फिलहाल तो कर्नाटक में सिद्धारमैय्या भाजपा पर पड़ रहे हैं भारी

Congress in Karnataka makes an edge over BJP
विजय शर्मा । Apr 2 2018 12:19PM

कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है और ऐसा माना जा रहा है कि वहां पार्टी को एंटी इंकम्बेंसी का सामना करना पड़ सकता है लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के प्रति ऐसी कोई हवा दिखाई नहीं दे रही है।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान हो चुका है। 12 मई को एक चरण में वोट डाले जायेंगे और 15 को नतीजे साबित कर देंगे कि आखिर 2019 का लोकसभा चुनाव किस पर भारी पड़ेगा। कुल 225 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा के लिए 224 सीटों पर एक ही चरण में मतदान होगा। 1 सीट पर एंग्लो−इंडियन समुदाय के सदस्य को मनोनित किया जाता है। यह महज संयोग ही है कि चुनावों की घोषणा से पूर्व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जब प्रेसवार्ता कर रहे थे तो उन्होंने गलती से अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्री पद के दावेदार बीएस येदियुरप्पा के सामने ही येदियुरप्पा सपकार को महाभ्रष्ट का खिताब दे दिया। हालांकि अगली पंक्ति में उन्होंने सिद्धारमैय्या सरकार पर हमला बोला लेकिन पिछली गलती के लिए उन्होंने अफसोस नहीं जताया। वैसे जब 2008 में येदियुरप्पा सरकार थी तो उन पर भाई−भतीजावाद और भ्रष्टाचार के न सिर्फ आरोप लगे थे बल्कि उन्हें मुकदमेबाजी का भी सामना करना पड़ा था। इसके कारण भाजपा ने उन्हें दरकिनार कर दिया था और उन्होंने अपनी पार्टी बनाकर पिछला चुनाव लड़ा था लेकिन मात्र 6 सीटों पर ही उन्हें संतोष करना पड़ा था और कांग्रेस बाजी मार गई थी। इसके बाद वह पुनः भाजपा में शामिल हुए और सांसद भी बने लेकिन हमेशा विरोधी दलों और अपनी ही पार्टी के कुछ नेताओं के निशाने पर रहे हैं। अब इस बार भाजपा ने एक बार फिर उन पर दांव लगाया है लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि अगर कोई चमत्कार हो जाए तो ही भाजपा की नैया पार लग सकती है। दूसरी तरफ कांग्रेस मजबूत स्थिति में दिखाई दे रही है। देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस कमजोर स्थिति में है और उसके अपने 7 एमएलए चुनावों की घोषणा से चार दिन पहले ही कांग्रेस में शामिल होकर यह आभास करा चुके हैं कि कांग्रेस मजबूत स्थिति में है। चुनावों के वक्त ज्यादातर नेता उसी पार्टी में शामिल होने के तरजीह देते हैं जिसके जीतने की संभावना ज्यादा दिखाई देती हो. जेडीएस कमजोर स्थित मिें है इसलिए इस बार सीधा मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है.

कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है और ऐसा माना जा रहा है कि वहां पार्टी को एंटी इंकम्बेंसी का सामना करना पड़ सकता है लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के प्रति ऐसी कोई हवा दिखाई नहीं दे रही है उल्टे भाजपानीत केन्द्र सरकार के प्रति स्थानीय समुदाय में भारी नाराजगी दिखाई पड़ रही है। लोग मंहगाई, पैट्रोल−डीजल की बतहाशा कीमतों के लिए केन्द्र सरकार को कोस रहे हैं। आयकर सीमा न बढ़ाये जाने को लेकर कर्मचारी वर्ग में भी केन्द्र सरकार को लेकर भारी नाराज़गी देखी जा रही है। व्यापारी नोटबंदी और जीएसटी से अभी तक नहीं उभर पाये हैं और उनकी भी नाराजगी केन्द्र सरकार से साफ देखी जा रही है जबकि प्रदेश की कांग्रेस सरकार के खिलाफ कोई बड़ा विरोध दिखाई नहीं पड़ रहा है जिसका चुनाव नतीजों पर गंभीर असर पड़ेगा। सिद्धारमैय्या ने चुनावों से ठीक पहले लिंगायत समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा देकर उन्हें लुभाने की कोशिश की है और ऐसा लग रहा है कि उनका यह दांव भाजपा पर भारी पड़ सकता है।

लिंगायत समुदाय को रिझाने के लिए भाजपा भी कोई कोर−कसर नहीं छोड़ रही है और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह खुद लिंगायत समुदाय के धर्मगुरूओं के मठों में जाकर नतमस्तक हो रहे हैं। वैसे कहा जा रहा है कि सिद्धारमैय्या अकेले भी भाजपा पर भारी पड़ रहे हैं। हालांकि पूरी कांग्रेस उनके पीछे खड़ी है और स्वयं राहुल गांधी जी−जान से कांग्रेस को संजीवनी देने में जुटे हैं लेकिन अब तक उनके प्रयास वहीं सफल हुए हैं जहां क्षेत्रीय नेतृत्व मजबूत रहा है। हालांकि गुजरात में भी राहुल गांधी ने खूब मेहनत की थी लेकिन वह भाजपा को उखाड़ने में कामयाब नहीं हो पाये थे। 

कर्नाटक में लिंगायत समुदाय का दबदबा है और वह कर्नाटक की कुल आबादी के लगभग 21 फीसदी हैं और विधानसभा की 224 सीटों में से 100 सीटों पर हार जीत तय करते हैं। कर्नाटक के राजनीतिक इतिहास में अब तक छह बार लिंगायत समुदाय से मुख्यमंत्री बने हैं। यही कारण है कि कांग्रेस की सिद्धारमैय्या सरकार ने लिंगायत समुदाय को धार्मिक अल्पसंख्यक का दर्जा देकर अपनी तरफ करने की भरपूर कोशिश की है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस बार लिंगायतों को कांग्रेस के पाले में करने की पुरज़ोर कोशिश कर रहे हैं। राहुल गांधी कर्नाटक के दौरे पर हैं और वो ज्यादातर लिंगायत बहुल इलाकों का दौरा कर रहे हैं। वे दो लिंगायत धार्मिक सेंटर जा रहे हैं। इससे पूर्व इस समुदाय को भाजपा का समर्थक माना जाता था लेकिन अब वह कांग्रेस से संतुष्ट नजर आ रहे हैं और एक बड़ा धड़ा कांग्रेस के साथ जा सकता है। 

भाजपा को यही डर सता रहा है कि यदि लिंगायत समुदाय बंट गया तो भाजपा का बंटाधार तय है। भाजपा इससे पूर्व इसका खामियाजा भुगत चुकी है। येदियुरप्पा के भाजपा से अलग होने पर लिंगायत समुदाय ने भाजपा को दरकिनार कर दिया था और कांग्रेस आसानी से सरकार बना पाई थी। लिंगायत समुदाय कर्नाटक में जिसे समर्थन करेगा, उसकी सरकार बनना तय माना जा रहा है। 

हालांकि कर्नाटक में 1985 के बाद से राज्य की जनता हर बार सरकार बदलती रही है। इस गणित का हिसाब से तो भाजपा की सरकार बनने के चांस हैं लेकिन कांग्रेस येदियुरप्पा के भ्रष्टाचार के मुद्दा बनाकर सुर्खियां बटोर रही है जिसका फायदा सिद्धारमैय्या को हो रहा है।

कहा जा रहा है कि भाजपा के मुकाबले सिद्धारमैय्या मजबूत स्थिति में दिखाई दे रहे हैं। वैसे भी भाजपा लोकसभा उपचुनाव परिणाम के बाद चौकन्ना हो गई है और संगठनात्मक स्तर पर कोई कमी नहीं छोड़ना चाहती। लेकिन कहा जा रहा है कि भाजपा कार्यकर्ताओं के पास हिन्दू कार्ड के अलावा गिनाने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए सांप्रदायिकता को हवा दी जा रही है और कांग्रेस की सरकार द्वारा लिंगायत समुदाय को दिये गये अल्पसंख्यक के दर्जे को हिन्दू एकता के लिए खतरा बता रहे हैं ताकि हिन्दू वेट बैंक छिटक कर भाजपा की झोली में आ जाए लेकिन प्रदेश की जनता भाजपा के इस दावे को चुनावी जुमला ही मान रही है। कर्नाटक में भाजपा यदि हारती है तो पूर्वोत्तर को छोड़कर लोकसभा उपचुनावों की हार के बाद 2019 की राह उसकी कठिन हो जायेगी, इसलिए भाजपा हर हाल में कर्नाटक जीतने के इरादा रखती है। कांग्रेस किसी भी तरह से कर्नाटक के अपने किले को बनाये रखना चाहती है ताकि वह और न सिमटे क्योंकि अब कांग्रेस कर्नाटक मिलाकर तीन प्रदेशों तक सिमट गई है। कांग्रेस अगर कर्नाटक में सरकार बनाने में सफल हो जाती है तो वह प्रमुख विपक्षी दलों को लामबंद करके 2019 में भाजपा को चुनौती देने की स्थिति में आ जाएगी। कर्नाटक विधानसभा चुनाव को अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिहाज से भी काफी अहम माना जा रहा है। कर्नाटक में लोकसभा की 28 सीटें हैं। इनमें से 17 सीटें भाजपा के पास हैं, जबकि कांग्रेस के पास 9 सीटें हैं और 2 सीटें जद (एस) के पास हैं।

कर्नाटक चुनाव भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों के लिए काफी महत्वपूर्ण माने जा रहे हैं। पूर्वोत्तर में जीत का डंका बजाने के बाद भाजपा कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतकर दक्षिण भारत में पांव जमाने की कोशिश में है। कांग्रेस सत्ता बनाए रखने में सफल रहती है तो यह लोकसभा चुनाव में उसके लिए संजीवनी का काम करेगी। 

-विजय शर्मा

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