नीति आयोग की बैठक में दिखाई दी राजनीतिक परिपक्वता की झलक

political-maturity-reflected-in-the-policy-commission-meeting

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं नीति आयोग की बैठक में स्वीकारा है कि देश में जल संकट बड़ी समस्या बन गया है। नदियों को जोड़ने या जल संरक्षण कार्यों व जल संग्रहण की परंपरागत संरचनाओं को संरक्षित करने के साथ ही प्रधानमंत्री के हर घर नल के नारे को फलीभूत करने के लिए ही जल शक्ति महकमा गठित किया गया है।

नीति आयोग की पांचवीं बैठक इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाती है कि देश के लगभग सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने इसमें सकारात्मक सोच के साथ हिस्सा लिया। नीति आयोग की बैठक में राजनीतिक परिपक्वता की झलक देखने मिली। यह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि पिछले दिनों आमचुनाव के दौरान काफी कुछ देखने सुनने को मिला। नीति आयोग की यह बैठक देश के लिए सकारात्मक संदेश है। देखा जाए तो केवल और केवल मात्र पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने नीति आयोग की बैठक में यह कहकर भाग नहीं लिया कि यह आयोग अधिकार संपन्न नहीं हैं वहीं पंजाब के मुख्यमंत्री स्वास्थ्य कारणों से और तेलंगाना के मुख्यमंत्री अपनी पूर्व निर्धारित व्यस्तताओं के कारण हिस्सा नहीं ले पाएं। शेष सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने नीति आयोग की बैठक में हिस्सा लिया। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का हिस्सा नहीं ले पाना इसलिए मुद्दा नहीं बनता कि कांग्रेस शासित राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित अन्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने नीति आयोग की बैठक में ना केवल हिस्सा लिया बल्कि अपना प्रदेश के हितों को पूरी मजबूती के साथ नीति आयोग के सामने रखा। यह बैठक इसलिए भी मायने रखती है कि 17 वीं लोकसभा के चुनाव परिणामों और नरेन्द्र मोदी 0.2 के गठन के बाद यह पहली और महत्वपूर्ण बैठक रही। केन्द्र सरकार के इस साल के पूर्ण बजट के पहले नीति आयोग की बैठक का आयोजन इस मायने में भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि आगामी बजट व वित्तीय वर्ष के लिए राज्यों के लिए पर्याप्त राशि व उसके समय पर पुनर्भरण की समयवद्धता सुनिश्चित हो सके। इसके साथ ही राजस्थान, मध्यप्रदेश सहित कई प्रदेशों में पूर्ण बजट आगामी दिनों में पेश होना है। ऐसे में नीति आयोग की बैठक के माध्यम से केन्द्र के पक्ष को समझने और केन्द्रीय बजट के अनुसार इन राज्यों को अपने बजट को अंतिम रुप देने का अवसर मिल सकेगा। नीति आयोग की बैठक को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जहां सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास के प्रति अपनी प्रतिवद्धता जताई वहीं 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था को दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के लिए 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचाने के लक्ष्य को दोहराया। हांलाकि इसके लिए उन्होंने राज्यों से आय बढ़ाने, रोजगार के अवसर सृजित करने और निर्यात को बढ़ावा देने में सहभागिता निभाने का आग्रह भी किया। 

इसे भी पढ़ें: मीडिया तारीफ करता रहे तो ठीक है, राजनीतिक पार्टियां आलोचना नहीं सुन सकतीं

अब यह पूरी तरह से साफ हो गया है कि जीएसटी के बाद केवल और केवल पेट्रेलियम पदार्थों और मदिरा उत्पादों तक ही राज्यों की राजस्व आय सीमित हो गई है। ऐसे में राज्यों की केन्द्र पर निर्भरता अधिक हो गई है। इसीलिए राजस्थान की मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा केन्द्रीय वित्त मंत्री से मुलाकात कर राज्यों के हिस्से की धनराशि को महीने की पहली तारीख को ही हस्तांतरित करने की मांग न्यायोचित, सामयिक और महत्वपूर्ण हो जाती है। दरअसल राज्यों को उनका अपना हिस्सा समय पर नहीं मिलने से राज्य की वित्तीय गतिविधियां प्रभावित होती है। वैसे भी जब सारी व्यवस्था पारदर्शी और डिजिटलाइज्ड हो गई तो ऐसे में एक तारीख को ही राजस्व में से राज्यों का हिस्सा हस्तांतरित किए जाने में कोई बाधा या सोच विचार नहीं है। इसी तरह से विपरीत परिस्थितियों में भी किसानों की आय को 2022 तक दोगुना करने के संकल्प को दोहराया गया है। लगभग सभी प्रदेश कर्जमाफी के कारण वित्तीय संकठ से गुजर रहे हैं, ऐसे में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के पक्ष को गंभीरता से समझने के साथ ही राजनीतिक लाभ−हानि या मायनों से उपर उठकर केन्द्र सरकार को कर्ज माफी के राशि में केन्द्र की सहभागिता भी निभानी चाहिए। 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं नीति आयोग की बैठक में स्वीकारा है कि देश में जल संकट बड़ी समस्या बन गया है। नदियों को जोड़ने या जल संरक्षण कार्यों व जल संग्रहण की परंपरागत संरचनाओं को संरक्षित करने के साथ ही प्रधानमंत्री के हर घर नल के नारे को फलीभूत करने के लिए ही जल शक्ति महकमा गठित किया गया है। इस जल शक्ति विभाग को जल्दी से जल्दी राज्यों से समन्वय बनाते हुए रोडमेप तैयार करना होगा जिससे इस मानसूनी मौसम में थोड़ा बहुत व आने वाले वर्षों में ठोस कार्य हो सके। पूर्वी राजस्थान जल परियोजना जैसी देशभर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की घोषणाओं व राज्यों से प्राप्त नदी घाटी परियोजनाओं को प्राथमिकता देनी होगी। नदियों को जोड़कर व्यर्थ जाने वाले पानी का उपयोग किया जा सकता है। सरकार को अत्यधिक भूमिगत जल के दोहन से किनारा करना होगा और जल संग्रहण के माध्यम से ही सामने खड़ी जल समस्या से निपटना होगा।

इसे भी पढ़ें: केरल में वामपंथियों ने भाजपा को प्रवेश नहीं करने देने के लिए कांग्रेस को जिता दिया

नीति आयोग की यह बैठक इस मायने में महत्वपूर्ण हो जाती है कि बैठक में केन्द्र सरकार व राज्यों का एजेण्डा उभर कर आ गया है। रोजगार, स्वास्थ्य, पानी, खेती किसानी सरकार की पहली प्राथमिकता में है और राज्य सरकारें भी लगभग इन मुद्दों पर सहमत है। ऐसे में सबका साथ, सबका विकास व सबका विश्वास के मूल मंत्र को आगे बढ़ाते हुए परस्पर सहयोग से राष्ट्रीय मुद्दों व समस्याओं के हल का रोडमेप तैयार करके नीति आयोग आगे आए तो निश्चित रुप से सकारात्मक परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। यह अपने आप में सराहनीय है कि नीति आयोग की बैठक में अपवाद को छोड़कर सभी राज्यों के मुख्यमंत्री राजनीतिक विचारधार से उपर उठकर आगे आए हैं तो अब नीति आयोग और केन्द्र सरकार को भी इसी सोच के साथ आगे आना होगा ताकि केन्द्र व राज्यों के बीच टकराव की नहीं अपितु सहभागिता की भूमिका तय हो सके। आशा की जानी चाहिए कि आने वाले समय में देश में इसी तरह की राजनीतिक परिपक्वता देखने को मिलेगी।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़