मणिपुर में भले सुविधाओं का अभाव हो, पर देश के प्रति बच्चों, शिक्षकों की लगन देखिये

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राजधानी दिल्ली से करीब ढाई हज़ार किमी दूर उखरुल शहर में अधिकांश स्कूल और सार्वजनिक मैदान उन्नत नहीं हैं। परिणामस्वरूप बारिश के दिनों में इसकी हालत बहुत खराब हो जाती है। लेकिन इन कठिनाइयों के बावजूद स्कूली बच्चों में समारोह में भाग लेने का भरपूर जज़्बा देखते हुए यहां के शिक्षकों ने एक निर्णय किया।

उखरूल, मणिपुर। हम अकसर युद्धग्रस्त शहरों में लोगों विशेषकर बच्चों को होने वाली कठिनाइयों के बारे में पढ़ते रहते हैं। ऐसे अशांत क्षेत्रों में किस प्रकार बच्चे अपना जीवन गुज़ारते हैं? कैसे अपनी शिक्षा पूरी करते हैं? लेकिन इन्हीं ख़बरों के बीच हम उन क्षेत्रों को भूल जाते हैं जो शांत होते हैं। जहां के निवासी शांतिप्रिय होते हैं। विशेषकर दूरदराज़ ऐसे शांत शहरों में रहने वाले बच्चों को होने वाली असुविधाओं की तरफ हमारा ध्यान ही नहीं जाता है। हालांकि कठिनाइयां और चुनौतियां वहां भी होती हैं। इन्हीं चुनौतियों के बीच बच्चे ने केवल अपनी शिक्षा पूरी करते हैं बल्कि राष्ट्रीय समारोह में भी एक आम शहरियों की तरह बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। 

73वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर जब राष्ट्र जश्न में डूबा हुआ था। राजधानी दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाल क़िले की प्राचीर से देश को संबोधित करते हुए भारत की मज़बूत आर्थिक स्थिति का ख़ाक़ा खींच रहे थे और अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए बुनियादी ढांचे पर निवेश की योजना साझा कर रहे थे। ठीक उसी समय मणिपुर के उखरूल जिले के अवांगतांग इलाके के एकमात्र सरकारी स्कूल नागाकोमी फंड प्राइमरी स्कूल के बच्चे भी बारिश से लबालब भरे बख्शी हाई स्कूल के मैदान में इकट्ठा हुए थे। समारोह का हिस्सा बनने के लिए उन्हें लगातार बारिश का सामना करना पड़ रहा था। लेकिन इसके बावजूद इन छोटे-छोटे बच्चों में जश्ने आज़ादी का जोश भरपूर था। लगभग 27 हजार आबादी वाले इस क्षेत्र में यही एक सार्वजनिक मैदान है, जहां पहुँचने के लिए दुर्गम सड़कों से होकर गुज़रनी पड़ती है। 

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राजधानी दिल्ली से करीब ढाई हज़ार किमी दूर उखरुल शहर में अधिकांश स्कूल और सार्वजनिक मैदान उन्नत नहीं हैं। परिणामस्वरूप बारिश के दिनों में इसकी हालत बहुत खराब हो जाती है। लेकिन इन कठिनाइयों के बावजूद स्कूली बच्चों में समारोह में भाग लेने का भरपूर जज़्बा देखते हुए यहां के शिक्षकों ने एक निर्णय किया। उन्होंने उन छात्रों के लिए गमबूट्स (रबर के जूते) की व्यवस्था करने का फैसला किया। स्कूल की एक शिक्षिका थेरेसा चिपांग बताती हैं कि गम्बूट्स के बिना छात्र कीचड़ और फिसलन भरे मैदान में मार्चपास्ट करने में सक्षम नहीं हो सकते थे। इसके लिए आंशिक रूप से स्कूल के साथ-साथ शिक्षकों ने निजी रूप से आर्थिक मदद देने का फैसला किया। प्रिंसिपल सहित 12 शिक्षकों ने मिलकर 300-300 रूपए जमा किये। जिससे बच्चों के नए जूते, मोजे और रिबन खरीदने की व्यवस्था की गई। थेरेसा को खुशी है कि यहां के शिक्षकगण छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के लिए सभी प्रकार की चुनौतियों से लड़ने में सक्षम हैं और बच्चों के लिए स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय समारोह को सफलतापूर्वक संभव बनाते हैं।

मणिपुर की राजधानी इम्फाल से करीब 81 किमी की दूरी पर स्थित उखरुल शहर प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर एक शांत इलाक़ा है। यहां तांगखुल नागा जनजाति की बहुलता है। उत्तर-पूर्वी राज्य के बाकी हिस्सों की तरह यह शहर भी प्राकृतिक संपदा से समृद्ध है। लेकिन इसके बावजूद इस प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा की स्थिति पर तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। नागाकोमी फंड प्राइमरी स्कूल में लगभग 80 छात्र अध्ययनरत हैं। यह सभी बच्चे हाशिये पर रहने वाले समाज के सबसे कमज़ोर तबके से आते हैं। अधिकांश माता-पिता ऐसे गरीब किसान हैं जो अपने बच्चों के लिए स्कूल की वर्दी, जूते, किताबें और स्टेशनरी का खर्च तक उठाने में असमर्थ हैं। थेरेसा चिपांग के मुताबिक “तीन साल की उम्र तक के कई ऐसे बच्चे हैं जो बिना जूते के स्कूल आते हैं। क्योंकि जूते इतने महंगे हैं कि उनके माता-पिता इस खर्च को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।”

इसी वर्ष मार्च में वुंगचुईवोन और थेरेसा ने अन्य शिक्षकों के साथ मिलकर भारी बारिश के दौरान छात्रों के हित में कुछ करने की सोची। उन्होंने स्कूल से लगभग 300 मीटर की दूरी पर कैथोलिक चर्च द्वारा संचालित एक प्रतिष्ठित निजी संस्थान सेवियो स्कूल से संपर्क स्थापित करने का फैसला किया। इस स्कूल में उच्च आर्थिक आय प्राप्त परिवारों के बच्चे पढ़ते हैं। इस वर्ष इस स्कूल के प्रिंसिपल ने अपने छात्रों के लिए नई यूनिफॉर्म शुरू करने की घोषणा की। इस अवसर का भरपूर लाभ उठाते हुए वुंगचुईवोन और थेरेसा समेत सरकारी स्कूल के अन्य शिक्षकों ने सेवियो स्कूल की पुरानी ड्रेस को इकट्ठा करने का फैसला किया। जिसका सेवियो स्कूल प्रबंधन और अभिभावकों ने भरपूर स्वागत किया। कई माता-पिता और छात्र आगे आए और उन्होंने अपनी पुरानी वर्दी दान की। महीने के अंत में इस अभियान के तहत 60 से अधिक ऊनी लाल स्वेटर, पैंट और स्कर्ट एकत्र किए गए।

बच्चों को होने वाली इस परेशानी का प्रमुख कारण राज्य सरकार द्वारा आवंटित धनराशि का अनियमित होना है। हालांकि राज्य के शिक्षा विभाग की ओर से नागाकोमी फंड प्राइमरी स्कूल के लिए प्रति वर्ष प्रति छात्र 400 रुपये का आवंटन किया जाता है जो वर्दी की लागत को पूरा करने के लिए बहुत कम है। इस संबंध में स्कूल की प्रिंसिपल एस. तम्मिला का कहना है कि “सितंबर जा चुका है, शैक्षणिक वर्ष लगभग समाप्त होने को है लेकिन अभी तक हमें बच्चों के लिए किताबें, ड्रेस और मध्याह्न भोजन खरीदने के लिए वर्ष 2018 और 2019 की राशि आवंटित नहीं की गई है। हम अपनी जेब से योगदान करके किताबें खरीदते हैं ताकि छात्र अपनी पढ़ाई में न चूकें। कई बार मैंने और अन्य शिक्षकों ने अपनी जेब से बच्चों के लिए मध्याह्न भोजन का सामान खरीदा है क्योंकि कई बार हमारे पास केवल दोपहर के भोजन के लिए चावल खरीदने के पैसे होते हैं।

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सरकारी स्कूलों के छात्रों और शिक्षकों को होने वाली एक अन्य कठिनाई सरकार द्वारा निर्धारित पुस्तकों का समय पर उपलब्ध नहीं होना है। मणिपुर में प्राथमिक स्कूलों के लिए निर्धारित पाठ्यक्रमों में से केवल गणित, अंग्रेजी और तंगखुल (उखरुल के मूल निवासियों द्वारा बोली जाने वाली भाषा) की पुस्तकें सरकार द्वारा प्रदान की जाती हैं। अंग्रेजी व्याकरण, सामान्य ज्ञान और नैतिक विज्ञान जैसे विषयों की पुस्तकें सरकार द्वारा उपलब्ध नहीं करायी जाती हैं। छात्रों को समग्र शिक्षण सुनिश्चित करने के उद्देश्य से इन स्कूलों के शिक्षक अपने प्रयासों से इन विषयों को पढ़ाते हैं। शिक्षकों का मानना है कि इन मूल विषयों तक छात्रों का पहुंचना उनका अधिकार है, जो भविष्य में उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनने और विशेषाधिकार प्राप्त छात्रों के बराबर रहने के लिए तैयार करेगा। थेरेसा चिपांग के अनुसार ऐसे माता-पिता हैं जो इन पाठ्यपुस्तकों को खरीदने का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं, हम उन्हें किताबें खरीद कर देते हैं।

इन प्रयासों का सकारात्मक परिणाम आने लगा है। बच्चों की शिक्षा का न केवल स्तर बढ़ा है बल्कि उनमें शिक्षा के प्रति दिलचस्पी भी बढ़ी है। यही कारण है कि तमाम चुनौतियों के बावजूद नियमित रूप से स्कूल आने वाले छात्रों की संख्या भी बढ़ी है। शिक्षकों के प्रयासों की सराहना करते हुए, माता-पिता ने अपने बच्चों की पढ़ाई में रुचि दिखानी शुरू कर दी है, और अब वह अपने बच्चों को स्कूल छोड़ने भी आते हैं। जबकि ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था। यहां शिक्षक अपनी निर्धारित भूमिकाओं से परे जा रहे हैं ताकि छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। हालांकि ऐसे सकारात्मक क़दम की पहल सरकार की तरफ से की जानी चाहिए थी। बहरहाल नागाकोमी फंड प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों की पहल जहां अनुकरणीय है वहीं तमाम चुनौतियों और सुविधाओं की कमी के बावजूद शिक्षा के प्रति इन छोटे बच्चों का समर्पण भी बेमिसाल है।

-मसोयो हुनफुन अवांगशी

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