प्रलाप करने की बजाय पार्टी को दोबारा खड़ा करें नेताजी
पार्टी की नईया डूबने व पुत्र का ताज छिन जाने से हताश नेता जी से ज्यादा कौन जानता होगा कि सपा का दुबारा खड़ा होना आसान नहीं है। उन्हें चाहिए कि प्रलाप करना छोड़ें और अखिलेश पर भरोसा जताते हुए उसे साथ लेकर दोबारा पार्टी को खड़ा करें।
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में रसातल में चली गई सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से जबरिया पदच्युत किये गये मुलायम सिंह यादव की पीड़ा किस कदर उन्हे बेचैन किये है इसका नजारा एक बार पुन: बीते शनिवार को तब दिखा जब वह मैनपुरी के एक निजी कार्यक्रम में अपने पुत्र अखिलेश यादव पर बुरी तरह बिफर गये। खुद को अपमानित किये जाने से लेकर भाई शिवपाल तक को अपमानित किये जाने का अखिलेश पर बार-बार आरोप मढ़ा।
चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा अखिलेश यादव पर कसे गये तंज 'जो अपने बाप का न हो सका वो और किसी का क्या होगा' को बार-बार दोहराते हुये नेता जी ने कहा कि कोई बाप अपने बेटे को मुख्यमंत्री नहीं बनाता लेकिन मैंने उसे बनाया। अखिलेश ने उस कांग्रेस से गठबंधन किया जिसने मुझ पर तीन बार जानलेवा हमला करवाया। आरोप लगाया कि उसी चाचा शिवपाल को अखिलेश ने मंत्रिमंडल से निकाल दिया जिसने उसको जीवन की सही राह दिखाई और जो सरकार में अच्छा काम करते थे।
यदि कल तक जैसे कोई यह मानने को तैयार नहीं था कि बाप बेटे की अंदरूनी कलह महज एक ड्रामा के सिवाय कुछ नहीं है, आज उनके प्रलाप को हर कोई अर्थहीन बताने में जरा भी गुरेज नहीं कर रहा है। हर कोई यह जानना चाहता है कि जब पुत्र अखिलेश ने उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाकर पार्टी पर जबरिया कब्जा करलिया था और चुनाव में पार्टी के सिम्बल (चुनाव चिन्ह) को लेकर बाप बेटे दोनो ही चुनाव आयोग पहुंच गये थे तो आखिर बाप यानी नेता जी ने अपने कदम वापस क्यों खींच लिये थे! बाद में पूरे मामले में लीपा-पोती करते हुये नेता जी ने कहा था अब पार्टी में सब कुछ ठीक है और सभी मिलकर चुनाव लड़ेगें। फिर ऐसा क्या हो गया कि पूरे चुनाव के दौरान स्वयं मुलायम सिंह यादव चुनाव प्रचार से दूर ही रहे। उन्होंने बामुश्किल एक दो सभाएं ही कीं। इसी तरह पूरे चुनाव के दौरान शिवपाल सिंह यादव अपनी सीट पर ही ध्यान केन्द्रित किये रहे।
चुनाव परिणाम आने के बाद बुरी तरह मात खाये सपा के नये मुखिया अखिलेश यादव से नेता जी ने सवाल जवाब क्यों नहीं किया और क्यों नहीं उनसे राष्ट्रीय अध्यक्ष पद वापस लेने का दबाव बनाया?
कोई यह नहीं समझ पा रहा कि आखिर वह अपने उसी पुत्र अखिलेश यादव पर पार्टी की नईया डूबने के बावजूद क्यों मुलायम बने रहे और जिस पर वह आज पुन: दगाबाजी का इल्जाम मढ़ रहे हैं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में सपा की लुटिया डूबने पर नेता जी ने कहा था कि वह भी चुनाव हार चुके हैं और फिर वापस लौटे हैं। इसलिए अखिलेश को चिंता करने की जरूरत नहीं है। अगले ने अच्छा काम किया, जनता बहकावे में आ गई। किसी की समझ में नहीं आ रहा है कि चुनाव हारने के बाद अखिलेश ने न तो नेता जी को पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद लौटाया और न ही उनसे किसी प्रकार की कोई गुफ्तुगू ही की। आखिर वह किस आस से पुत्र अखिलेश को योगी सरकार के शपथ समारोह में साथ लेकर गये और प्रधानमंत्री के कान में कुछ कहते नजर आये।
इसमें कोई दो राय नहीं है कि ऐन चुनाव के मौके पर अखिलेश यादव ने पिता का राष्ट्रीय अध्यक्ष पद हथिया कर व चाचा शिवपाल सिंह को मंत्रिमंडल से धकियाकर अपने बलबूते चुनाव जीतकर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का जो दांव चला था वो तो बुरी तरह असफल रहा ही पार्टी की शर्मनाक हार का रिकार्ड भी उनके खाते में दर्ज हो गया। पार्टी की नईया डूबने व पुत्र का ताज छिन जाने से हताश नेता जी से ज्यादा कौन जानता होगा कि सपा का दुबारा खड़ा होना आसान नहीं है और उस स्थिति में जब पार्टी में टूटन की संभावनाएं दिनोंदिन तेज होती जा रही हैं और जब पार्टी छोड़ने वालों की संख्या दिनों दिन बढ़ने के ही ज्यादा आसार हैं।
ऐसे में जहां अखिलेश यादव को बिना देरी किये सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का दायित्व नेता जी को सौंप देना चाहिये वहीं नेता जी को अनर्गल प्रलाप की बजाय बेटे अखिलेश यादव तो साथ लेकर पार्टी की एकजुटता के लिये नये सिरे से जुटने का उपक्रम करना चाहिये।
- शिव शरण त्रिपाठी
अन्य न्यूज़