उत्तर प्रदेश में बढ़ रहे हैं अपराध, चुनावों में मुश्किल हो सकती है BJP को

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अजय कुमार । Sep 27 2018 10:50AM

उत्तर प्रदेश में विपक्ष लगातार हमलावर है। इसके चलते सरकार के अच्छे कामों का भी प्रचार नहीं हो पा रहा है। समय रहते सुधार नहीं हुआ तो आम चुनाव में इसका खामियाजा मोदी को भुगतना पड़ सकता है।

उत्तर प्रदेश से समाजवादी पार्टी की अखिलेश सरकार के जाने और योगी सरकार के आने में अगर किसी फेक्टर ने सबसे बड़ा रोल निभाया तो वह था, अखिलेश राज में गुंडागर्दी का बोलबाला। पूरा प्रदेश हत्याओं/बलात्कार की घटनाओं/लूटपाट/भू−माफियाओं /खनन माफियाओं की गुंडागर्दी से त्राहिमाम कर रहा था। बड़े−छोटे सभी अपराधों की बाढ़ आ गई थी। इसके अलावा समाजवादी चोला ओढ़कर भी दबंगों द्वारा प्रदेश के अमन−चैन को रौंदा जा रहा था। जगह−जगह साम्प्रदायिक दंगों, तनाव, धार्मिक आयोजनों में बवाल, लड़कियों के साथ छेड़छाड़ आदि घटनाओं से जनता भयभीत थी। बीजेपी ने इन घटनाओं को चुनाव के समय बड़ा मुददा बना दिया। चुनाव जीतने पर प्रदेश में एंटी भू−माफिया अभियान चलाने की बात और लड़कियों को तंग करने वालों को सबक सिखाने के लिये एंटी मजनू फोर्स गठित करने की बात कही गई। बीजेपी नेताओं द्वारा अपनी जनसभाओं में राजनैतिक संरक्षण में फलफूल रहे अपराधियों को जेल की सलाखों के पीछे या मौत के घाट उतारे जाने की भी वकालत की जा रही थी। माहौल ऐसा बना दिया गया कि बीजेपी आयेगी तो राम राज लायेगी। बदले में जनता ने बीजेपी की झोली वोटों से भर दी। उसके तीन सौ से अधिक उम्मीदवारों ने जीत का स्वाद चखा और विधायक बने।

यह बात मार्च 2017 की थी। यह जीत बीजेपी के लिये इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण थी क्योंकि दो वर्षों के बाद 2019 में लोकसभा चुनाव होने थे। समय की महत्ता को भांप कर बीजेपी ने एक योगी के हाथ में प्रदेश की बागडोर सौंप दी। योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश के प्रति अपना 'योग धर्म' निभाते हुए वह सभी कदम उठाये जिससे प्रदेश अपराध मुक्त हो सकता था। योगी की सख्ती के चलते गुंडे राज्य की सीमा छोड़कर भागने लगे, जो नहीं सुधरे उसमें से न जाने कितने बदमाशों को पुलिस ने मुठभेड़ में मार गिराया, जो बचे वह जमानत रद्द कराकर जेल की सलाखों के पीछे खुद को महफूज समझने लगे। योगी की सख्ती को लेकर खूब हाय−तौबा मची। विपक्ष से लेकर मानवाधिकार संगठन तक हो−हल्ला कर रहा था। मामला अदालत तक भी पहुंचा, लेकिन सीएम योगी ने अपने तेवर ढीले नहीं किये। कुछ समय के लिये इसका प्रभाव भी देखने को मिला, मगर फिर प्रदेश का अपराध जगत उसी ढर्रे पर लौट आया। लाख टके का सवाल यही है कि योगी की इतनी सख्ती के बाद भी क्राइम ग्राफ बढ़ता क्यों जा रहा है। हो सकता है कि कुछ तरह के अपराधों के पीछे विरोधियों की सुनियोजित साजिश हो, लेकिन सभी मामलों में ऐसा नहीं है। अगर ऐसा न होता तो सीएम योगी को हाकिम साहब (डीजीपी) की क्लास नहीं लेनी पड़ती।

इसकी बानगी बनी हमीरपुर की एक घटना। यहां कंस मेले की शोभा यात्रा के दौरान उपद्रव हो गया, जिसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बेहद गंभीरता से लिया। मुख्यमंत्री ने डीजीपी ओपी सिंह को तलब कर घटना की जानकारी ली और कहा कि किसी भी हालत में कानून−व्यवस्था न बिगड़ने पाये। प्रदेश में हुई अन्य बड़ी घटनाओं को लेकर भी मुख्यमंत्री ने नाराजगी जताई। इसके बाद डीजीपी ओपी सिंह ने हमीरपुर में शोभा यात्रा के दौरान हुए पथराव की घटना की जानकारी मिलने के बाद एडीजी इलाहाबाद जोन एसएन साबत को हमीरपुर में कैंप करने व उपद्रवियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई किये जाने का निर्देश दिया। डीजीपी के अनुसार शोभा यात्रा को कुछ लोग गैर−परंपरागत मार्ग से निकालने का प्रयास कर रहे थे। पुलिस ने उन्हें रोक दिया था। इसी बात को लेकर कुछ उपद्रवियों ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया, जिससे स्थिति बिगड़ी। घटना में एएसपी, सीओ व दो एसओ घायल हुये हैं। उक्त घटना के संदर्भ में डीजीपी का कहना था कि तत्काल स्थिति पर नियंत्रण पा लिया गया था, लेकिन मुख्यमंत्री योगी को ऐसा नहीं लगा होगा, तभी तो उन्होंने डीजीपी को तलब कर लिया।

दरअसल, बीते दिनों प्रदेश में कई दुस्साहसिक घटनाएं हुई हैं। प्रतापगढ़ व इलाहाबाद में लगातार संगीन वारदात, इलाहाबाद में दिनदहाड़े 22 लाख की लूट, बांदा में टाइल्स व्यवसायी का अपहरण, प्रतापगढ़ में दोहरा हत्याकांड, बरेली में मोहर्रम जुलूस के दौरान उपद्रव की घटनाएं कानून−व्यवस्था को लेकर सवाल खड़ी कर रही थीं। महिलाओं के प्रति अपराध का ग्राफ तेजी के साथ बढ़ रहा है। सूबे की सरकार बेशक कुछ भी दावे करती हो लेकिन यूपी में महिलाएं कितनी डरी−सहमी हैं इसकी गवाही खुद अपराध के आंकड़े दे रहे हैं।

मार्च 2018 में विधायक नाहिद हसन ने विधानसभा में महिलाओं की सुरक्षा के प्रति सवाल उठाया था, जिसके जवाब में जो आंकड़े आए वो बेहद चौंकाने वाले थे। महिलाओं और बालिकाओं पर छेड़खानी की घटनाएं एक ही साल में दोगुनी हो गई थीं। वर्ष 2016−17 में जहां 495 घटनाएं हुईं थी तो अप्रैल 2017 से जनवरी 2018 में 987 छेड़खानी की घटनाएं सामने आई थीं। महिलाओं और बालिकाओं के अपहरण की बात करें तो उक्त कालखंड में इस तरह की घटनाओं का आंकड़ा 9828 से बढ़कर 13226 पर पहुंच गया। बलात्कार के आंकड़े भी कम चौंकाने वाले नहीं हैं। बलात्कार की घटनाएं 2943 से बढ़कर 3704 पर और बलात्कार की कोशिश की वारदात की संख्या 8159 से बढ़कर 11404 के आंकड़े पर पहुंच गई।

सुप्रीम कोर्ट ने भी यूपी सरकार से पुलिस एनकाउंटर को लेकर जवाब तलब किया। फर्जी एनकाउंटर की सुनवाई के लिए दाखिल एक याचिका के बाद यूपी पुलिस का ऑपरेशन क्लीन चर्चा में आ गया। आपको बता दें कि 16 महीने की योगी सरकार में 28 जून 2018 तक कुल 2244 पुलिस एनकाउंटर हुए थे, जिनमें 59 अपराधी ढेर हुए, जबकि 4 पुलिसकर्मी भी शहीद हुए हैं। आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि सबसे ज्यादा पुलिस और अपराधियों में भिड़ंत पश्चिम उत्तर प्रदेश में देखने को मिली। इनमें मेरठ में 720, आगरा में 601 और बरेली में 343 एनकाउंटर हुए। यानी 2244 एनकाउंटर में से 1664 एनकाउंटर पश्चिम उत्तर प्रदेश के ही खाते में गये।

वैसे सुप्रीम कोर्ट के अलावा राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भी उत्तर प्रदेश के दो पुलिस एनकाउंटर पर सवाल उठा चुका है। इनमें ग्रेटर नोएडा का सुमित गुर्जर एनकाउंटर और नोएडा में दरोगा द्वारा फर्जी एनकाउंटर शामिल है। इसके अलावा आयोग द्वारा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के एनकाउंटर पर दिए गए बयान पर भी सवाल उठा खड़ा करते हुए कहा गया था कि मीडिया रिपोर्ट में ऐसा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार कानून व्यवस्था में सुधार के लिए पुलिस से इन एनकाउंटर में हत्याओं को बढ़ावा दे रही है। एनकाउंटर पर जब सवाल खड़े किये गये तो योगी सरकार के मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा, पुलिस पर गोली चलाने वालों को बुके नहीं, गोली से देंगे जवाब। लब्बोलुआब यह है कि अपराध के मोर्चे पर योगी सरकार पूरी तरह से धराशायी नजर आ रही है। विपक्ष लगातार हमलावर है। इसके चलते सरकार के अच्छे कामों का भी प्रचार नहीं हो पा रहा है। समय रहते सुधार नहीं हुआ तो आम चुनाव में इसका खामियाजा मोदी को भुगतना पड़ सकता है।

-अजय कुमार

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