही अंदर तय कर लिया था कि उन्हें भी मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी।

कैप्टन ने कांग्रेस विधायक दल की मीटिंग में चरणजीत चन्नी का नाम प्रस्तुत कर सिद्धू के सपने ध्वस्त कर दिए और पार्टी को एक ऐसा मुख्यमंत्री दे दिया जो काफी पहले पार्टी से छिटके दलित वोट को जोड़ सकता है। पंजाब में काफी संख्या में लगभग 32 प्रतिशत दलित मतदाता हैं। वह राजनीति की मुख्य धुरी से दूर ही रहे। पंजाब की राजनीति पर सवर्ण सिखों का कब्जा रहा। वे राजनीति पर हावी रहे। फिर चाहे वह स्वर्ण मंदिर की राजनीति हो, या पंजाब प्रदेश का नेतृत्व दोनों पर उनका वर्चस्व रहा। पंजाब में कांग्रेस ने इस बार एक दलित को मुख्यमंत्री बना कर शतरंज की बाजी की शानदार चाल चली है। इससे वह पंजाब के दलित वोट को अपने से जोड़ सकती है। यह कार्य कितना कर पाएगी, यह तय करेगा, लेकिन चाल बहुत अच्छी है। कोशिश बहुत जानदार है।

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पंजाब के दलित वोट बैंक को अब तक अकाली दल और भाजपा साधने में लगे हुए थे। इनके विकास के लिए वायदे कर रहे थे। पंजाब के दलित वोटों को साधने के लिए अकाली दल ने बसपा से गठबंधन किया था। उसने कहा था कि वह मुख्यमंत्री के साथ दो उपमुख्यमंत्री भी बनाएगी। इनमें से एक उपमुख्यमंत्री दलित समाज से होगा। भाजपा दलित को जोड़ने में लगी हुई है। उसने संगठन में इस समाज के पदाधिकारी बनाये हैं। यह भी चर्चा रही कि वह दलित मुख्यमंत्री बनाने की बात पर विचार कर रही थी। ये सोचते, विचार करते रहे गए और कांग्रेस ने यह कर दिया। कांग्रेस की ओर से दलित मुख्यमंत्री बनाने से उनके सपने शेखचिल्ली के सपने ही रह गये।

कांग्रेस के इस निर्णय ने पंजाब के सभी राजनीतिक दलों को आश्चर्यचकित तो कर ही दिया। साथ ही यह भी बता दिया कि वह पंजाब को जीतने के लिए हर दांव खेलने को तैयार है। दलित मुख्यमंत्री बना कर कांग्रेस ने देश भर के दलित को भी साधने की कोशिश की है। देशभर में बड़ी संख्या में दलित हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इनका अच्छा प्रतिशत है। यह तो समय बताएगा कि आने वाले समय में कांग्रेस दलितों को अपने से कितना जोड़ पाती है, किंतु उसकी चाल बहुत बढ़िया है। एक बात और... पार्टी के नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को जिस तरह से अपमानित किया गया, उससे पार्टी को पंजाब में नुकसान पहुंचा सकता है। इस डैमेज कंट्रोल के लिए कांग्रेस को कुछ करना होगा। कैप्टन अमरिंदर सिंह को साधना होगा। उन्हें पार्टी का पंजाब का प्रभावी नेता प्रस्तुत कर चुनाव मैदान में प्रचार के लिए लगाना होगा। अगर ऐसा नहीं हो पाया, या वह कहीं और चले गए तो पार्टी को नुकसान उठाना पड़ेगा।

अशोक मधुप

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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