महाराष्ट्र: चाचा-भतीजा से लेकर भाई-बहन तक चुनाव में कर रहे हैं दो-दो हाथ

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अभिनय आकाश । Oct 7 2019 3:04PM

कांग्रेस से बीजेपी में आए जयकुमार गोरे माण विधानसभा सीट से लगातार तीसरी जीत दर्ज करने की कवायद में लगे हैं। लेकिन इस सीट पर उनके सामने अपने भाई ही विरोधी के रुप में खड़े हैं। जयकुमार गोरे के खिलाफ शिवसेना ने उनके भाई शेखर गोरे को मैदान में उतार कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है।

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019 के ऐलान के बाद ही सियासी तापमान अपने उफान पर है। राजनीतिक प्रचार-प्रसार के बीच तमाम राजनीतिक दल बदलते पैंतरों से चुनावी रण को जीतने की कवायद में लगे हैं। लेकिन इस सियासी रण में कई सीटों पर रिश्तेदार एक-दूसरे को पटखनी देने की कोशिश में भी लगे हैं। ऐसी ही कुछ रोचक भिड़ंत के बारे में आपको बताते हैं। जहां वे संबंध तो एक ही परिवार से रखते हैं लेकिन अपने निर्वाचन क्षेत्र को जीतने के लिए एक दूसरे के खिलाफ जाने के साथ जीत सुनिश्चित करने के लिए जद्दोजहद में लगे हैं। महाराष्ट्र का सियासी मैदान पारिवार जंग की निगहबानी करता नजर आ रहा है, चाहे वह दो भाई-बहनों के बीच राजनीतिक विरासत की लड़ाई हो या चाचा-भतीजे के बीच की प्रतिस्पर्धा। आईए डालते हैं इन दिलचस्प भिड़ंत पर एक नजर। 

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अहेरी 

छत्तीसगढ़ की सीमाओं से सटे माओवाद से प्रभावित विधानसभा क्षेत्र अहेरी में शाही परिवार के सदस्यों के बीच एक रोचक मुकाबला देखने को मिलेगा। अपने क्षेत्र में महाराजा के नाम से प्रसिद्ध मंत्री अंबरीश राव अत्रम का सामना अपने चाचा और बाबा के नाम से जाने जाने वाले धरमराबा अत्रम से होगा। साल 2014 में बर्मिंघम से व्यापार कानून की पढ़ाई कर राजनीति में उतरने वाले अंबरीश ने अपने चाचा को पराजित कर फड़नवीस सरकार में मंत्री पद हासिल किया था। इस बार उनके चाचा एनसीपी की टिकट पर अंबरीश को चुनौती दे रहे हैं। संयोग से इस सीट पर कांग्रेस ने भी अपना उम्मीदवार दीपक अत्रम के रुप में मैदान में उतारा है।

निलंगा में 15 साल पुराना झगड़ा

निलंगा विधानसभा क्षेत्र महाराष्ट्र के 288 विधानसभा क्षेत्रों में से एक है। यह विधानसभा सीट लातुर जिले के अंतर्गत आती है और यह क्षेत्र लातुर लोकसभा क्षेत्र में है। यह इलाका अक्सर सूखे की समस्या से जूझता रहता है। लातूर के निलंगा में भाजपा के कद्दावर नेता और मंत्री निलंगेकर संभाजी दिलीपराव पाटील का मुकाबला अपने चाचा और कांग्रेस प्रत्याशी अशोक शिवाजीराव पाटिल निलंगेकर से होगा। साल 2014 में संभाजी ने अपने चाचा को 2700 वोटों से पराजित किया था। अशोक पूर्व सीएम शिवाजी पाटिल निलंगेकर के बेटे हैं जो रिश्ते में संभाजी के दादा हैं। इन दोनों के बीच राजनीतिक जंग संभाजी के पिता के निधन के बाद साल 2004 के आसपास शुरू हुई। 2004 में, संभाजी ने पहली बार अपने दादा और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम को पराजित कर दिया था।

परिवारिक जंग का मैदान बना माण

कांग्रेस से बीजेपी में आए जयकुमार गोरे माण विधानसभा सीट से लगातार तीसरी जीत दर्ज करने की कवायद में लगे हैं। लेकिन इस सीट पर उनके सामने अपने भाई ही विरोधी के रुप में खड़े हैं। जयकुमार गोरे के खिलाफ शिवसेना ने उनके भाई शेखर गोरे को मैदान में उतार कर मुकाबले को दिलचस्प बना दिया है। माण विधानसभा सीट कांग्रेस और एनसीपी के सबसे मजबूत गढ़ में से एक मानी जाती है। जहां अभी तक एक बार भी बीजेपी का खाता नहीं खुला है। 2014 के विधानसभा चुनाव में सभी बड़ी पार्टियों ने अलग होकर चुनाव लड़ा था। चुनाव के ठीक पहले बीजेपी और शिवसेना का रिश्ता टूट गया था और दोनों पार्टियां अलग-अलग होकर चुनाव लड़ी थीं। यह विधानसभा सीट सतारा जिले के अंतर्गत आती है और यह क्षेत्र माधा लोकसभा क्षेत्र में है। साल 2009 में निर्दलीय और 2014 में कांग्रेस के टिकट पर चुनावी किला फतह करने वाले जयकुमार पर बीजेपी ने दांव खेला है। जिसके बाद एनसीपी द्वारा समर्थित निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरे सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी, प्रभाकर देशमुख की उपस्थिति ने इस मुकाबले को और भी दिलचस्प बना दिया है। 

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पुसद

यह विधानसभा सीट यवतमाल जिले और यवतमाल वाशिम लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। यह विधानसभा क्षेत्र कांग्रेस और एनसीपी के सबसे मजबूत गढ़ों में से एक है। 1962 के बाद से यहां ज्यादातर एनसीपी का बोलबाला रहा है। मनोहर राजू सिंह हैं जो कि एनसीपी पार्टी के नेता हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में इन्हें 94152 मत हासिल हुए थे। इन्होंने शिवसेना के देवसरकार प्रकाशराव अबाजी को हराकर यह सीट जीती है। राज्य के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले सीएम वसंतराव नाइक और उनके भतीजे व पूर्व सीएम सुधाकरराव नाइक ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया है। इस बार वसंतराव के पोते और पूर्व मंत्री मनोहरराव नाइक के बेटे इंद्रनील का मुकाबला भाजपा के निलय नायक से होगा। मनोहरराव नाइक ने निलय को तैयार किया था लेकिन परिवार के उत्तराधिकार की लड़ाई में उन्होंने 2016 में भाजपा में शामिल होना बेहतर समझा। 

परली में भाई-बहन का मुकाबला 

चुनाव कोई भी हो, परली विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव जबर्दस्त खींचतान से भरा और संघर्षपूर्ण रहता है। चुनावों में सफलता और नाकामी का गणित दो बहन-भाई और मुंडे परिवार के लोगों के साथ जोड़कर देखा जाता है। राज्य की ग्रामीण विकास तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे और विधान परिषद में विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे के आमने-सामने होने की वजह से इस विधानसभा सीट एक बेहद ही रोमांचक मुकाबला देखने को मिलेगा जहां पंकजा मुंडे का मुकाबला उनके चचेरे भाई और विधान परिषद में विपक्ष के नेता धनंजय मुंडे से होगा। दोनों के बीच लड़ाई केवल विधानसभा सीट के लिए नहीं है, बल्कि भाजपा के वरिष्ठ नेता (दिवंगत) गोपीनाथ मुंडे की राजनीतिक विरासत को लेकर भी है। 2009 तक, धनंजय अपने चाचा के निर्वाचन क्षेत्र के कार्यों की देखरेख कर रहे थे। लेकिन जब गोपीनाथ मुंडे ने संसद के लिए चुने जाने पर अपनी बेटी को विधानसभा चुनाव के लिए नामित किया तब दोनों के बीच मतभेद पैदा हो गए। चाचा-भतीजे में दूरी इतनी बढ़ गई कि धनंजय ने राष्ट्रवादी पार्टी का दामन थाम लिया। जिसके बाद शुरूआत धनंजय के एनसीपी में शामिल होने और 2012 में अपने चाचा को चुनौती देने से हुई। वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव में धनंजय मुंडे अपनी बहन पंकजा के खिलाफ मैदान में उतरे, लेकिन पंकजा ने उन्हें 25,895 वोट से पराजित कर दिया। बाद में पंकजा को राज्य सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री बनाया गया। उधर, राकांपा ने भी धनंजय मुंडे को विधान परिषद में विपक्ष का नेता बनाते हुए मजबूती प्रदान की।

गेवराई में चाचा, भतीजा और ससुर के बीच जंग

पंडित परिवार की तीन पीढ़ियों ने बीड के गेवराई की राजनीति को दशकों से नियंत्रित करने का काम किया है। पूर्व मंत्री शिवाजीराव पंडित ने लगभग चार दशकों तक इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। उसके बाद उसके चचेरे भाई पंडित बड़मराव, जो तीन बार विधान सभा के लिए चुने गए। पंडित बड़मराव के भतीजे और एनसीपी के विधान परिषद सदस्य अमर सिंह को उनके कट्टर प्रतिद्वंदी के तौर पर देखा जाता है। लेकिन 2014 में पूर्व मंत्री मधुकर पवार के बेटे और बीजेपी नेता लक्ष्मण पवार ने पंडित बड़मराव को हराकर इस क्षेत्र में नए समीकरण को जन्म दिया। संयोग से पवार की बेटी की शादी भी पंडित परिवार में हुई है। इस सीट से एनसीपी उम्मीदवार विजय सिंह पंडित गेवराई के पूर्व मंत्री शिवाजीराव के बेटे हैं। यहां उनका सामना भारतीय जनता पार्टी के विधायक लक्ष्मण पवार से होगा। लक्ष्मण पवार और विजय सिंह पंडित के बीच रिश्तेदारी भी है। विजय पंडित, लक्ष्मण पवार की बहन के देवर हैं। जबकि बड़मराव बागी उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतरे हैं। गेवराई की राजनीति काफी हद तक शिवाजी राव, बड़मराव पंडित और शिवाजी के बड़े बेटे अमर सिंह पंडित के इर्द-गिर्द घूमती रही है। 2004 में बीजेपी, 2009 में एनसीपी और 2014 में फिर बीजेपी ने गेवराई सीट पर बाजी मारी है।

बीड में चाचा बनाम भतीजा

महाराष्ट्र के बीड में चाचा और भतीजे की लड़ाई की ओर समूचे राज्य का ध्यान लगा हुआ है। एनसीपी से शिवसेना में आए जयदत्त क्षीरसागर का उनके भतीजे और एनसीपी प्रत्याशी संदीप से मुकाबला होगा। संदीप ने भी राजनीतिक गुणों को अपने चाचा से ही अर्जित किया है। लेकिन दोनों के बीच की दूरी बढ़ने की शुरूआत लगभग चार साल पहले हुई जब एनसीपी के अजीत पवार के नेतृत्व में राज्य नेतृत्व का क्षीरसागर के साथ अच्छा तालमेल नहीं बैठ पाया। जिसके बाद पवार ने संदीप को इस क्षेत्र में पार्टी के वैकल्पिक चेहरे के रूप में प्रचारित करना शुरू किया। क्षीरसागर ने पवार को उन्हें दरकिनार करने और अपने भतीजे के साथ फूट डालने के लिए दोषी माना। जिसके बाद चुनावी वाक युद्ध ने इस दूरी को और बढ़ाने का काम किया। महाराष्ट्र के पूर्व मंत्री जयदत्त क्षीरसागर ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) से इस्तीफा दे दिया और फिर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हो गए। जिसके बाद उन्हें देवेंद्र फडणवीस सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया।

- अभिनय आकाश

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