साक्षात्कारः पशुपति कुमार पारस ने चिराग पासवान को पदों से हटाने के कारण बताये

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पशुपति कुमार पारस ने कहा, ''उसी दिन से मैं पार्टी के सीनियर नेताओं के साथ रायशुमारी करने लगा, पार्टी को कैसे जीवित रखा जाए, उस रणनीति पर काम शुरू कर दिया। अंत में अलग होने का फैसला मजबूरी में लेना पड़ा। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा, अगर चिराग चाहें तो?''

लोक जनशक्ति पार्टी में दो फाड़ हो चुके हैं। एक हिस्सा चिराग पासवान के पास है, दूसरे पर पार्टी सांसद पशुपति कुमार पारस का कब्जा हो चुका है। आनन-फानन में वह पार्टी सांसदों और वरिष्ठ नेताओं को लेकर अध्यक्ष और संसदीय दल के नेता भी बन गए हैं। इस कहानी के पीछे उन्होंने बिना नाम लिए एक व्यक्ति को दोषी ठहराया है। वह नाम है चिराग पासवान के राजनीतिक सलाहकार कहे जाने वाले सौरभ पांडे का। पार्टी में फूट, बिखराव, चाचा-भतीजे में अलगाव यानी सबका कारण उन्हीं को मानते हैं। अध्यक्ष बन जाने के बाद क्या होगी आगे की प्लानिंग, क्या पार्टी का दूसरे दल में होगा विलय या केंद्र में मंत्री बनने का बढ़ाएंगे दबाव, तमाम मसलों पर डॉ. रमेश ठाकुर ने पशुपति कुमार पारस के साथ की बातचीत। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-

  

प्रश्न- सौरभ पांडे का नाम लिए बिना, क्या आप पूरे घटनाक्रम की मुख्य वजह उन्हीं को मानते हैं?

उत्तर- मुझे नाम लेने की आवश्यकता नहीं, पूरे बिहार को पता है। उस व्यक्ति का वर्चस्व पार्टी में कैसा है, बताने की जरूरत नहीं? वैसे बता दूं, इस घटना को नेता परिर्वतन समझा जाए, तानाशाही और पार्टी में दो फाड़ का नाम नहीं देना चाहिए। जिस व्यक्ति का आप नाम ले रहे हैं उनकी वजह से पार्टी में प्रजातंत्र और लोकतंत्र खत्म होने के कगार पर पहुंच गया था। उसे मुझे बचाना था। अगर भईया रामविलास पासवान जीवित होते तो शायद वह व्यक्ति अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाता। बिहार में एनडीए से अलग विधानसभा चुनाव लड़ने के पीछे भी इसी आदमी की राय चिराग के सिर चढ़कर बोलती रही।

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प्रश्न- ऐसी भी क्या नाराजगी हुई, आप चिराग से मिले भी नहीं?

उत्तर- देखिए, ये सब चिराग का ड्रामा है। बिना बताए अपने कुछ लोगों और मीडिया को साथ लेकर आवास पर पहुंच गए। मीडिया को लेकर भला कौन किसी से मिलने जाता है। फिर भी उनको मेरी बेटी घर में लेकर गईं, पत्नी ने पीने को पानी दिया। नाश्ते के लिए पूछा, तो उन्होंने मना कर दिया। दूसरी अर्नगल बात चिराग ने ये फैलाई कि उन्होंने मुझसे मिलने के लिए दो चिट्ठी लिखीं। सच्चाई ये है वह जिन दो चिट्ठियों का जिक्र कर रहे हैं, मेरे पास कोई भी नहीं आई, मीडिया के जरिए मुझे पता चला। उनको कोई ये समझाए, मैं उनका चाचा हूं, उनका नेता नहीं? मिलने के लिए उनको समय थोड़ी न लेना पड़ेगा, जब चाहें चले आएं।

प्रश्न- तो क्या पार्टी में बिखराव की पटकथा पहले से लिखी जा चुकी थी?

उत्तर- करीब छह माह पहले मैं भाभी जी से मिला था, उन्हें बता दिया था कि पार्टी में एक बाहरी व्यक्ति के अंदरूनी दखल से संगठन में असंतोष बढ़ रहा है। चिराग पासवान भी उनके इशारे पर काम कर रहे हैं। इससे पार्टी के हालात खराब होते जा रहे हैं। सब कुछ सुनने के बाद भी उन्होंने मेरी बात पर गौर नहीं किया। तभी से मेरा भाभी और चिराग से कोई संपर्क नहीं हुआ। उसी दिन से मैं पार्टी के सीनियर नेताओं के साथ रायशुमारी करने लगा, पार्टी को कैसे जीवित रखा जाए, उस रणनीति पर काम शुरू कर दिया। अंत में अलग होने का फैसला मजबूरी में लेना पड़ा। अब भी कुछ नहीं बिगड़ा, अगर चिराग चाहें तो?

प्रश्न- चिराग पासवान की मानें तो आप बीते विधानसभा चुनाव से ही नाराज थे?

उत्तर- बिल्कुल सही सोचा चिराग ने मेरे विषय में। पर, मेरी नाराजगी का कारण भी उन्हें भली भांति पता होगा। मैं एनडीए से अलग होकर चुनाव लड़ने के पक्ष में तकई नहीं था। साथ लड़ते तो पार्टी की ये स्थिति नहीं होती। एलजेपी की बड़ी जीत होती। बिहार का युवा चिराग को पसंद कर रहा था। एनडीए के साथ होते तो आज हमारे 20-22 विधायक होते, सरकार में हिस्सेदारी होती, मंत्री होते। चिराग पासवान आसानी से उप-मुख्यमंत्री भी बन सकते थे। इसके अलावा पार्टी के एकाध सांसद केंद्र में मंत्री भी बन सकते थे और भाभी जी राज्यसभा में जा सकती थीं। लेकिन चिराग पासवान के बचकाने फैसलों ने सब गुड गोबर कर दिया।

प्रश्न- लेकिन चिराग का मानना है अलग चुनाव लड़ने से पार्टी को फायदा हुआ?

उत्तर- रिजल्ट तो जीरो रहा। मुझे लगता है राजनीतिक मामलों में उनका गणित अभी कमजोर है। लोकसभा चुनाव में हमने छह सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें 36 विधानसभाएं थीं। जीत के साथ कुल 32 लाख के आसपास वोट मिला। वहीं, विधानसभा चुनाव में पूरे प्रदेश में उम्मीदवार चुनाव लड़े, मात्र एक सीट मिली और वोट सिर्फ चौबीस लाख के आसपास प्राप्त हुआ। जबकि इससे तिगुना मिलना चाहिए था। मुझे प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने को लेकर भी कार्यकर्ताओं में नाराजगी थी।

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प्रश्न- पार्टी में दो फाड़ हो चुके हैं। बावजूद इसके क्या आप खुद को पार्टी का पूर्ण अध्यक्ष मानते हैं?

उत्तर- पार्टी के वरिष्ठ नेताओं, सांसदों व लाखों पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की सामूहिक सहमति से मुझे लोक जनशक्ति पार्टी का अध्यक्ष मनोनीत किया गया है। पार्टी के प्रति 21 वर्ष का हमारा जो संघर्ष है, उसे सिर्फ एक व्यक्ति के चलते धूमिल नहीं करेंगे। पार्टी को बचाने के लिए हमें चाहे कोर्ट जाना पड़े, या फिर कोई भी कानूनी दांवपेंच भिड़ाना पड़े, हम करेंगे। ना पार्टी हम किसी दूसरी पार्टी में विलय करेंगे और न ही कोई दूसरा रास्ता अपनाएंगे। एनडीए के साथ हमारा गठबंधन यथावत रहेगा। 

प्रश्न- तो क्या आप एक साथ पार्टी अध्यक्ष और संसदीय नेता दोनों पदों पर आसीन रहेंगे?

उत्तर- देखिए, समय आने पर मैं एक पद छोड़ दूंगा। मेरी दिली इच्छा है, संसदीय दल के नेता चिराग पासवान बनें, इसके लिए मैं तैयार हूं। मेरे अध्यक्ष बनने के बाद ही कार्यकर्ताओं में नई ऊर्जा आई है, वो लोग संपर्क कर रहे हैं जो सालों पहले पार्टी छोड़कर दूसरे दलों में चले गए थे। लोक जनशक्ति पार्टी का जो संविधान बड़े भाई रामविलास पासवान ने बनाया था, उसकी रक्षा की जाएगी। हम केंद्र सरकार से मांग करेंगे दिल्ली में उनके नाम और काम को देखते उन्हें भारत रत्न से नवाजा जाए और उनके नाम का एक स्मारक स्थापित किया जाए।

-जैसा डॉ. रमेश ठाकुर से पशुपति कुमार पारस ने कहा।

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