नशे से बर्बाद होती दिल्ली और ''उड़ते पंजाब'' का नारा
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राजधानी दिल्ली नशे के मामले में कहीं पीछे नहीं है। पंजाब के नशे का कोई बचाव नहीं होना चाहिए, किन्तु जो उस पर रोक लगाने की बात करता है, उसके कार्यों का पोस्टमार्टम तो किया ही जाना चाहिए।
'नशा और नाश' इन दोनों शब्दों और उसके परिणामों में भी कुछ ख़ास फर्क नहीं है और यह बात बार-बार हर बार साबित भी हुई है कि आम-ओ-खास, जिसने भी नशाखोरी की राह पकड़ी, उसका नाश हो ही गया! न केवल उसका, बल्कि उससे जुड़े तमाम लोग भी कष्ट भोगने को अभिशप्त हुए हैं। इसी सन्दर्भ में अगर हम बात करें तो, फिल्म 'उड़ता पंजाब' और सेंसर बोर्ड के विवादों के बाद जब यह रिलीज़ हुई तो इसे पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनाव का मुद्दा बनाने की भी काफी कोशिशें हुईं। पंजाब के युवाओं के नशे की गिरफ्त पर आधारित यह फिल्म दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल को बहुत पसंद भी आयी। ट्विट्टर यूजर्स के एक वर्ग में 'फिल्म समीक्षक' के नाम से प्रसिद्ध केजरीवाल ने इस फिल्म को देखने का बाद इसकी सराहना करते हुए सीधे बादल सरकार पर निशाना साध दिया और पंजाब के इस हालात का जिम्मेदार बादल सरकार को ठहरा दिया। ठीक भी है, नशे से मुक्ति का अभियान छिड़ना ही चाहिए, किन्तु दोहरी चाल ठीक नहीं! आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार में सरकारी लाइसेंस पर पब और शराब की दुकानें बंद होनी चाहिए थीं, क्योंकि इसी की बात उसके नेता करते हैं, पर दिल्ली में तो नशे की सरकारी दुकानें धड़ल्ले से खुलती नज़र आ रही हैं।
यूं भी दिल्ली नशे के मामले में कहीं पीछे नहीं है। पंजाब के नशे का कोई बचाव नहीं होना चाहिए, किन्तु जो उस पर रोक लगाने की बात करता है, उसके कार्यों का पोस्टमार्टम तो किया ही जाना चाहिए। गौरतलब है कि शराब मिलने वाले फार्म हाउस, दुकानें, रेस्त्रां, पब, नाइट क्लब को एक्साइज इंटरटेनमेंट और लग्जरी टैक्स विभाग लाइसेंस जारी करता है। भाजपा के एक मीडिया प्रभारी ने दिल्ली के एक्साइज इंटरटेनमेंट और लग्जरी टैक्स विभाग से आरटीआई के अन्तर्गत शराब उपलब्ध करने वाली दुकानों के लाइसेंस के बारे में जानकारी मांगी थी और उनसे पूछा था कि पिछले डेढ़ साल में दिल्ली में शराब के कितने दुकानों को लाइसेंस दिया गया? इसके बाद जो जबाब आया, उसे सुन कर आप भी चौंक सकते हैं। जी हाँ, इस आरटीआई के जवाब में सम्बंधित विभाग ने बताया कि इससे संबंधित उसके पास कोई जानकारी ही नही है! समझा जा सकता है कि आरटीआई एक्टिविस्ट के नाम से मशहूर रहे अरविन्द केजरीवाल के डिपार्टमेंट के पास ही इस कानून की कदर करने की फुरसत नहीं है।
यह भी बेहद आश्चर्य की बात है कि यदि डिपार्टमेंट ने दुकानों के लाइसेंस नहीं दिए हैं तो पिछले डेढ़ साल में 17 शराब की और सरकारी दुकानें किसकी अनुमति से खोली गई हैं और इस मामले में विपश्यना से स्वास्थ्य लाभ करके लौटे अरविन्द केजरीवाल चुप क्यों हैं? आपका आश्चर्य और बढ़ जायेगा, जब आप यह सुनेंगे कि पूर्वी दिल्ली के एक प्रसिद्ध मॉल में 'ओनली वीमेन वाइन शॉप' अक्टूबर 2015 में खोला गया है, जिसे दिल्ली का पहला ओनली वीमेन वाइन शॉप भी कहा जा रहा है। खबरें तो यह भी हैं कि इसके बाद दिल्ली में और भी केवल महिला शराब की दुकानें भी खुली हैं। इस मामले में जो जानकारी सामने आ रही है, वह यह भी है कि नियमों के अनुसार स्कूल, हॉस्पिटल और रिहायशी इलाके के 100 मीटर के अंदर कोई शराब की दुकान नही होनी चाहिए, लेकिन 2010 में रिहायशी इलाका इस नियम से अलग हो गया।
साफ़ जाहिर है कि दिल्ली में भी नशे का कारोबार बढ़ता जा रहा है। पंजाब जीतने पर निगाह गड़ाए हुए आम आदमी पार्टी के बड़े नेता भगवंत मान की भी लोकसभा में शराब पीकर आने की शिकायतें की गयीं हैं, जिससे इस पार्टी के तमाम दावों, प्रतिदावों पर सवाल उठ खड़ा हुआ है। दिल्ली में तो शराब के साथ साथ खतरनाक ड्रग्स शहर को अपनी चपेट में लिए जा रहे हैं। चरस, हेरोइन, कोकीन और पार्टी ड्रग्स की मांग बढ़ती जा रही है, तो दिल्ली के कॉलेजों और खासकर साउथ दिल्ली में तो यह सब आसानी से उपलब्ध भी हैं। पिछले दिनों जेएनयू में नशाखोरी पर काफी होहल्ला भी मचा था, पर फर्क किसे पड़ना है। नेताओं को तो सिर्फ राजनीतिक लाभ से मतलब है, बाकी युवा पीढ़ी और बच्चे अगर बर्बाद हो रहे हैं तो उनकी बला से! समझने योग्य बात है कि दिल्ली में युवा ही नहीं छोटे-छोटे बच्चे भी नशे के आदी होते जा रहे हैं। तमाम बच्चे आयोडेक्स, वाइट पेंट और ट्यूब चिपकाने वाले केमिकल का नशा करते हुए सराय काले खां, कनॉट प्लेस और यमुना बाजार में रोड पर ही दिख जायेंगे। हालाँकि, दिखावे के लिए दिल्ली सरकार के मद्य निषेध विभाग ने नशा मुक्ति विज्ञापन पर 7.76 लाख रूपये जरूर खर्च किये हैं, पर सवाल तो वही है कि उसका असर कितना है? दिल्ली के नशामुक्ति केंद्रों में भी मामूली सुविधाएं ही हैं, तो इनकी खस्ता हालत किसी से छुपी नहीं है।
इसमें दो राय नही है कि बढ़ती सरकारी शराब की दुकानों की आय दिल्ली सरकार की आय का बड़ा जरिया है, लेकिन क्या इसीलिए बच्चों और युवाओं को नशे के अँधेरे कुएं में धकेल देना चाहिए? क्या अरविन्द केजरीवाल एन्ड टीम को इससे निपटने का उपाय नहीं ढूंढना चाहिए? दिल्ली के मुख्यमंत्री के ऐसे दोहरे चरित्र का विरोध करते हुए विपक्ष के साथ साथ स्वराज अभियान के प्रशांत भूषण ने भी इसके खिलाफ आंदोलन करने की बात कही है।
एक वाकये के अनुसार, आप के कस्तूरबा नगर की विधायक से जब स्थानीय लोगों ने शराब की दुकानों को बंद कराने की बात कही तो विधायक जी ने अपनी विधायकी की धौंस जमाते हुए दुकानें बंद करवाने की बजाय 4 और दुकानें खोलने की बात कह डाली। हालाँकि, जब यह मुद्दा सामने आया तो इससे इंकार करते हुए उन्होंने पल्ला झाड़ लिया। बात जहाँ तक पंजाब की है तो पंजाब पहले से ही नशाखोरी के लिए बदनाम रहा है। ऐसे में सवाल उठता ही है कि क्या पंजाब को नशामुक्त कराने का दावा करने वाली पार्टियां और उसके नेता इस मामले को लेकर गंभीर भी हैं, अथवा चुनाव जीतने के लिए सिर्फ राजनीतिक जुमलेबाजी ही की जा रही है? यक्ष प्रश्न है और इसका जवाब आने वाले दिनों में ही मिल पायेगा तो जनता किस पर भरोसा करती है, यह भी देखने वाली बात होगी।
- मिथिलेश कुमार सिंह
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