कसौली हत्याकांड से जयराम सरकार की प्रशासनिक नाकामी उजागर

Himachal Pradesh administrative failure in Kasauli murder case
विजय शर्मा । May 4 2018 1:23PM

हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के कसौली हत्याकांड की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ रही है जहां एक सरकारी महिला अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार होटलों के अवैध निर्माण गिराने पहुंची थीं लेकिन दिन−दिहाड़े होटल माफिया की गोलियों का शिकार हो गईं।

हिमाचल प्रदेश के सोलन जिले के कसौली हत्याकांड की गूंज पूरे देश में सुनाई पड़ रही है जहां एक सरकारी महिला अधिकारी सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार होटलों के अवैध निर्माण गिराने पहुंची थीं लेकिन दिन−दिहाड़े होटल माफिया की गोलियों का शिकार हो गईं। पर्याप्त सुरक्षा न होने के चलते पुलिस की मौजूदगी में न सिर्फ उसकी हत्या कर दी गई बल्कि अपराधी चार राउंड गोलियां चलाकर फरार भी हो गया। दिलचस्प यह कि गोली मारने वाला अपराधी विजय ठाकुर हिमाचल सरकार का कर्मचारी है और एक निदेशक स्तर के अधिकारी का निजी सचिव है और उसकी सरकार में अच्छी−खासी पैठ है।

महिला अधिकारी की तो मौके पर ही मौत हो गई लेकिन विभाग का एक बेलदार जि़न्दगी और मौत से जूझ रहा है। महिला अधिकारी शैल बाला की हत्या नहीं हुई होती यदि प्रदेश सरकार अवैध निर्माणों को ले कर संवेदनशील होती। पहली बार बाहर यह संदेश गया है कि हिमाचल प्रदेश में सचमुच माफियाराज हावी है और सरकार बदलने के बावजूद कुछ नहीं बदला है। असल में प्रदेश सरकार अवैध कब्जों को लेकर संवेदनशील नहीं है और सरकार के मंत्री बयान देते आये हैं कि अवैध कब्जाधारी होटलों को राहत देने के लिए सरकार उपाय करेगी। कसौली के मामले में तो गत 17 अप्रैल को ही सुप्रीम कोर्ट ने अवैध निर्माणों को 15 दिनों के भीतर गिराने का आदेश दिया था क्योंकि याचिकाकर्ताओं ने खुद माना था कि उन्होंने बिना इजाज़त के कई अतिरिक्त मंजिलों का निर्माण किया है।

कसौली के मामले में तो सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है लेकिन अब प्रदेश भर के करीब 5000 होटलों का क्या होगा जिन्होंने धड़ल्ले से न सिर्फ अवैध निर्माण किये हैं बल्कि कई होटल तो पूरी तरह सरकारी जमीन पर कब्जा कर बनाये गये हैं। प्रदेश के विभिन्न पर्यटन स्थलों पर पिछले एक दशक से सरकार की शह पर होटलों में अंधाधुंध अवैध निर्माण हुआ है। दो−दो मंजिलों की विभागीय मंजूरी वाले होटलों ने बिना किसी मंजूरी के 8−8 मंजिला होटल खड़े कर दिये हैं। शिमला, मनाली, धर्मशाला, कुल्लू, सोलन समेत हिमाचल प्रदेश के हर जिला मुख्यालय में बने होटलों में अवैध निर्माण किया गया है। होटल निर्माताओं की लॉबी के आगे सरकार झुकती गई और अंततः अब एक अधिकारी की मौत के बाद सरकार की नींद खुली है। हालांकि इससे पहले कुछेक कार्रवाई हुई है लेकिन उसमें राजनीतिक हिसाब−किताब जोड़कर चुनिंदा मामलों में कार्रवाई की गई है। अवैध निर्माण को ले कर एक एन.जी.ओ ने एक साल पहले एन.जी.टी. में याचिका थी कि दो मंजिलों की अनुमति ले कर इन होटल मालिकों ने छह मंजिल तक अवैध निर्माण किया है। सुप्रीम कोर्ट में होटल मालिकों ने माना है कि उन्होंने अवैध निर्माण किया है। सुप्रीम कोर्ट पहले उन्हें स्वयं अवैध निर्माण गिराने के लिए मौखिक कह चुका था लेकिन जब होटल मालिकों ने पालन नहीं किया तब मजबूरन उसे सरकार को 15 दिनों के भीतर गिराने का निर्देश देना पड़ा क्योंकि एनजीटी और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद सरकार हीला−हवाली कर रही थी।

असल में अवैध कब्जों का मामला 2002 में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के संज्ञान में आया था। लेकिन उस वक्त केवल वन भूमि पर अवैध कब्जों की बात उठी थी और इसके बाद छोटे अवैध कब्जों को नियमित करने की प्रक्रिया चली थी। इसके बाद 2015 में फिर से अवैध कब्जों और अतिक्रमणों का मामला उच्च न्यायालय के समक्ष आया। इस पर अदालत ने कड़ा संज्ञान लेते हुए ऐसे अवैध कब्जों को खाली करने के लिये इन पर उगाये गये पेड़ों को काटने के निर्देश दे दिये थे। अदालत ने अवैध निमार्णों के नियमितिकरण को भी असंवैधानिक करार देते हुए सरकार को कड़ी फटकार लगायी थी। अदालत ने दस बीघे से अधिक के वन भूमि पर हुए अतिक्रमणों का कड़ा संज्ञान लेते हुए सरकार को ऐसे अतिक्रमणों को चिहिन्त करके ऐसे लोगों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज करने के निर्देश दिये थे। खण्डपीठ ने इसी फैसले में भारत सरकार के वित्त मन्त्रालय के तहत कार्यरत ईडी को भी निर्देश दिये हैं कि जिन लोगों ने वन भूमि पर कब्जे कर रखे हैं, ऐसे लोगों के खिलाफ मनीलांड्रींग अधिनियम के तहत मामले दर्ज करके ऐसे अर्जित की गयी संपत्तियों को भी जब्त किया जाये। लेकिन सर्वाधिक मामले पुराने हिमाचल से संबंधित थे और प्रदेश में कांग्रेसनीत वीरभद्र सरकार टालमटोल करती रही और कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

प्रदेश सरकार द्वारा कोर्ट को सौंपी गई रिपोर्ट के अनुसार वन भूमि पर हुए अवैध कब्जों और अतिक्रमणों के मुताबिक दस बीघे से अधिक अतिक्रमण के मामलों की संख्या 2524 है। इसमें सबसे अधिक संख्या जिला शिमला की है जहां पर 1079 मामलों में दस बीघे से अधिक का अतिक्रमण है इसमें भी सबसे अधिक मामले 342 रोहडू के हैं। शिमला के बाद अतिक्रमणों में कुल्लु दूसरे स्थान पर है यहां इनकी संख्या 1004 है। इसी तरह दस बीघे से कम के अतिक्रमणों की संख्या 10182 है। इसमें भी 2970 के साथ शिमला पहले स्थान पर है। इसके बाद कुल्लु में 2386 और मण्डी में 1270 मामले रिकार्ड पर आये हैं। कांगडा में 1754, चम्बा में 626, सिरमौर में 532, बिलासपुर में 410, सोलन में 121, हमीरपुर में 44, किन्नौर में 55, लाहौल स्पिती में 10 और ऊना में केवल 4 मामले रिकार्ड पर आये हैं।

दस बीघे से अधिक के मामलों में शिमला कुल्लु के बाद किन्नौर में 135, मण्डी में 108, चम्बा में 74, सिरमौर में 68, कांगड़ा में 24, बिलासपुर में 14 लाहौल में 5 और सोलन में 1 मामला सामने आया है। ऊना और हमीरपुर में ऐसे अतिक्रमण का कोई मामला सामने नहीं आया है। इस सबके बावजूद प्रदेश सरकार ने 5 बीघा तक के अवैध कब्जों के नियमितीकरण के लिए योजना बनाई जिसे प्रदेश उच्च न्यायालय भी मंजूरी दे चुका है लेकिन इसके बावजूद बड़े अवैध कब्जाधारी जमे हुए हैं और आज भी हजारों एकड़ वन भूमि पर अवैध कब्जे हैं जिन्हें न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद भी नहीं हटाया जा सका है और जयराम सरकार बनने पर भी उसमें कोई प्रगति नहीं हुई है।

विधानसभा चुनाव के वक्त भाजपा ने कानून व्यवस्था और माफियाराज को लेकर वीरभद्र सरकार पर खूब हल्ला बोला था और प्रदेश की कानून व्यवस्था और माफियाराज तथा महिला सुरक्षा जैसे मुद्दों पर खूब लच्छेदार भाषण दिये थे लेकिन सरकार बनने के बाद तबादलों की राजनीति में उलझने के अलावा सरकार की कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। प्रदेश की जनता ने बड़ी उम्मीद के साथ नई सुबह के इंतजार में परिवर्तन के लिए वोट किया था लेकिन पिछले दिनों की घटनाओं पर नजर डालें तो नई सरकार में सड़क दुर्घटनाएं, महिला अपराध तथा जघन्य घटनाएं बढ़ी हैं और विकास की रफ्तार तबादलों से धीमी हो गई है क्योंकि अधिकारियों, कर्मचारियों को नई जगह जमने में कम से कम 6 माह का समय चाहिए और सरकार के मंत्रियों की मनमानी और क्षेत्रवाद की घटनाएं जगजाहिर हो चुकी हैं जहां मुख्यमंत्री के सामने विधायक मंत्रियों की तबादलों को लेकर खुली आलोचना करते हैं। प्रदेश में सरकार भले ही बदल गई हो लेकिन देवभूमि के नाम से विख्यात यह राज्य अब डराने लगा है।

सरकार बदली है पर हालात नहीं बदले हैं। कानून व्यवस्था पहले से ज्यादा बिगड़ती जा रही है। न मासूमों के साथ रेप की घटनाएं थमती नज़र आ रही हैं, न सड़क हादसे कम हो रहे हैं। पुलिस की मौजूदगी में सरेआम सरकारी अधिकारी को मौत के घाट उतार दिया जाता है तो सवाल तो खड़े होंगे ही। नई सरकार के चार महीनों के कार्यकाल में पांच हज़ार मामले थानों में दर्ज हो चुके हैं। 25 के करीब मर्डर हो चुके हैं और लगभग 75 से अधिक बलात्कार के मामले दर्ज हो चुके हैं। मुख्यमंत्री और मंत्री अपनी पीठ थपथपाह रहे हैं जैसे हिमाचल में सचमुच रामराज आ गया हो लेकिन जनता में सरकार के प्रति दिनोंदिन आक्रोश बढ़ रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कसौली हत्याकांड की निंदा की है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया है लेकिन सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों में सुगबुगाहट शुरू हो गई है कि इस सरकार में सुरक्षा की कोई गारंटी नहीं है।

-विजय शर्मा

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