अब शाह की मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता
भाजपा में आज अमित शाह की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। शाह ने अपने गृह राज्य गुजरात में सब को पछाड़ कर अपनी पसंद के व्यक्ति विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बनाकर अपने महाबली होने का परिचय दिया।
अमित शाह भाजपा के महाबली के रूप में अवतरित हो गये हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सबसे विश्वस्त साथियों में उन्हें शुमार किया जाता है। बताया जाता है कि लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे कद्दावर नेताओं की इच्छा के विपरीत उन्हें भाजपा की कमान सौंपी गयी थी। भाजपा की राजनीति में शाह को काफी जूनियर नेता माना जाता था। मगर मोदी की नजदीकी ने शाह को महाबली बना दिया। संघ का स्वयंसेवक होने के कारण आरएसएस को भी शाह के नाम पर कोई एतराज नहीं था। शाह राजनीति के निपुण खिलाड़ी हैं। वह गुजरात दंगों से बेदाग निकले थे। कभी कोई चुनाव भी नहीं हारा। विश्वसनीयता उनके रग रग में थी। अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने मोदी विरोधियों को किनारे लगाया और पार्टी में एक नई संस्कृति को जन्म दिया। उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में मिली सफलता ने उन्हें आसमान पर पहुँचा दिया। यहीं से शाह ने राजनीति की नवीन पारी शुरू की। सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, नितिन गडकरी सरीखे नेताओं ने भी शाह को नेता स्वीकार करने में अपनी भलाई समझी। बताते हैं हाल के केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में भी शाह की ही चली। भाजपा में आज शाह की मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिलता। शाह ने अपने गृह राज्य गुजरात में सब को पछाड़ कर अपनी पसंद के व्यक्ति विजय रूपानी को मुख्यमंत्री बनाकर अपने महाबली होने का परिचय दिया।
शाह का जन्म 22 अक्टूबर 1964 को महाराष्ट्र के मुंबई में एक व्यापारी के घर हुआ था। राजनीति में आने से पहले वे मनसा में प्लास्टिक के पाइप का पारिवारिक बिजनेस संभालते थे। वे बहुत कम उम्र में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे। 1982 में उनके अपने कॉलेज के दिनों में शाह की मुलाकात नरेंद्र मोदी से हुयी। 1983 में वे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े और इस तरह उनका छात्र जीवन में राजनीतिक रुझान बना।
शाह 1986 में भाजपा में शामिल हुये। शाह को पहला बड़ा राजनीतिक मौका मिला 1991 में, जब आडवाणी के लिए गांधीनगर संसदीय क्षेत्र में उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला। दूसरा मौका 1996 में मिला जब अटल बिहारी वाजपेयी ने गुजरात से चुनाव लड़ना तय किया। इस चुनाव में भी उन्होंने चुनाव प्रचार का जिम्मा संभाला। अमित शाह ने 1997 में गुजरात की सरखेज विधानसभा सीट से उप चुनाव जीतकर अपने राजनीतिक कॅरियर की शुरुआत की। 1999 में वे अहमदाबाद डिस्ट्रिक्ट कोऑपरेटिव बैंक (एडीसीबी) के प्रेसिडेंट चुने गए। 2009 में वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष बने। 2014 में नरेंद्र मोदी के अध्यक्ष पद छोड़ने के बाद वे गुजरात क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने। 2003 से 2010 तक उन्होंने गुजरात सरकार की कैबिनेट में गृह मंत्रालय का जिम्मा संभाला।
वह गुजरात के सरखेज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से चार बार विधायक निर्वाचित हो चुके हैं। शाह तब सुर्खियों में आए जब 2004 में अहमदाबाद के बाहरी इलाके में कथित रूप से एक फर्जी मुठभेड़ में 19 वर्षीय इशरत जहां, जीशान जोहर और अमजद अली राणा के साथ प्रणेश पुलिस मुठभेड़ में मारे गये। गुजरात पुलिस ने दावा किया था कि 2002 में गोधरा बाद हुए दंगों का बदला लेने के लिए ये लोग गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को मारने आए थे। इस मामले में गोपीनाथ पिल्लई ने अदालत में एक आवेदन देकर मामले में अमित शाह को भी आरोपी बनाने की अपील की थी। हालांकि 15 मई 2014 को सीबीआई की एक विशेष अदालत ने शाह के विरुद्ध पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण इस याचिका को ख़ारिज कर दिया।
एक समय ऐसा भी आया जब सोहराबुद्दीन शेख की कथित फर्जी पुलिस मुठभेड़ के मामले में उन्हें 25 जुलाई 2010 में गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा। शाह पर आरोपों का सबसे बड़ा हमला खुद उनके बेहद खास रहे गुजरात पुलिस के निलंबित अधिकारी डीजी बंजारा ने किया। सोलहवीं लोकसभा चुनाव के लगभग 10 माह पूर्व शाह को दिनांक 12 जून 2013 को भारतीय जनता पार्टी के उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया, तब प्रदेश में भाजपा की मात्र 10 लोक सभा सीटें ही थीं। उनके संगठनात्मक कौशल और नेतृत्व क्षमता का अंदाजा तब लगा जब 16 मई 2014 को सोलहवीं लोकसभा के चुनाव परिणाम आए। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 73 सीटें हासिल की। प्रदेश में भाजपा की ये अब तक की सबसे बड़ी जीत थी। इस करिश्माई जीत के शिल्पकार रहे अमित शाह का कद पार्टी के भीतर इतना बढ़ा कि उन्हें भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष का पद प्रदान किया गया।
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