कश्मीर पर अप्रत्याशित फैसला कर सकती है मोदी सरकार
नोटबंदी जैसे अप्रत्याशित फैसले करके देश को चौंकाने वाली केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार आगामी दिनों में भी कुछ ऐसे फैसले कर सकती है जिन पर अन्य राजनीतिक पार्टियां ही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के लोग भी अचंभित हो सकते हैं।
नोटबंदी जैसे अप्रत्याशित फैसले करके देश को चौंकाने वाली केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार आगामी दिनों में भी कुछ ऐसे फैसले कर सकती है जिन पर अन्य राजनीतिक पार्टियां ही नहीं बल्कि भारतीय जनता पार्टी के लोग भी अचंभित हो सकते हैं। नरेंद्र मोदी की यह सरकार जब सत्ता में आई थी तब से ही यह कयास लगाए जाने लगे थे कि वह जिन हिंदुत्व वादी मुद्दों को सामने रखकर सत्ता में काबिज हुई है वे सभी मुद्दे हल कर देगी। 'सबका साथ सबका विकास' का नारा लेकर चली मोदी सरकार ने जहां विकास को प्राथमिकता दी, वहीं अपनी हिंदुत्व वाली छवि को भी बरकरार रखा। निश्चित ही शुरू के 2 सालों में सरकार ने परिस्थितियों को भांपने और समझने में अपना समय व्यतीत किया तो वहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारत की एक अलग छवि निर्मित करने की कोशिश में दुनिया का कूटनीतिक दौरा भी प्रधानमंत्री द्वारा किया गया जिससे उन्हें विदेशी दौरों पर रहने वाला प्रधानमंत्री तक कहा गया।
गौरतलब है कि भारतीय जनता पार्टी चुनाव में अपने तीन प्रमुख मुद्दों के साथ जनता के बीच में थी। यह मुद्दे थे राम मंदिर का निर्माण, कश्मीर से धारा 370 हटाना और विदेशों में जमा काला धन बाहर लाना तथा भ्रष्टाचार पर काबू पाना। लोकसभा के चुनाव में अप्रत्याशित बहुमत पा कर सत्ता पर काबिज हुई मोदी सरकार ने शुरू के 2 सालों में इन मुद्दों पर कुछ किया यह प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं आया, लेकिन ऐसा नहीं है कि सरकार इन मुद्दों पर चुप बैठी रहीI लोकसभा में बहुमत के बावजूद राज्यसभा में बहुमत का इंतजार करना सरकार की मजबूरी के साथ एक सोची-समझी रणनीति थीI बावजूद इसके जब सरकार को लगा कि अब कड़े फैसले लिए जाने चाहिए तो सबसे सरल उपाय उसने नोटबंदी को आजमाकर किया। भारी अंतर्विरोधों के बावजूद नोटबंदी में सरकार कामयाब रही और करोड़ों रुपए का कालाधन जो लोगों के पास जमा था बैंकों में आ गया। लेकिन, इससे जुड़े कई सवाल अभी जवाब तलाश रहे हैं! नोटबंदी जैसे अप्रत्याशित फैसले करने के बाद जिस ढंग से प्रधानमंत्री ने जनता से अपनी बात कही और उसका समर्थन उन्हें मिला उसने मोदी सरकार को बल प्रदान किया, विदेशों में जमा काला धन भी अब शीघ्र लौटेगा इसकी उम्मीद भी देश वासियों द्वारा की जा रही है। इस बीच पाकिस्तान की सीमा में घुस कर सर्जिकल स्ट्राईक कर सरकार ने देश को चौंकाया ही नहीं बल्कि दुनिया में ये सन्देश भी दे दिया की भारत आतंकवाद के खिलाफ किसी भी हद तक जा सकता है और उसे किसी की सहायता की जरुरत नहीं है।
मोदी सरकार के ये दोनों फैसले उस समय किये गये जब उन्हें राज्य सभा में पूर्ण बहुमत नहीं था और अब जबकि सरकार ने लोकसभा के साथ-साथ राज्यसभा में भी अपना बहुमत स्थापित कर लिया है तब वह शीघ्र ही कानूनन तरीके से कोई अप्रत्याशित फैसला भी कर सकती है। ऐसा करने में उसे अब कोई दिक्कत भी महसूस नहीं होगी, क्योंकि तीनों संवैधानिक पदों पर उनके ही दल के व्यक्ति पदस्थ हैं, निश्चित ही ऐसा कोई कानून जो देश हित में होगा स्वीकृत करने में सरकार को कोई असुविधा नहीं होगी।
कयास तो यह लगाए जा रहे हैं कि सरकार जिन मुद्दों पर जनता से बहुमत ले कर आई थी उनमें से एक यानी अब अगला अप्रत्याशित कदम कश्मीर को लेकर ही होगा। इसके एक नहीं अनेक कारण हैं। ऐसा नहीं है कि कश्मीर में महबूबा मुफ्ती के साथ मिलकर सरकार बनाने के बाद सरकार चुप बैठी है। भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बनाने के बावजूद कश्मीर के हालात से दो चार होना केंद्र के लिए आम बात है। हाल ही में जम्मू कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का वो बयान कि कश्मीर की स्वायत्तता को छेड़ा गया तो वहां तिरंगा उठाने वाले लोग नहीं मिलेंगे, किसी ना किसी बात का संकेत करता है कि वहां सरकार कुछ न कुछ करने जा रही है? जब बीजेपी और महबूबा की संयुक्त सरकार है तो मुख्यमंत्री को क्या वजह थी कि वो ऐसा बयान सार्वजानिक तौर पर दें, वह भी उस समय जब दहशत गर्दों के कमांडर भारतीय सेना द्वारा लगातार मारे जा रहे हैं। क्या कश्मीर में भारतीय जनता पार्टी के साथ सरकार बन जाने के बाद भी हालात में सुधार हुआ नहीं? या मुफ्ती सरकार कश्मीर के मुद्दे पर मौन और असहाय है?
गृह मंत्री राजनाथ सिंह से हुई महबूबा की हुई बार बार की बैठकों के बाद इसे सामान्य मुलाक़ात क्यों बताया जा रहा है? इन सवालों के जवाब के परिप्रेक्ष्य में यह कयास लगाये जा रहे हैं कि केंद्र सरकार कश्मीर को ले कर कोई बड़ा अप्रत्याशित निर्णय लेने जा रही है। वह निर्णय क्या होगा? कैसे होगा? अभी दावे से नहीं कुछ कहा नहीं जा सकता मगर जानकार कयास लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार कभी भी कश्मीर की स्वायत्त वाले अनुच्छेद 35 (A) को हटा सकती है। ''ये अनुच्छेद 35 (A) जम्मू-कश्मीर की विधान सभा को ये अधिकार देता है कि वो 'स्थायी नागरिक' की परिभाषा तय कर सके और उनकी पहचान कर विभिन्न विशेषाधिकार भी दे सके।'' अनुच्छेद 35 (A) को हटाने की ये बात महबूबा के कानों तक भी है तभी उनका वो झंडे वाला बयान आया है। वैसे सुरक्षा बलों द्वारा जिस तरह से कश्मीर में अलगाववादी और आतंकी कमांडरों को निशाना बनाया जा रहा है उससे भी सीमा पार से आ रहे आतंकवाद पर कमी आई है, हालत सुधरे नहीं तो बिगड़े भी नहीं हैं, स्थिर हुए हैं। अनुच्छेद 35 (A) के बाद इससे बदतर हालत की उम्मीद नहीं की जा सकती, ''ये अनुच्छेद 35 (A) हटाने के लिए संसद के दोनों सदनों से कानून को पास करवाने में अब कोई असुविधा सरकार को नहीं होगी।
क्या है धारा 35-ए का मामला
संविधान के अनुच्छेद 35-ए को 14 मई 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में जगह मिली थी। संविधान सभा लेकर संसद की किसी भी कार्यवाही में कभी अनुच्छेद 35-ए को संविधान का हिस्सा बनाने के संदर्भ में किसी संविधान संशोधन या बिल लाने का जिक्र नहीं मिलता। अनुच्छेद 35-ए को लागू करने के लिए तत्कालीन सरकार ने धारा 370 के अंतर्गत प्राप्त शक्ति का इस्तेमाल किया था।
अनुच्छेद 35-ए से जम्मू-कश्मीर सरकार और वहां की विधानसभा को स्थायी निवासी की परिभाषा तय करने का मनमाना अधिकार मिल गया। इसी के साथ राज्य सरकार को ये अधिकार भी मिला कि वो आजादी के वक्त दूसरी जगहों से आए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू-कश्मीर में किस तरह की सहूलियतें दे अथवा नहीं दे।
-श्याम यादव
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