सपा घोषणापत्र में वादे तो लोकलुभावन, पर पूरे कैसे होंगे?

सपा ने यह नहीं बताया है कि जो लोकलुभावन वायदे किये हैं आखिर वह उन्हें किस प्रकार से पूरा करेगी ? सपा सरकार ने विगत चुनावों से पहले जो वादे किये थे उनमें से अधिकांश आधे अधूरे हैं तथा कुछ में तो हाथ भी नहीं डाला गया है।

समाजवादी पार्टी में महादंगल का नाटक समाप्त होने के बाद अब वह चुनावी मैदान में उतरने को तैयार हो गया है। विगत पांच माह से भी अधिक समय से सपा में चल रह नाटक को जनता ने अच्छी तरह से देखा व समझा है। अब सपा में चाचा शिवपाल यादव व अंकल अमर सिंह का वर्चस्व पूरी तरह से समाप्त हो चुका है। एक प्रकार से 2017 में सपा का नया युग प्रारम्भ हो चुका है। समाजवादी पार्टी ने 2017 के चुनावों के लिए अपना जो घोषणा पत्र जारी किया है वह बेहद लोकलुभावन तो है ही साथ ही कई सारे सवाल भी पैदा कर रहा है। सपा ने यह नहीं बताया है कि जो लोकलुभावन वायदे किये हैं आखिर वह उन्हें किस प्रकार से पूरा करेगी ? सपा सरकार ने विगत चुनावों से पहले जो वादे किये थे उनमें से अधिकांश आधे अधूरे हैं तथा कुछ में तो हाथ भी नहीं डाला गया है।

यह बात अलग है कि चुनावों का ऐलान होने के पहले ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उद्घाटन व शिलान्यास कार्यक्रमों की होड़ लगा दी थी। वर्ष 2017 के चुनाव घोषणा पत्र में समाजवादी पार्टी ने एक प्रकार से दक्षिण भारतीय राजनीति की नकल करने का प्रयास किया है। अपने घोषणापत्र में सपा ने लोकलुभावन वादों की होड़ लगा दी है। एक प्रकार से सपा का कहना है कि वोट हमें ही दो और बदले में मुफ्त में गेंहू, चावल, प्रेशर कुकर ले जाओ। समाजवादी पार्टी ने गांव, गरीब, महिलाओं, किसान, युवा तथा अल्पसंख्यक समाज से वादों की झड़ी लगा दी है। 32 पन्नों के घोषणापत्र में प्रदेश की आबादी व उनकी समस्या को 20 हिस्सों में बांटकर अलग−अलग वादे किये गये हैं। इसमें लैपटाप, कन्या विद्याधन, चार लेन वाली सड़कें, अस्पताल, शिक्षा और तकनीक योजनाएं आगे भी जारी रखने का फैसला लिया गया है। मेट्रो रेल सेवा का विस्तार करने की बात कही गयी है। एक्सप्रेस वे योजना का भी फैलाव किया जायेगा।

वहीं इस बार के घोषणापत्र की सबसे बड़ी व चौंकाने वाली बात यह हैं कि गरीब परिवारों को मुफ्त में गेंहू−चावल, घी व महिलाओं को प्रेशर कुकर देने का ऐलान किया गया है। साथ ही महिलाओं को राज्य की सरकारी बसों में आधे किराये की छूट देने की योजना का भी प्रावधान करने की बात कही गयी है। इसके अतिरिक्त कक्षा नौ से 12वीं तक छात्राओं को साइकिल, मेधावी छात्राओं को सोलर टैबल लैंप देने का ऐलान किया गया है। गांवों के विकास के लिए कई योजनाओं का ऐलान किया गया है। समाज कल्याण कार्यक्रमों का व्यापक विस्तार करने की बात कही गयी है। किसानों को सस्ती दर पर कर्ज, किसान बीमा योजना की राशि बढ़ाने, किसान क्रेडिट कार्ड पर सब्सिडी, पशुओं के इलाज के लिए भी 102, 108 एंबुलेंस सेवा चलाने की बात कही गयी है। विश्वविद्यालय स्तर के युवा मतदाताओं को लुभाने के लिए उच्च शिक्षण संस्थानों में वाई फाई की सुविधा, विशेष बस सेवा, स्कॉलरशिप योजना आदि आकर्षक बातें कही गयी हैं। मतलब यह है कि समाजवादी पार्टी हर वर्ग को मुफ्तखोर बनाकर वोट पाना चाह रही है।

घोषणापत्र की सबसे खास बात यह है कि अल्पसंख्यकों के लिए किसी बड़ी योजना का स्पष्ट ऐलान तो नहीं किया गया है अपितु उनके लिए पांच साल में एक लाख सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम व्यवसाय सुनिश्चित करने की बात कही गयी है। जनसंख्या के अनुपात में हिस्सेदारी का वादा सपा पहले ही कर चुकी है। सपा अल्पसंख्यकों से वादे तो अपार करती है पर हर बार उन पर यही आरोप लगता है कि उन्होंने अल्पसंख्यकों के लिए कुछ भी नहीं किया है। इस बार आबादी के अनुरूप दलितों की तरह आरक्षण का वादा भी नहीं किया गया है। समाजवादी घोषणापत्र से समाज के सभी वर्गों को खूब अच्छी तरह से लुभाने का प्रयास किया गया है। समाजवादी पार्टी ने सरकार बनने के बाद स्मार्टफोन देने का भी ऐलान कर रखा है। समाजवादी स्मार्टफोन योजना के अंतर्गत अब तक एक करोड़ से भी अधिक नामांकन हो चुके हैं। बुजुर्गों के लिए ओल्ड एज होम सहित मुफ्त यात्रा सुविधा सहित मोहल्ला क्लीनिक व डेढ़ लाख से अधिक वार्षिक आय वालों को मुफ्त में इलाज देने की सुविधा का भी वादा किया गया है। देखा जाये तो यह एक बेहद आकर्षक घोषणापत्र है तथा मतदाता को ललचाने का सफल प्रयास किया गया है।

सपा के चुनावी हथकंडे में सबसे बड़ा दांव कांग्रेस के साथ गठबंधन का रहा है। सपा के नये मुखिया अखिलेश यादव का मानना है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन हो जाने पर गठबंधन की तीन सौ सीटें आ जायेंगी। यही कारण है कि काफी उठापटक के बाद सपा व कांग्रेस आलाकमान के बीच सीटों पर सहमति बन पायी है। माना जा रहा है कि जो गठबंधन एक बार बिखरने की कगार पर आ गया था उसे फिर से संवारने का काम प्रियंका गांधी ने किया है। गठबंधन के बाद सपा 298 व कांग्रेस 105 सीटों पर सहमत हो गयी है। कांग्रेस को यह गठबंधन मजबूरी में ही करना पड़ रहा है। समाजवादी पार्टी की तुलना में वर्तमान समय में कांग्रेस का संगठन बेहद नाजुक दौर में है। वहीं उसके पास अब परम्परागत वोटबैंक भी नहीं रह गया है। कांग्रेस ने इन चुनावों में गठबंधन के पहले 27 साल यूपी बेहाल का नारा दिया था जिसकी हवा निकल चुकी है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी किसान यात्राओं, खाट सभाओं के माध्यम से कांग्रेस के प़क्ष में माहौल बनाने का प्रयास किया था। प्रदेश के कई जिलों में राहुल गांधी ने रोड शो का भी आयोजन किया व ब्राह्मण मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री पद का दावेदार भी घोषित किया। लेकिन भाजपा को रोकने की चाहत व मुस्लिम मतों के बिखराव को रोकने के लिए कांग्रेस को सपा के आगे झुकने के लिए तैयार होना पड़ा। एक प्रकार से वह बैकडोर से सत्ता में वापसी करना चाह रही है। कांग्रेस समझ चुकी थी कि वह अकेले दम पर लाख कोशिशों के बाद भी दो दर्जन से अधिक सीटों पर विजय नहीं प्राप्त कर सकती। प्रदेश में कांग्रेस का पीके प्रयोग फ्लॉप हो चुका है। राहुल गांधी अब साइकिल के पीछे बैठकर अपनी राजनीति को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह गठबंधन साम्प्रदायिक ताकतों को रोकने तथा धर्मनिरपेक्ष ताकतों को मजबूत करने के इरादे से किया जा रहा है।

खैर, सपा के घोषणापत्र में किये गये वादों पर गौर किया जाये तो कहा जा सकता है कि पार्टी ने जो भी वादे किये हैं उनमें से अधिकांश तभी पूरे हो सकेंगे जब वह केंद्र के साथ कदम से कदम मिलाकर चलेंगे। वैसे भी अभी तक कितने घोषणापत्र सभी दलों ने पूरे किये। अब समय आ गया है कि सभी दलों को व चुनाव आयोग को मिलकर घोषणापत्रों के प्रति भी एक अतिआवश्यक गाइडलॉइन बनाने पर विचार करना चाहिये। चुनाव आयोग इन सभी पत्रों का हलफनामा भी दाखिल करवाये तथा हर चुनाव से पहले इनकी व्यापक समीक्षा का प्रावधान करना चाहिये ताकि जो दल इन वादों को वास्तविक धरातल पर न पूरा कर सकें उन दलों पर कार्रवाई की जा सके।

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