आखिर क्यों चुना गया महाबलीपुरम को शी जिनपिंग के स्वागत के लिए

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अंकित सिंह । Oct 10 2019 1:39PM

महाबलीपुरम बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा एक प्राचीन शहर है जो कभी व्यापार का केंद्र हुआ करता था। यहां से पूर्वी देशों के साथ सीधे तौर पर व्यापार होता था। यहां के बंदरगाह से चीन से सामान आयात और निर्यात किया जाता था। इसी के आधार पर कहा जाता है कि भारत और चीन के व्यापारिक रिश्ते 1700 साल पुराने है।

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग 11 और 12 अक्टूबर को भारत दौरे पर रहेंगे। इस दौरान वह भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अनौपचारिक शिखर वार्ता करेंगे। यह ऐसा दूसरा मौका होगा जब चीन के राष्ट्रपति अनौपचारिक शिखर वार्ता के लिए वह भारत आएंगे। इससे पहले वे सितंबर 2014 में भारत दौरे पर आएं थे। उस समय प्रधानमंत्री मोदी ने शी जिनपिंग की आगवानी अपने गृह राज्य गुजरात के अहमदाबाद में किया था। एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के राष्ट्रपति को भारत की विविधताओं से अवगत कराने वाले हैं जब वह शी जिनपिंग का स्वागत तमिलनाडु के महाबलीपुरम में करेंगे। पर सवाल ये उठता है कि आखिर महाबलीपुरम को ही क्यों चुना गया है? तो ऐसे में आज हम आपको महाबलीपुरम से चीन के क्या संबंध है इस बारे में बताते हैं। 

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महाबलीपुरम को चुनना कोई इत्तेफाक नहीं है बल्कि एक सोची-समझी रणनीति के तहत हो रहा है। भारत के तमिलनाडु में समंदर किनारे बसे इस शहर की खूबसूरती इसके प्राचीन मंदिरों की वजह से पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। जानकारों की मानें तो यह दावा किया जाता है कि इस शहर को हिंदू राजा नरसिंह देव बर्मन ने स्थापित किया था। इसे मामल्लपुरम भी कहा जाता है। महाबलीपुरम चेन्नई से करीब 60 किलोमीटर दूर है। शहर में कुछ समय पहले चीन और रोम के प्राचीन सिक्के मिले थे। इसके बाद से दावा किया जाने लगा कि भारत का संबंध चीन से बहुत पुराना रहा है और पुराने समय में भी दोनों देशों के बीच में व्यापारिक संबंध थे। शायद इसी संबंध को एक बार फिर से नरेंद्र मोदी शी जिनपिंग को याद दिलाना चाहते है। शी जिनपिंग और नरेंद्र मोदी इस शहर के पुराने मंदिरों और स्थलों को भी देखने जा सकते हैं।

महाबलीपुरम बंगाल की खाड़ी के किनारे बसा एक प्राचीन शहर है जो कभी व्यापार का केंद्र हुआ करता था। यहां से पूर्वी देशों के साथ सीधे तौर पर व्यापार होता था। यहां के बंदरगाह से चीन से सामान आयात और निर्यात किया जाता था। इसी के आधार पर कहा जाता है कि भारत और चीन के व्यापारिक रिश्ते 1700 साल पुराने है। माना जाता है कि 1700 साल पहले यहां पल्लव वंश का शासन हुआ करता था। राजा नरसिंह द्वितीय के शासन के दौरान उन्होंने चीन के साथ व्यपारिक रिश्ते को बढ़ाने के लिए कई अहम काम किया। उन्होंने अपने दूत को भी चीन भेजा था। तिब्बत को लेकर चीन और पल्लव वंश के बीच स्ट्रैटजिक पैक्ट हुआ था।   

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इसके अलावा चीन के साथ हमारे धार्मिक संबंध भी काफी पुराने है। माना जाता है कि पल्लव राजा के तीसरे राजकुमार बौद्ध भिक्षु बन गए थे और चीन में उनकी खूब लोकप्रियता थी। उन्होंने चीन की भी यात्रा की थी। कहा जाता है कि चीनी दार्शनिक भी महाबलीपुरम का दौरा किया करते थे। 7वीं शताब्दी में चीनी यात्री ह्वेन सांग भारत आया था तो वह महाबलीपुरम भी पहंचा था। इसके अलावा भारत के किसी कोने में जाने के लिए चीनी नागरिक महाबलीपुरम का ही रास्ता अपनाते थे। अब यह देखना होगा कि मोदी अपने इस कूटनीतिक दांव से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को कितना प्रभावित कर पाते हैं।

- अंकित सिंह

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