अटल बिहारी वाजपेयी जी को संघ में नारायण राव तर्टे लेकर आये थे

narayan-rao-tarte-bring-atal-bihari-vajpayee-in-rss
विजय कुमार । Sep 1 2018 1:40PM

लोग अटल बिहारी वाजपेयी को तो जानते हैं; पर जिस व्यक्ति ने उन्हें संघ से जोड़ा, वे थे श्री नारायणराव तर्टे। श्री तर्टे का जन्म 13 मार्च, 1913 को अकोला (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनके पिता श्री विश्वनाथ तर्टे की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी।

लोग अटल बिहारी वाजपेयी को तो जानते हैं; पर जिस व्यक्ति ने उन्हें संघ से जोड़ा, वे थे श्री नारायणराव तर्टे। श्री तर्टे का जन्म 13 मार्च, 1913 को अकोला (महाराष्ट्र) में हुआ था। उनके पिता श्री विश्वनाथ तर्टे की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। अतः नारायण राव किसी तरह मैट्रिक तक पढ़ सके। इसी बीच उनका सम्पर्क संघ से हुआ। नारायण राव की इच्छा प्रचारक बनने की थी; पर अकोला के कार्यकर्ताओं ने यह कहकर उन्हें हतोत्साहित किया कि उनकी शिक्षा बहुत कम है। पिताजी के देहांत के बाद नारायण राव से रहा नहीं गया और वे नागपुर आकर संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार से मिले।

उन दिनों प्रचारक प्रायः उच्च शिक्षा प्राप्त होते थे; पर डॉ. हेडगेवार ने जब नारायण राव के मन में संघ कार्य की लगन देखी, तो उन्हें अनुमति दे दी और ग्वालियर जाकर शाखा खोलने को कहा। चलते समय डॉ. जी ने उन्हें अपने हाथ से लिखी संघ की प्रार्थना, चार रुपये, समर्थ स्वामी रामदास कृत ‘दासबोध’ तथा लोकमान्य तिलक द्वारा लिखित ‘गीता रहस्य’ नामक पुस्तक दी। इस अनमोल पूंजी के साथ 1938 में नारायण राव ग्वालियर आ गये।

ग्वालियर में वे रेलवे स्टेशन के पास ‘श्रीकृष्ण धर्मशाला’ में रुके; पर वहां तीन दिन से अधिक रुकना मना था। अतः हर तीसरे दिन उन्हें धर्मशाला बदलनी पड़ती थी। एक महीने तक वे विद्यालय जाने वाले छात्रों को देखते और परखते रहे। अंततः उन्होंने दत्तात्रेय त्रयंबक कल्याणकर नामक छात्र को चुना। उसके माध्यम से उनका परिचय ग्वालियर के अनेक लोगों से हुआ और फिर जनकगंज की ‘पोतनीस धर्मशाला’ में रहने की स्थायी व्यवस्था हुई।

इस दौरान उन्होंने कहां और क्या खाया, यह किसी को नहीं पता। क्योंकि ऐसी कठिनाइयों की चर्चा नारायण राव ने कभी नहीं की; पर अपने परिश्रम से उन्होंने ग्वालियर में संघ का बीज बो दिया, जो कुछ ही समय में विशाल पेड़ बन गया। उनके प्रयास से केवल नगर ही नहीं, तो निकटवर्ती ग्रामीण क्षेत्र में भी अनेक शाखाएँ खुल गयीं। इसके बाद उन्होंने भिंड, मुरैना, शिवपुरी, गुना जैसे नगरों में प्रवास किया और वहां भी शाखाओं की स्थापना की।

उन दिनों शाखा पर प्रायः मराठीभाषी छात्र ही आते थे। पर नारायण राव ने अनेक हिन्दीभाषियों को भी स्वयंसेवक बनाया। उन दिनों ग्वालियर की शाखा पर आने वाले स्वयंसेवकों में से एक थे श्री अटल बिहारी वाजपेयी, जो आगे चलकर सांसद, विदेश मंत्री और फिर प्रधानमन्त्री बने। उन्होंने अपने सामाजिक जीवन पर नारायण राव के प्रभाव को स्पष्टतः स्वीकार किया है। प्रधानमन्त्री बनने के बाद जब वे नागपुर आये, तो संघ कार्यालय पर आकर उन्होंने नारायण राव से आशीर्वाद लिया। 

कुछ समय नारायण राव ने उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में भी कार्य किया। लौकिक शिक्षा कम होने पर भी वे हिन्दी, अंग्रेजी और मराठी के साथ ही अन्य कई भाषाओं के ज्ञाता थे। जब संघ के प्रयास से भारतीय भाषाओं में ‘हिन्दुस्थान समाचार’ नामक समाचार संस्था की स्थापना की गयी, तो नारायण राव को उस काम में लगाया गया। कई वर्ष तक वे विश्व हिन्दू परिषद के हिन्दी और अंग्रेजी में छपने वाले मुखपत्र ‘हिन्दू विश्व’ के सम्पादक भी रहे।

वृद्धावस्था में वे नागपुर में महाल स्थित संघ कार्यालय में रहने लगे। वहीं वह ‘मोहिते का बाड़ा’ भी है, जहां डॉ. हेडगेवार ने पहली शाखा लगायी थी। अन्तिम समय तक नारायण राव उसी शाखा में जाते रहे। एक अगस्त, 2005 को उस महान कर्मयोगी ने अपने सक्रिय और सार्थक जीवन को विराम दे दिया।

-विजय कुमार

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़