अफगानिस्तान की समस्याओं का हल निकालने की दिशा में भारत ने किया सार्थक प्रयास

Ajit Doval
ललित गर्ग । Nov 13 2021 9:56AM

दिल्ली सुरक्षा संवाद में रूस, ईरान और अफगानिस्तान के पांच पड़ोसी देशों- उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और कजाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के साथ मिलकर भारत ने जिस तरह से कदम बढ़ाए हैं, उसे बड़ी कूटनीतिक कामयाबी कहा जाना चाहिए।

अफगानिस्तान को आतंकवाद के लिये इस्तेमाल किये जाने की घटनाओं को लेकर भारत की चिन्ताएं और उन चिन्ताओं को दूर करने के लिये दिल्ली में आठ देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक एक दूरगामी सोच से जुड़ा सार्थक उपक्रम है। इस बैठक का आयोजन जरूरी था और इसका सफल आयोजन कर भारत ने यह संदेश दे दिया है कि वह न केवल दुनिया को आतंकमुक्त परिवेश देने बल्कि इस संकटग्रस्त मुल्क को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेगा। गत कुछ समय से चली आ रही गतिविधियों एवं उनमें भारत के रूख को देखकर माना जा रहा था कि अफगानिस्तान के मसले पर भारत निर्णायक पहल करने से बच रहा है और ‘देखो व इंतजार करो’ की नीति पर चल रहा है। लेकिन अब भारत ने एक ठोस कदम उठाकर जाहिर किया है कि भारत अफगानिस्तान को लेकर जागरूक था, है और रहेगा।

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जगजाहिर है कि अफगानिस्तान तालीबानी बर्बरता एवं पाकिस्तानी कुचेष्ठाओं के चलते इस वक्त भयानक संकटों का सामना कर रहा है। देश में भुखमरी के हालात हैं, विकास की जगह आतंकवाद मुख्य मुद्दा बना हुआ है। लाखों लोग पहले ही पलायन कर चुके हैं। सत्ता को लेकर तालिबान के उग्र तेवर एवं भीतर ही भीतर वहां के राजनीतिक गुटों में तना-तनी का माहौल है। देश के अंदरूनी मामलों में पाकिस्तान का दखल मुश्किलों को और बढ़ा रहा है, अधिक चिन्ता की बात तो यह है कि अफगानिस्तान की जमीन का उपयोग आतंकवाद के लिये हो रहा है। एक विकास की ओर अग्रसर शांत देश के लिये ये स्थितियां एवं रोजाना हो रहे आतंकी हमलों में निर्दोष नागरिकों का मारा जाना, चिन्ताजनक है। भारत यदि इन चिन्ताओं को दूर करने के लिये आगे आया है तो यह एक सराहनीय कदम है। तालिबान की आतंकवादी मानसिकता एवं उसकी सत्तालोलुपता को दुनिया का कोई देश मान्यता नहीं दे रहा। इस दिल्ली क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद में सामूहिक चिंता यह उभर कर आई कि अफगानिस्तान की जमीन से चलने वाली आतंकी गतिविधियों, कट्टरतावाद और नशीले पदार्थों की तस्करी से निपटा कैसे जाए? भारत तो शुरू से ही इस बात पर चिंता व्यक्त करता रहा है कि पाकिस्तान की तरह कहीं अफगानिस्तान भी आतंकी गतिविधियों का एक और गढ़ न बन जाए। इसलिए बैठक के बाद जारी घोषणापत्र में सभी देशों ने एक स्वर में आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए एकजुट होकर काम करने पर सहमति जताई।

भारत ने अफगानिस्तान के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो भारत वहां का विकास चाहता है, शांति चाहता है, वहां उन्नत जीवनशैली चाहता है, हर इंसान को साधन-सुविधाएं, शिक्षा-चिकित्सा देना चाहता है, उस देश का भी भारत के साथ प्रगाढ़ मै़त्री संबंध है, इन सुखद स्थितियों के बीच उस जमीन का उपयोग भारत विरोधी गतिविधियों के लिये हो, यह कैसे औचित्यपूर्ण हो सकता है? यह तो विरोधाभासी स्थिति है। भारत तो वहां लंबे समय से विकास की बहुआयामी एवं विकासमूलक योजनाओं में सहयोग के लिये तत्पर है। वहां संसद भवन के निर्माण, सड़कों का नेटवर्क खड़ा करने से लेकर बांध, पुलों के निर्माण तक में भारत ने मदद की है। लेकिन अब मुश्किल तालिबान सत्ता को मान्यता देने को लेकर बनी हुई है। दो दशक पहले भी भारत ने तालिबान की सत्ता को मान्यता नहीं दी थी। जाहिर है, इसमें बड़ी अड़चन खुद तालिबान ही है। जब तक तालिबान अपनी आदिम एवं आतंकी सोच नहीं छोड़ता, मानवाधिकारों का सम्मान करना नहीं सीखता, तब तक कौन उसकी मदद के लिए आगे आएगा? अब यह तालिबान पर निर्भर है कि वह दिल्ली में हुए क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद को किस तरह लेता है और कैसे सकारात्मक कदम बढ़ाता है।

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अफगानिस्तान लंबे समय से आतंकी संगठनों एवं आतंकवादी गतिविधियों का बड़ा केंद्र बना हुआ है, जो समूची दुनिया के लिये एक गंभीर खतरा है। अब अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता में आने के बाद यह खतरा और बढ़ गया। यह खतरा सिर्फ भारत के लिए नहीं, पूरी दुनिया के लिए चिंता की बात है। भारत के लिये यह अधिक चिन्ताजनक इसलिये है कि पाकिस्तान इसका इस्तेमाल कश्मीर में आतंकवाद को उग्र करने में करना चाहता है। इसलिए दुनिया की बड़ी शक्तियों एवं अफगानिस्तान के पड़ोसी राष्ट्रों को मिल कर इससे निपटने की जरूरत को महसूस करते हुए ही भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनके सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने क्षेत्रीय सुरक्षा संवाद को आयोजित करने का सूझबूझपूर्ण निर्णय लिया, इस बैठक में सात देशों ने भारत के सुर में सुर मिलाकर आश्वस्त करने का प्रयास किया कि अफगानिस्तान को आतंकवाद का पनाहगाह नहीं बनने दिया जायेगा। इस बैठक ने अफगानिस्तान को लेकर भारत कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं है, वाली सोच को निरस्त किया है।

दिल्ली सुरक्षा संवाद में रूस, ईरान और अफगानिस्तान के पांच पड़ोसी देशों- उज्बेकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और कजाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के साथ मिलकर भारत ने जिस तरह से कदम बढ़ाए हैं, उसे बड़ी कूटनीतिक कामयाबी के रूप में देखा जाना चाहिए। यह कोई कम महत्त्वपूर्ण बात नहीं है कि इतने देशों ने भारत के अनुरोध और पहल को स्वीकार किया और अफगानिस्तान से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की। बैठक में भारत ने पाकिस्तान और चीन को भी बुलाया था, पर दोनों देशों ने इस बैठक से कन्नी काट ली। जाहिर है, ये दोनों देश अफगानिस्तान के मुद्दे पर भारत के कूटनीतिक प्रयासों को पचा नहीं पा रहे हैं, क्योंकि ये ही दोनों देश यहां आतंकवाद को भारत के विरोध में पनपा रहे हैं। इससे इन दोनों के भारत विरोधी रुख की ही पुष्टि होती है। यह तो सारे देश समझ ही रहे हैं कि अगर मिलकर अफगानिस्तान की चुनौतियों का सामना नहीं किया तो इससे क्षेत्रीय शांति भी खतरे में पड़ जाएगी। इसलिए कोशिशें ऐसी हों जिससे तालिबान पाकिस्तान जैसे देशों के प्रभाव से मुक्त होकर पड़ोसी देशों और भारत जैसे हितैषी देशों की चिंताओं को समझे। अफगानिस्तान के मानवीय संकट को देखते हुए कोई भी देश तालिबान से टकराव नहीं चाहता, बल्कि उसकी मदद करना चाहता है। यही दिल्ली संवाद का मकसद भी है।

इस सुरक्षा संवाद की सार्थकता तभी सामने आयेगी जब अफगानिस्तान में आतंक का नंगा नाच होने से रोका जा सकेगा, वहां अराजकता एवं बर्बरता की कालिमा धुलेगी। महिलायें-बच्चे तालिबानी क्रूरता के शिकार न हो सकेंगे। आतंकवाद के खतरे की संभावनाओं को देखते हुए भारत ने अफगानिस्तान पर दबाव बढ़ा दिया है। भारत ने अफगानिस्तान से साफ कहा है कि उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए न होने दे। साथ ही, अल कायदा, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई भी करे।

दरअसल, आतंकवाद को लेकर भारत की चिंता बेवजह नहीं हैं। भारत ने लंबे समय से आतंकवाद के खतरे को झेला है एवं कश्मीर की मनोरम वादियां सहित भारत के भीतरी हिस्सों ने तीन दशक से भी ज्यादा समय तक सीमा पार आतंकवाद झेला है। अब भारत के साथ सात देशों की ताकत है, मिलकर ऐसा वातावरण बनायें कि आतंकी सोच को विराम मिले एवं वहां के जनजीवन को सुखद परिवेश एवं शांति, अमन-चैन की सांसें मिलें। मानवता की रक्षा एवं आतंकवाद मुक्त अफगानिस्तान की संरचना की इस कोशिश को पंख लगें। कुल मिलाकर, मानवीयता, उदारता, शांति, अहिंसा और समझ की खिड़की खुली रहनी चाहिए, ताकि इंसानियत शर्मसार न हो, इसके लिये भारत सहित आठ देशों एवं समूची दुनिया को व्यापक प्रयत्न करने होंगे। इसके साथ अफगानिस्तान की ऐसी शक्तियां जो आतंकवाद के खिलाफ हैं, उनको भी सक्रिय होना होगा। क्योंकि उनकी जमीन को कलंकित एवं शर्मसार करने का षड्यंत्र हो रहा है। 

-ललित गर्ग

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तम्भकार हैं)

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