MP में कांग्रेस की साख के साथ खिलवाड़, क्या मामा फिर पहनेंगे ताज?
मध्य प्रदेश में चुनाव करीब आते ही कांग्रेस की दुर्दशा दिखाई देने लगी है। अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस को लेकर कई सारे सवाल उठने लगे हैं।
भोपाल। मध्य प्रदेश में चुनाव करीब आते ही कांग्रेस की दुर्दशा दिखाई देने लगी है। अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस को लेकर कई सारे सवाल उठने लगे हैं। एक सवाल बीते दिन सामने आए नेशनल हेराल्ड द्वारा प्रकाशित किए गए सर्वे पर, तो दूसरा सवाल मध्य प्रदेश में विपक्षी पार्टियों के साथ गठबंधन की भूमिका पर। जबकि तीसरा सवाल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और सत्ताधारी खेमे की मदद करता हुआ दिखाई दे रहा है और वह ये है कि ज्योतिरादित्य सिंधिंया और कमलनाथ के समर्थकों के बीच खींचतान।
गठबंधन पर कांग्रेस की उठा-पटक
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव अब दहलीज पर आ गए हैं। ऐसे में पार्टी ने कोई भी ऐसा कदम नहीं उठाया जिससे यह अंदेशा लगाया जा सके कि वह राज्य की जनता को अपनी ओर आकर्षित करते हुए दिखाई दे रही है। आपको याद हो तो कमलनाथ को पार्टी का प्रभारी बनाए जाने के बाद ऐसा जरूर प्रतीत हुआ था कि अब राज्य में कांग्रेस की पकड़ मजबूत होती दिखाई दे रही है। लेकिन, ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वहीं, हम मंदसौर की बात करें तो उसमें कांग्रेस द्वारा आयोजित किए गए अभियान का पूरा श्रेय राहुल गांधी को जाता है तो फिर राज्य के आलानेता कर क्या रहे हैं?
ऐसे में कांग्रेस के पास अब गठबंधन का विकल्प बचता हुआ दिखाई दे रहा है। बीते चुनाव की बात की जाए तो राज्य में कांग्रेस के बाद बसपा तीसरी पार्टी बनकर ऊभरी थी। ऐसे में उसके साथ गठबंधन करना पार्टी को फायदा पहुंचा सकता है। लेकिन, बहुजन समाज पार्टी प्रमुख मायावती द्वारा दिए गए एक बयान से इन कयासों पर भी विराम लगाया जा सकता है। क्योंकि मायावती ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया था कि वह कांग्रेस के साथ तभी गठबंधन करेगीं जब वह मध्य प्रदेश के साथ-साथ छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी सीटों के बंटवारे के लिए तैयार हों।
अब बात बसपा के अलावा गठबंधन के लिए दूसरे विकल्पों पर- मध्य प्रदेश में अगर समाजवादी पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ कांग्रेस का गठबंधन हो जाए तो वह बीजेपी को करीब 30-40 सीटों पर परेशान कर सकती है। क्योंकि, उत्तर प्रदेश से सटी हुए इलाकों के यादव वोट बैंक को लुभाने में सपा कारगर साबित हो सकती है। वहीं, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) की बात करें तो पिछले कुछ दिनों से ऐसी खबरें आ रही है कि कमलनाथ काफी वक्त से जीजीपी के साथ संपर्क साधे हुए हैं। ऐसे में अगर दोनों पार्टियां एकजुट होती हैं तो इसमें चौंकने की कोई बात ही नहीं है।
सर्वे में गठबंधन के बावजूद भाजपा को बढ़त
कांग्रेस विचारधारा से प्रेरित नेशनल हेराल्ड द्वारा प्रकाशित किए गए एक सर्वे में साफ तौर पर बीजेपी को बढ़त मिलते हुए दिखाया गया। सर्वे में सामने आए नतीजों का अगर जिक्र करें तो बीजेपी 147 सीटों के साथ पहले नंबर पर विराजमान है, दूसरे पर 73 सीटों के साथ कांग्रेस, जबकि बसपा को महज 10 सीटें ही मिलती हुई नजर आ रही हैं। सर्वे में यह भी कहा गया कि कांग्रेस अगर बसपा के साथ गठबंधन करती है तो बीजेपी को कुछ सीटों का नुकसान होगा।
सर्वे में बसपा के साथ गठबंधन के बावजूद कांग्रेस को 103 सीटें मिलते हुए दिखाया गया। जबकि बीजेपी को 126 सीटें प्राप्त हुईं। इससे एक बात तो साफ हो गई कि चौथी बार भी राज्य में बीजेपी की सरकार बनने से कोई रोक नहीं सकता। ऐसे में कांग्रेस गठबंधन की कवायद में जुट गई है ताकि वह बीजेपी की सीटें काटकर राज्य में अपना अस्तित्व बचा सके।
अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस को लेकर बीजेपी ज्यादा चिंतित नहीं है क्योंकि उनका मानना है कि शिवराज सिंह चौहान को भारी बारिश के बावजूद जन आशीर्वाद यात्रा में लोगों का खासा समर्थन प्राप्त हो रहा है। लेकिन, बीच में ऐसी आवाज जरूर सुनाई दी थी कि शिवराज सिंह चौहान की जगह पर कैलाश विजयवर्गीय को चेहरा बनाकर बीजेपी चुनाव लड़ सकती है। लेकिन, अपने विवादित बयानों और हरकतों की वजह से सुर्खियों में रहने वाले विजयवर्गीय की छवि उतनी साफ नहीं है। इसी वजह से पार्टी उनके नाम पर रिस्क नहीं लेना चाहती है।
अगर आप मुख्यमंत्री उम्मीदवार की बात करेंगे तो भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने किसी भी राज्य में चुनाव से पहले मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार का ऐलान नहीं किया। लेकिन, मध्य प्रदेश में बीजेपी मामा के नाम से प्रसिद्ध शिवराज सिंह के चेहरे पर ही चुनाव लड़ रही है और इस बात का जिक्र तो खुद शाह भी कर चुके हैं।
ज्योतिरादित्य बनाम कमलनाथ की जंग
मध्य प्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर होने के अनुमान जताए जा रहे हैं। इसके उलट कुछ वक्त पहले जब प्रभासाक्षी ने सोशल मीडिया पर मध्य प्रदेश को लेकर कांग्रेस की साख को टटोलने का प्रयास किया तो सामने आया कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ और राहुल गांधी के करीबी मित्र ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थकों का आपस में द्वंद्व जारी है। जिसकी वजह से कांग्रेस अध्यक्ष को यह कहना पड़ा था कि सभी लोग आपस में मिल जुलकर इस चुनाव में हिस्सा लें क्योंकि राज्य की जनता कांग्रेस को पसंद करने लगी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जिस तरह से सोनिया गांधी जब कांग्रेस अध्यक्ष थीं तो अहमद पटेल पार्टी की सभी रणनीतियां बनाते थे। लेकिन, राहुल गांधी के अध्यक्ष पद संभालने के बाद एक ऐसा रणनीतिक नाम जुड़ गया उनके साथ जिनको राजनीति की समझ दूसरे व्यक्तियों से कहीं ज्यादा है, मगर वह खुद राजनीति में नहीं उतर रही है। हम बात कर रहे हैं प्रियंका गांधी की। कांग्रेस सूत्रों से पता चला कि प्रियंका गांधी की अपनी एक अलग टीम है जो उन्हें राजनीति में उठाए गए सभी कदमों से अपडेट करती है और ऐसा कहा जा रहा है कि राहुल की नफरत से नहीं प्यार से चुनाव जीतने वाली रणनीति भी प्रियंका ने ही शुरू की है। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि मध्य प्रदेश में लगभग खुद को गंवाते नजर आ रहे कांग्रेस के नेताओं को राहुल किस रणनीति से पार लगाएंगे।
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