भागवत ने गलत क्या कहा, सचमुच पाक सेना से भिड़ चुके हैं संघ के स्वयंसेवक

What Bhagwat said wrong, really Sangh''s volunteers fought with pak army
राकेश सैन । Feb 15 2018 2:38PM

मोहन भागवत ने कहा है कि उनके स्वयंसेवक देश की रक्षा के लिए तैयार हैं। देश को जरूरत पड़ी और संविधान इजाजत दे तो तीन दिनों में ही वे सेना के रूप में मातृभूमि की रक्षा के लिए तैयार हो जाएंगे।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि उनके स्वयंसेवक देश की रक्षा के लिए तैयार हैं। देश को जरूरत पड़ी और संविधान इजाजत दे तो तीन दिनों में ही वे सेना के रूप में मातृभूमि की रक्षा के लिए तैयार हो जाएंगे। हमें संघ और संगठन की नहीं, बल्कि देश की चिंता है। उन्होंने 11 फरवरी रविवार को मुजफ्फरपुर के जिला स्कूल मैदान में आयोजित स्वयंसेवकों के खुले सम्मेलन और पटना शाखा मैदान में स्वयंसेवकों को संबोधित किया। भागवत के इस देशभक्ति से ओतप्रोत वकतव्य पर संघ के इतिहास से अनजान या उसकी अनदेखी करने वाले व इस देश की माटी से कटे लोगों ने विवाद पैदा करने का प्रयास किया। परंतु इतिहास के जानकार जानते हैं कि संघ प्रमुख के इस कथन में न तो अतिश्योक्ति थी न ही अहंकार। भागवत बोल रहे थे संघ के गौरवशाली पराक्रम के बल पर जिसका प्रदर्शन स्वयंसेवकों ने जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तानी हमले के दौरान किया। इतिहास साक्षी है कि संघ के दो सौ स्वयंसेवकों ने मात्र एक दिन के सैन्य प्रशिक्षण के बल पर ऐसी क्षमता हासिल कर ली कि उन्होंने महाराजा हरि सिंह की सेना के साथ मिल कर पाकिस्तानी फौज को दो दिनों तक रोके रखा। इस युद्ध में स्वयंसेवकों ने प्रशिक्षित सैनिकों के समान जो पराक्रम दिखाया वह केवल संघ ही नहीं बल्कि देश के सैन्य इतिहास का गौरवशाली अध्याय है।

अपनी पुस्तक 'व्यथित जम्मू-कश्मीर' में प्रसिद्ध देश के विख्यात लेखक नरेंद्र सहगल बताते हैं कि पाकिस्तान ने विभाजन के तत्काल बाद से ही कश्मीर में गड़बड़ी शुरू कर दी थी। 15 अगस्त, यानि पाकिस्तान की आजादी के अगले दिन ही श्रीनगर की सरकारी इमारतों पर स्थानीय रियासत के झंडे उतार कर पाकिस्तानी झंडे फहरा दिए गए। कश्मीर में सुबह शाखाओं में इसकी चर्चा हुई तो प्रात: दस बजे तक पांच हजार स्वयंसेवक व हिंदू समाज के लोग एकत्रित हुए और भारत माता की जय के नारों के बीच इन झंडों को उतार कर आग के हवाले कर दिया। इससे कश्मीर के राजा हरि सिंह को अपार प्रसन्नता हुई और स्थानीय लोगों में उत्साह पनप गया। 

समय बीतने पर संघ के दो प्रचारक हरीश भनोट व मंगलसेन गुप्तचर के रूप में कबाईली बन कर पाकिस्तानी सेना में शामिल हो गए। इन्होंने पाकिस्तानी सेना की कश्मीर हमले की योजना से संबंधित बहुत सी जानकारी वहां के संघ प्रमुख श्री बलराज मधोक को दी। उन्होंने यह जानकारी महाराजा हरि सिंह को दी। महाराजा हरि सिंह ने श्री मधोक से दो सौ तरुण स्वयंसेवकों की मांग की। रात को दो बजे इन स्वयंसेवकों को सूचना हुई और सुबह 6 बजे सभी स्वयंसेवक श्रीनगर के आर्य समाज मंदिर में एकत्रित हुए। दैनिक प्रार्थना के बाद महाराजा की सेना इन स्वयंसेवकों को ट्रकों में सवार कर अपनी छावनी में ले गई। वहां पर शाम तक इन्हें राइफल व छोटे-मोटे हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। शाम तक ही यह स्वयंसेवक सेना के साथ मोर्चे पर पहुंच गए और दो दिन तक पाकिस्तानी सेना को तब तक रोके रखा जब तक भारतीय सेना कश्मीर के मोर्चे पर नहीं पहुंच गई।

कश्मीर पर पाकिस्तानी हमले के समय वायु सेना से हथियारों के बक्से ऐसे स्थान पर गिर गए जो पाकिस्तानी रेंज के अंदर आते थे। इसके लिए सेना के अधिकारी ने कोटली शाखा के नगर कार्यवाह व पंजाब नैशनल बैंक में प्रबंधक की नौकरी करने वाले चंद्रप्रकाश से संपर्क किया। वे अपने साथ सात अन्य स्वयंसेवकों को लेकर उस नाले में पहुंच गए जहां हथियारों के बक्से पड़े थे। इन्होंने बक्से उठाए परंतु पाकिस्तानी सेना को इसकी भनक लग गई और उसने अंधाधुंध फायरिंग कर दी। इस फायरिंग में स्वयं चंद्रप्रकाश व उनके साथी वेदप्रकाश घायल हो गए परंतु बाकी साथियों ने 6 हथियारों के बक्से सेना के पास पहुंचा दिए। हथियार पहुंचाने के बाद अपने घायल साथियों को वापिस लाने के प्रयास में दो और स्वयंसेवक पाकिस्तानी गोलीबारी का शिकार हो कर शहीद हो गए। बाद में पूरे कोटली नगर में पूरी शानोशौकत के साथ इन चारों शहीद स्वयंसेवकों का अंतिम संस्कार किया गया। बताया जाता है कि उनके अंतिम संस्कार में कोटली के निवासियों के साथ-साथ बड़ी संख्या में सैनिकों व सैनिक अधिकारियों ने भी हिस्सा लिया था।

उस समय कश्मीर में हवाई पट्टियों की हालत ऐसी न थी कि वहां हवाई जहाज उतर सकें। वहां मजदूरों की उपलब्धता भी नहीं थी। ऐसे में सैंकड़ों स्वयंसेवकों ने सेना के साथ मिल कर रातों रात हवाई पट्टियां बना दीं व पुरानी रिपेयर कर दीं। रोचक बात यह रही कि यह स्वयंसेवक अपने साथ अपना खाना और निर्माण कार्य के लिए सामग्री भी लेकर पहुंचे थे। दिन रात लग कर इन्होंने हवाई पट्टियों को चालू कर दिया। इन्हीं पट्टियों पर उतरी भारतीय सेना अभी पूरे कश्मीर में तिरंगा झंडा फहराती जा रही थी कि देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने बढ़ती हुई भारतीय सेना को रुक जाने का आदेश दे दिया। परिणाम यह हुआ कि एक तिहाई कश्मीर आज भी भारत से बाहर रह गया और हमारे लिए सिरदर्द बना हुआ है। अगर कुछ घंटे भारतीय सेना को न रोका जाता तो आज पूरा कश्मीर भारत का हिस्सा होना था और न ही कश्मीर में आतंकवाद होना था। लेकिन दुर्भाग्य है कि देश को उपहारस्वरूप कश्मीर समस्या देने वाले नेहरू के वंशज राहुल गांधी व उनके दरबारी संघ प्रमुख की गर्वोक्ति को आज भारतीय सेना व तिरंगे का अपमान बता रहे हैं। इतिहास के प्रति जानकारी के अभाव में संघ को गांधी हत्या से जोड़ कर विवादों में फंसे राहुल गांधी अदालतों का चक्कर काट रहे हैं और उनके वकील ही बताते हैं कि उनके पास इन आरोपों से संबंधित कोई पुख्ता प्रमाण नहीं हैं। संघ विरोधियों को देश का इतिहास और राष्ट्रभक्ति का अध्याय पुन: पढ़ने की आवश्यकता है।

- राकेश सैन

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