जनता की नब्ज़ नापने की कला आप ही जानते हो नवीन बाबू

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अभिनय आकाश । May 25 2019 6:49PM

बीजू जनता दल ने मोदी की सुनामी में भी लोकसभा की 12 सीटों को अपने नाम किया जबकि राज्य विधानसभा चुनाव में बीजद को 112 सीट मिली हैं, भाजपा को 23 और कांग्रेस के हिस्से सिर्फ नौ सीटें आई हैं। राज्य में भाजपा को 32 प्रतिशत वोट मिला है। जबकि बीजद को 44 प्रतिशत वोट मिले है।

नरेंद्र मोदी व अमित शाह की जोड़ी पूरे देश में ऐसी दौड़ी की भाजपा को सरे दिन दीवाली मनाने का मौका मिल गया वो भी मई के महीने में, लेकिन मोदी की सुनामी से दक्षिण भारत के तीन राज्य अछूते रह गए। आंध्र प्रदेश में जगन मोहन रेड्डी के करिश्मे, केरल में राहुल के प्रभाव और तमिलनाडु में डीएमके-कांग्रेस गठबंधन के दवाब की बाते तो होती रहेंगी। एक ऐसा राज्य भी है जिसकी सियासत उसके राजनेता की तरह ही शांत, सौम्य और संक्षिप्त हुआ करती है। ऐसी शख्सियत के स्वामी हैं नवीन पटनायक जो ओडिशा की जनता के नस-नस से वाकिफ हैं। 19 सालों से ओडिशा का नेत़त्व कर रहे हैं। 

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जनता की नजर में नरेंद्र मोदी देश की मजबूती हैं तो ओडिशा में पटनायक प्रदेश के विकास के लिए जरूरी हैं। ओडिशा में बेशक भाजपा सात सीटों के उछाल के साथ 21 में से 8 सीटें जीतकर उम्मीदों के उफान पर है। लेकिन विधानसभा चुनावों में भाजपा की पैठ बढ़ाने की कवायद के मध्य नवीन बाबू के नाम से लोकप्रिय नवीन पटनायक खड़े हो गए। पटनायक के चुनावी तरकश से निकले तीर ने भाजपा के ओडिशा जीतने के अरमान, हौसले और उम्मीदों को छलनी कर दिया।

ये पांचवीं बार है जब वो राज्य की सत्ता पर काबिज होने जा रहे हैं। सिक्किम के पवन चामलिंग की तर्ज पर पटनायक ने ओडिशा को अपना मजबूत दुर्ग बना लिया। ओडिशा के सियासी युद्ध पर गौर करें तो इस बार पटनायक के सामने दोहरी चुनौती थी। एक तरफ शक्तिशाली और देश विजय का सपना संजोये भाजपा का प्रखर और राष्ट्रवादी कैंपेन व विश्व विख्यात ब्रांड मोदी थे तो दूसरी तरफ प्रदेश की सियासत में 19 सालों से लगातार काबिज होने की वजह से सत्ता विरोधी लहर का सामना करने जैसी बातें। लेकिन नवीन पटनायक ने जहां भाजपा के ओडिशा विजय के सपनों को साकार नहीं होने दिया वहीं एंटी इंकम्बेंसी जैसे मिथकों को भी विराम दिया। 

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स्कूल के दिनों में पप्पू नाम से पुकारे जाने वाले नवीन बाबू ने सीएम का सफर तो 19 साल पहले शुरू किया था लेकिन जब धारा खिलाफ में बह रही हो, हवाओं में विरोध के बारूद सुलग रहे हो और बैजयंत पांडा जैसे अपनों के विभीषण बन जाने से खतरा दिन-रात मंडरा रहा हो तब भी खुद पर भरोसा कैसे किसी पप्पू को एक राज्य का भाग्य नियंत्रक बना देता है, नवीन पटनायक इसकी शानदार मिसाल हैं। विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद पटनायक 29 मई को राजभवन में एक सामान्य कार्यक्रम में शपथ ले सकते हैं। 

बीजू जनता दल ने मोदी की सुनामी में भी लोकसभा की 12 सीटों को अपने नाम किया जबकि राज्य विधानसभा चुनाव में बीजद को 112 सीट मिली हैं, भाजपा को 23 और कांग्रेस के हिस्से सिर्फ नौ सीटें आई हैं। राज्य में भाजपा को 32 प्रतिशत वोट मिला है। जबकि बीजद को 44 प्रतिशत वोट मिले है। लेकिन ऐसा नहीं है कि मोदी लहर का उन्हें अंदेशा नहीं था। इसीलिए अपनी परंपरागत हिंजीली सीट के साथ-साथ पटनायक ने पश्चिमी ओडिशा की बिजेपुर सीट से भी चुनाव लड़ा और दोनों ही सीट पर 59.78 और 66.32 प्रतिशत मत प्राप्त कर जीत दर्ज की। महिलाओं की चुनावी भागीदारी में भी ओडिशा ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। बीजद ने 21 सीटों पर 7 महिलाओं को चुनाव लड़ने का मौका दिया जिनमें से 6 महिला प्रत्याशी जीतने में कामयाब रहीं। ओडिशा के लिए अच्छी बात ये भी रही कि यहां भाजपा ने भी दो महिला सांसद दिए। इस हिसाब से ओडिशा से 8 महिला सांसदों की इस बार भागीदारी बनी।

मोदी मैजिक पर भारी पड़ा ओडिशा का नवीन फैक्टर

नवीन पटनायक कभी बढ़-चढ़कर अपनी तारीफ करते नहीं नजर आते हैं। 

राजनीतिक महत्वकांक्षा ज्यादा नहीं प्रकट करते हैं और केंद्र की बजाय राज्य पर ही पूरा फोकस। 

ज्यादा बोलते हुए और अपनी शेखी बघारते हुए कभी नहीं देखा गया। 

केंद्र में किसी की भी सरकार रही हो ओडिशा के विकास और विशेष पैकेज पर साथ देने वाले को समर्थन देने की बात खुल कर करते हैं।

ओडिशा में फानी तूफान में राज्य सरकार के द्वारा किए गए राहत एवं बचाव कार्य को सराहना मिली।

नवीन पटनायक का लोकसभा में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का वादा मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ।

किसानों के लिए कालिया योजना और एक रुपये में चावल देने से नवीन बाबू की लोकप्रियता कायम रही।

- अभिनय आकाश

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