कश्मीर में सुरक्षाबलों की जिंदगी आसान नहीं है

कश्मीर में इतने सालों से हालात युद्धग्रस्त वाले ही हैं जहां कब और कहां से आतंकी हमला, गोलियों की बौछार हो जाए और अब पथराव शुरू हो जाए कोई नहीं जानता। ऐसे में सुरक्षा बलों की जिंदगी यहाँ आसान नहीं है।

कश्मीर में 26 सालों से जिन सुरक्षाकर्मियों पर कश्मीरी अवाम पर अत्याचार ढहाने और पेलैट गन जैसे घातक साबित हो रहे हथियारों से उन्हें अंधा बनाने के आरोप लगते रहे हैं जरा उन सुरक्षाकर्मियों की परिस्थितियों पर भी एक नजर दौड़ाई जाए तो तस्वीर का दूसरा चेहरा भी आपको नजर आएगा। इन सुरक्षाकर्मियों की जिन्दगी कोई आसान नहीं है। ऐसा इसलिए क्योंकि चाहे कोई माने या न माने पर कश्मीर में इतने सालों से हालात युद्धग्रस्त वाले ही हैं जहां कब और कहां से आतंकी हमला, गोलियों की बौछार हो जाए और अब पथराव शुरू हो जाए कोई नहीं जानता।

हालांकि आतंकी हमलों से निपटने की ट्रेनिंग उन्हें अलग से नहीं लेनी पड़ती है क्योंकि वह उनके प्रशिक्षण का हिस्सा ही बना दिया गया है पर पत्थरबाजों से निपटने का प्रशिक्षण उनके लिए अब बहुत जरूरी इसलिए हो गया है क्योंकि कश्मीर में हालात 1990 के दशक के बन चुके हैं इससे कोई इंकार नहीं करता है। तब भी आतंकी भीड़ का हिस्सा बन कर हमले किया करते थे और अब भी वैसा होने लगा है।

ऐसे में कश्मीरी अवाम, पत्थरबाजों और भीड़ में छुपे हुए आतंकियों से निपटना सुरक्षा बलों के लिए बहुत ही कठिन हो चुका है। वे भीड़ को तितर बितर करने की खातिर लाठीचार्ज और आंसू गैस के गोलों का विकल्प सबसे पहले इस्तेमाल करते हैं। पर कश्मीर के आतंकवाद और हिंसक प्रदर्शनों के सिलसिले में यह विकल्प अब पुराने हो गए हैं क्योंकि इनका कोई असर ही नजर नहीं आता है। ऐसे में अंत में वे पैलेट गन का ही इस्तेमाल करने को मजबूर होते हैं।

तड़के 4 बजे ही जिन सुरक्षाकर्मियों को ड्यूटी में लगा दिया जाता हो और फिर सारा दिन और सारी रात खतरे के साए में समय काटने वालों की दशा क्या हो सकती है आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते हैं। ऐसा भी नहीं है कि ताजा हिंसक प्रदर्शनों में सिर्फ कश्मीरी अवाम ही जख्मी हुई है बल्कि 4 हजार के करीब जो जख्मी हुए हैं उनमें आधा आंकड़ा विभिन्न सुरक्षा बलों का है। इसमें केरिपुब और जम्मू कश्मीर पुलिस के जवान सबसे ज्यादा हैं। इनमें से कई प्रदर्शनकारियों की पिटाई के भी शिकार हुए हैं। उनकी पिटाई इसलिए हुई क्योंकि वे हिंसक प्रदर्शनकारियों के हाथ लग गए थे।

अगर कश्मीर में जारी आतंकवाद और हिंसक प्रदर्शनों की तस्वीर का दूसरा पहलू देखें तो आतंकवाद की परिस्थितियों के कारण बड़ी संख्या में कश्मीरी अवसाद का शिकार हो रहे हैं। और हालात की एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि सुरक्षाकर्मी भी डिप्रेशन का शिकार होने लगे हैं। सबसे अधिक डिप्रैशन का शिकार केरिपुब के जवान हुए हैं और यह भी एक सच है कि सेना के जवान भी अवसाद से नहीं बचे हैं।

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