तुर्की में असफल तख्तापलट राष्ट्रपति के लिए चेतावनी

सुधेन्दु ओझा । Jul 23 2016 12:28PM

सेना का आरोप है कि राष्ट्रपति एर्दोगन तुर्की के प्रधानमंत्री बिनाली यिलदीरिम की शक्तियों का उपयोग कर रहे हैं और राष्ट्रपति जैसे निष्पक्ष और गरिमामय पद का दुरुपयोग कर रहे हैं।

शुक्रवार 15 जुलाई 2016 का दिन तुर्की के लिए आशंकाओं और अराजकता से भरा दिन साबित हुआ। तुर्की सेना के एक धड़े ने सरकारी इमारतों पर कब्ज़ा कर के तुर्की में तख्तापलट की घोषणा कर दी और नागरिकों को घरों से बाहर ना निकलने का आदेश सुनाया। तमाम जनसंचार सेवाएँ और इंटरनेट ठप्प कर दिए गए। सेना और पुलिस दस्तों के बीच कई जगहों पर झड़पें हुईं। तुर्की पुलिस बगावत पर उतरी सेना से टक्कर ले रही थी। उसके द्वारा सैन्य हेलिकॉप्टर को मार गिराया गया। उधर, सेना ने पुलिस स्पेशल फोर्स के हेडक्वार्टर पर हवाई हमला किया, जिसमें 17 पुलिस अधिकारी मारे गये। तुर्की की संसद में भी विस्फोट किया गया। सेना ने इस स्थान की अपने टैंकों से नाकेबंदी कर दी थी। विद्रोही सेना ने अंकारा में कई बड़े सैन्य अधिकारियों को बंधक बना लिया था। सेना ने टीवी पर बयान जारी कर के कहा कि उसने अंकारा को अपने कब्जे में ले लिया है। सेना का यह कहना था कि यह कार्रवाई तुर्की में प्रजातन्त्र को बचाने के लिए की गई है। सेना ने यह भी दावा किया कि तुर्की में अब मार्शल लॉ लागू कर दिया गया है और शीघ्र ही तुर्की का नया संविधान निर्मित किया जाएगा। लेकिन आम जनता सड़कों पर उतर आई और तख्तापलट का प्रयास विफल कर दिया।

हजारों की संख्या में विद्रोही सैनिकों को बंदी बना लिया गया है। इस पूरे घटनाक्रम में राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन अपनी सत्ता बचा पाने में तो कामयाब रहे किन्तु यह घटना तुर्की के लिए कई सवाल छोड़ जाएगी। आखिर क्या कारण है कि तुर्की सेना को तख्तापलट के बारे में सोचना पड़ा?

तुर्की की सामरिक स्थिति:
 
तुर्की सामरिक रूप से महत्वपूर्ण मध्य एशिया के पश्चिमी मुहाने पर स्थित देश है। आप इसे यूरेशिया भी समझ सकते हैं। इसकी पूर्वी सीमा मध्य एशिया के सीरिया, इराक, ईरान, आर्मेनिया और ज्योर्जिया देशों से मिलती है। इसकी पश्चिमी सीमा, पूर्वी यूरोप के बुल्गारिया और ग्रीस देशों से मिलती है। इसके उत्तर में काला सागर और दक्षिण में भूमध्य सागर हैं। तुर्की की राजधानी अंकारा है। इसकी मुख्य भाषा तुर्की है जो पहले फारसी रूप में लिखी जाती थी किन्तु कमाल अतातुर्क पाशा ने जब तुर्की को मुस्लिम बहुल होते हुए भी धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया तो तुर्की भाषा को फारसी से अलग कर उसे रोमन लिपि प्रदान की। उत्तरी एटलांटिक के नाटो समूह का यह प्रमुख देश है।

तुर्की में सेना द्वारा चुनी हुई सरकार के तख़्तापलट की यह पहली घटना नहीं है। तुर्की में पाकिस्तान की ही भांति वहाँ की सेना खुद को कमाल अतातुर्क पाशा की धर्म-निरपेक्ष नीतियों का संरक्षक मानती है और जब भी सेना को लगता है कि चुनी हुई सरकार इस्लामी-तुष्टिकरण की तरफ बढ़ रही है वह सत्ता पलट देती है। अब तक तीन बार ऐसा हो चुका है। अब आइए हम यह जान लें कि कमाल अतातुर्क पाशा के सिद्धान्त क्या हैं जिनके प्रति वहाँ की सेना इतनी प्रतिबद्ध है।

कमाल अतातुर्क पाशा के सिद्धान्त और तुर्की:
 
कमाल अतातुर्क उर्फ मुस्तफ़ा कमाल पाशा (1881-1938) को आधुनिक तुर्की का निर्माता कहा जाता है। तुर्की के साम्राज्यवादी शासक सुल्तान अब्दुल हमीद द्वितीय को सत्ता से बेदखल कर तुर्की में सामाजिक, राजनीतिक व आर्थिक व्यवस्था कायम करने का जो ऐतिहासिक क्रान्तिकारी कार्य उन्होंने किया उसने उनके नाम को सार्थक सिद्ध कर दिया। उनकी इन्हीं आधुनिक, प्रगतिवादी नीतियों की वजह से उन्हें ‘अतातुर्क’ यानि तुर्कों के पिता के रूप में ख्याति मिली।

कमाल ने तुर्की की सत्ता हासिल करते ही कई दुस्साहस भरे निर्णय लिए। जो इस प्रकार हैं-
(1) उन्होंने महिलाओं को बराबर के अधिकार दिए।
(2) पर्दा प्रथा का जोरदार तरीके से विरोध किया और उसे समाप्त किया। उनके इन आधुनिक विचारों से इस्लामिक मुल्ला वर्ग बहुत असंतुष्ट हुआ, उनके विरुद्ध फतवे जारी किए गए किन्तु उन्होंने उनकी एक ना सुनी।
(3) उन्होंने वर्ष 1924 में तुर्की संसद में देश को धर्म-निरपेक्ष राष्ट्र बनाने का विधेयक रखा, अधिकांश सदस्य तुर्की को इस्लामिक देश के रूप में देखना चाहते थे पर अतातुर्क ने सांसदों को धमका कर और प्रलोभन देकर इस प्रस्ताव को पास करवाकर तुर्की को पहला मुस्लिम बहुल धर्म-निरपेक्ष देश बनाया।
(4) इसके बाद कमाल ने तुर्की टोपी पर हमला किया और इसके पहने जाने को प्रतिबंधित कर दिया। इस पर बड़े विद्रोह हुए, पर कमाल ने सेना भेज दी।
(5) इन्होंने तुर्की में इस्लामी कानूनों को हटाकर उनके स्थान पर एक नई संहिता स्थापित की जिसमें स्विटज़रलैंड, जर्मनी और इटली की सब अच्छी-अच्छी बातें शामिल की गई थीं।
(6) बहु-विवाह गैरकानूनी घोषित कर दिया गया। इसके साथ ही पतियों से यह कहा गया कि वे अपनी पत्नियों के साथ पशुओं की तरह-व्यवहार न करके बराबरी का बर्ताव करें। प्रत्येक व्यक्ति को वोट का अधिकार दिया गया। सेवाओं में घूस लेना निषिद्ध कर दिया गया और घूसखोरों को बहुत कड़ी सजाएँ दी गर्इं। स्त्रियों के पहनावे से पर्दा उठा दिया गया और पुरुष पुराने ढंग के पहनावे को छोड़कर आधुनिक, पश्चिमी सूट-बूट पहनने लगे।
(7) कमाल ने तुर्की को अरब और मुस्लिम प्रभाव से अलग करने केलिए एक और कठोर निर्णय लिया। उन्होंने तुर्की भाषा के लिए अरबी लिपि को हटाकर पूरे देश में रोमन लिपि की स्थापना की। कमाल स्वयं सड़कों पर जाकर रोमन वर्ण-माला में तुर्की भाषा पढ़ाते रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि सारा तुर्की संगठित होकर एक हो गया और उनमें अलगाव की भावना समाप्त हो गयी।
(8) कमाल ने तुर्की सेना को अत्यन्त आधुनिक ढंग से संगठित किया। 10 नवंबर 1938 में मुस्तफ़ा कमाल अतातुर्क की मृत्यु हुई।

तुर्की सेना अमूमन ऐतिहासिक तौर पर 'कमालिस्ट आइडियोलॉजी' की तरफ़ अधिक झुकाव रखती है। इसका सीधा सा मतलब है कि इस्लाम को सत्ता से दूर रखना। सेना तुर्की को एक नया, आधुनिक और प्रगतिशील राष्ट्र समझती है।

राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन पर इस्लामिक होने का आरोप:

राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन पिछले लगभग डेढ़ दशक से तुर्की में सत्ता में बने हुए हैं। वे वर्ष 1994 से 1998 तक इस्तांबूल शहर के मेयर रहे। सन 2003 से 2014 तक वे तुर्की के प्रधानमंत्री रहे। 2014 से वे तुर्की के राष्ट्रपति हैं। सेना का उनके ऊपर आरोप है कि वे किसी न किसी बहाने तुर्की में फिर इस्लामिक शासन लाने का प्रयास कर रहे हैं। इसी कारण से जब वे मेयर थे तो उनकी इस्लामिस्ट वेल्फेयर पार्टी को प्रतिबंधित कर दिया गया था और उनके ऊपर भी दस महीने तक चुनाव लड़ने से रोक लगा दी गई थी। जिसके बाद उन्होंने एकेपी पार्टी का गठन किया और 2003 के चुनाव में भारी जीत हासिल की और प्रधानमंत्री बने।
 
सेना का आरोप है कि राष्ट्रपति एर्दोगन तुर्की के प्रधानमंत्री बिनाली यिलदीरिम की शक्तियों का उपयोग कर रहे हैं और राष्ट्रपति जैसे निष्पक्ष और गरिमामय पद का दुरुपयोग कर रहे हैं। उनके ऊपर यह भी आरोप है कि वे सीरिया में राष्ट्रपति बशर-अल-असद का विरोध कर रहे हैं और इस्लामिस्ट आतंकवादियों का गुप-चुप समर्थन कर रहे हैं। तुर्की को अपने यहाँ कुर्द विद्रोहियों का भी सामना करना पड़ रहा है।
 
हालांकि राष्ट्रपति एर्दोगन का आरोप है कि इस तख़्ता पलट में उनके भूतपूर्व सहयोगी मुस्लिम मौलवी फतेउल्लाह गुलेन का हाथ है पर अभी यह आरोप एक दूर की कौड़ी है। तुर्की में सेना द्वारा यह असफल तख़्तापलट का प्रयास राष्ट्रपति एर्दोगन को एक चेतावनी अवश्य है, देखना है इस प्रयास का कितना असर उनके ऊपर पड़ता है। क्या वे अपनी इस्लामिक तुष्टिकरण की नीतियों पर आगे बढ़ते रहेंगे अथवा इस असफल प्रयास को चेतावनी समझ अपनी नीतियों में परिवर्तन करेंगे।

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