पेट्रोल-डीजल की कीमतें कम नहीं कर सकते तो ट्रैफिक जाम से ही निजात दिला दें

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देश में ट्रैफिक जाम की सर्वाधिक बुरी स्थिति कोलकाता की है। इसके बाद बैंगलुरु आता है। देश की राजधानी दिल्ली भी इससे अछूती नहीं है। हालांकि अत्यधिक यातायात दबाव के चलते अब देश में ट्रैफिक जाम की समस्या से शायद ही कोई शहर−कस्बा अछूता होगा।

उबर की हालिया रिपोर्ट में चौंकाने वाला यह सत्य सामने आया है कि ट्रैफिक जाम के चलते देश के चार महानगरों में ही एक लाख 44 हजार करोड़ रुपए का सालाना नुकसान हो जाता है। हालांकि उबर की रिपोर्ट व्यावसायिक स्पर्धा के चलते अतिशयोक्ति पूर्ण हो सकती है पर इसमें कोई दो राय नहीं कि देश में लाखों लीटर पेट्रोल/डीजल जाम की भेंट चढ़ जाता है। यह भी सही है कि समूचे देश का आकलन करें तो जाम की भेंट चढ़ने वाली राशि इससे कहीं अधिक है। एशियाई देशों से भी तुलना करें तो हमारे देश में ट्रैफिक जाम अन्य देशों की तुलना में 149 प्रतिशत अधिक है। देश में ट्रैफिक जाम की सर्वाधिक बुरी स्थिति कोलकाता की है। इसके बाद बैंगलुरु आता है। देश की राजधानी दिल्ली भी इससे अछूती नहीं है। हालांकि अत्यधिक यातायात दबाव के चलते अब देश में ट्रैफिक जाम की समस्या से शायद ही कोई शहर−कस्बा अछूता होगा। दरअसल देश में गांवों से शहरों की ओर पलायन, शहरों का बेतरतीब विस्तार, व योजनाबद्ध विकास का अभाव, स्वयं का वाहन खरीदने की अंधी होड़ और सार्वजनिक यातायात की समुचित व्यवस्था की कमी के कारण ट्रैफिक जाम विकट समस्या का रूप लेती जा रही है। यह समय और धन दोनों की बर्बादी का कारण होने के साथ ही देश में बढ़ रही रोडरेज की घटनाओं का भी प्रमुख कारण बनती जा रही है।

देश में महानगरों में जिस तेजी से आबादी का विस्तार हुआ है और जिस तेजी से दुपहिया, तिपहिया और चौपहिया वाहन सड़कों पर आने लगे हैं उसकी तुलना में हमारे महानगरों की तैयारी अधूरी है। महानगरों में आबादी के बढ़ते दबाव, गगनचुंबी इमारतों और उनकी तुलना में सड़कों का छोटा होना भी एक कारण बनता जा रहा है। मॉल और फ्लैट संस्कृति से यातायात पर बढ़ते दबाव ने कोढ़ में खाज का काम किया है। भले ही अब आरओबी या अण्डरपास बनाकर समस्या का तात्कालिक हल खोजा जा रहा हो पर दूरगामी सोच की अभी भी आवश्यकता है। महानगरों के विस्तार व आबादी के दबाव के साथ ही लोगों की क्रय शक्ति बढ़ने या दूसरे शब्दों में कहें कि सहज सुलभता होने से वाहनों की रेलमपेल होने लगी है। इसके साथ ही महानगरों में अभी भी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था इतनी सशक्त या कारगर नहीं हो पाई है कि जिससे यातायात पर बढ़ते दबाव को कम किया जा सके। जिस तरह से शहरों का विस्तार हो रहा है और शहर तेजी से महानगरों का आकार लेते जा रहे हैं उस विजन के साथ शहरों का नियोजित विकास नहीं हो पा रहा है।

दरअसल शहरीकरण के साथ ही सहज यातायात एक चुनौती बनता जा रहा है। शहरों की पुरानी बसावट वाले इलाकों में जहां प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र व शहरी परकोटे के आसपास ही सरकारी कार्यालयों का जमावड़ा होने से पौ फटने के साथ ही आवाजाही शुरु हो जाती है। अधिक दबाव वाले इलाकों के बंगले तेजी से बहुमंजिली इमारतों में तब्दील होते जा रहे हैं। इससे स्थानीय स्तर पर तो यातायात का दबाव बढ़ता ही जा रहा हैं वहीं दूर दराज की कॉलोनियों को जोड़ने वाले रास्तों पर भी यातायात का दबाव इस कारण से बढ़ता जा रहा है कि लोग निजी वाहनों से आवाजाही को अधिक सुविधाजनक मानते हैं। नकद या लोन पर आसानी से वाहन खरीद की सुविधा होने से एक ही घर में एक से अधिक वाहन होने लगे हैं। यही नहीं अब तो लक्जरी वाहन रखना प्रतिष्ठा का प्रश्न होता जा रहा है जिसके चलते बड़े वाहनों के सड़क पर आने से यातायात और अधिक प्रभावित होने लगा है। बड़े शहरों में तो हालात यह होते जा रहे हैं कि घरों के बाहर गलिया या यों कहें कि आम रास्ता ही पार्किंग स्थल में बदलता जा रहा है।

इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि शहरों में अभी सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था जिस तरह से प्रभावी होनी चाहिए, वैसी हो नहीं पा रही है और लोगों को सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पर विश्वास जम नहीं पाया है। दरअसल चौराहों व सर्किलों पर इस कदर यातायात का दबाव होता जा रहा है कि जाम की स्थिति बनना आम होता जा रहा है। इसके साथ ही इसे समय का बदलाव कहा जाए या अन्य कि एक समय था जब लोग साईकिल को शेयर यानी कि साईकिल पर भी दो−दो सवारी चली जाती थी, फिर स्कूटर, मोटर साईकिल पर दो−तीन सवारी तक गंतव्य तक चली जाती थी पर आज स्थिति यह है कि कार पर भी दो नहीं एक−एक व्यक्ति ही जाने में अपनी इज्जत समझता है। घर परिवार में ही पति के पास अलग कार तो पत्नी के पास अलग, बेटे−बेटियों के पास अलग। यानी कि एक समय था जब शेयर करना हमारी मानसिकता थी, वहीं अब स्थिति यह हो गई है कि निजता पर अधिक बल दिया जाने लगा है। इसके साथ ही पार्किंग की भी योजनाबद्ध व्यवस्था नहीं होने से जाम की स्थिति बन जाती है।

वाहनों की बेतरतीब पार्किंग भी जाम का एक कारण बनती है। इसके अलावा अभी भी नगर नियोजनकर्ताओं द्वारा आबादी की बहुतायत या मुख्य मार्गों के आसपास जिस तरह से बहुमंजिली इमारतों के निर्माण की अनुमतियां जारी की जा रही हैं, उससे जहां आबादी का दबाव बढ़ता जा रहा है वहीं सड़कों पर यातायात की अधिकता के कारण जाम की स्थिति आम होती जा रही है। भविष्य को ध्यान में रखकर यातायात व्यवस्था को अंजाम नहीं दिया जा रहा है। तात्कालिक उपाय खोजे जा रहे हैं। मिसिंग लिंक्स को नहीं देखा जा रहा है। वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की जा रही है। यातायात के अधिक दबाव वाले स्थानों को चिन्हित कर वहां पुलियाओं का निर्माण करवा कर यातायात को सुगम बनाया जा सकता है। नहीं तो महंगाई के इस दौर में पेट्रोल व डीजल की बर्बादी के साथ ही समय और धन के नुकसान की भरपाई संभव नहीं हो सकती। प्रयास तो यह होने चाहिए कि सार्वजनिक यातायात व्यवस्था सहज और सुचारु हो तो कुछ हद तक देरसबेर इस समस्या का हल निकाल सकता है।

-डॉ. राजेन्द्र प्रसाद शर्मा

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