फारुक अब्दुल्ला ने जो कहा वह जमीनी हकीकत के नजदीक है

What Farooq Abdullah said is near the ground reality

अब्दुल्ला ने यह भी कह डाला कि भारत ने कश्मीर की स्वायत्तता का सम्मान नहीं किया। जो प्रेम उसे कश्मीरियों को देना था, वह उसने नहीं दिया। जाहिर है कि सभी पक्षों को उनकी इन बातों से नाराज़ होना ही था।

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला ने सांप की बांबी में हाथ डाल दिया है। एक तरफ तो कांग्रेस और भाजपा उनकी निंदा कर रही हैं और दूसरी तरफ कश्मीर के अलगाववादी नेता उन पर टूट पड़े हैं। ऐसा क्या बोल दिया है, उन्होंने ? फारुक अब्दुल्ला ने बोल दिया है कि पाकिस्तान का कश्मीर पाकिस्तान के पास रहेगा और हिंदुस्तान का हिंदुस्तान के पास ! पाकिस्तान के कश्मीर को भारत युद्ध लड़कर नहीं छीन सकता और हिंदुस्तान के कश्मीर की आजादी या अलगाव का सवाल ही नहीं उठता, क्योंकि वह भूवेष्टित इलाका तीन बड़े राष्ट्रों- भारत, पाकिस्तान और चीन से घिरा हुआ है। तीनों के पास परमाणु बम हैं और कश्मीर के पास क्या है ? सिर्फ अल्लाह का नाम है।

फारुक अब्दुल्ला ने जो बात कही है, वही लंदन में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी ने भी कही थी। पाकिस्तान को यह बात अच्छी तरह से समझ लेनी चाहिए कि युद्ध, आतंकवाद और घुसपैठ के जरिए वह सौ साल भी कोशिश करता रहेगा तो कश्मीर को भारत से छीन नहीं पाएगा। 

अब्दुल्ला ने यह भी कह डाला कि भारत ने कश्मीर की स्वायत्तता का सम्मान नहीं किया। जो प्रेम उसे कश्मीरियों को देना था, वह उसने नहीं दिया। जाहिर है कि सभी पक्षों को उनकी इन बातों से नाराज़ होना ही था। अब्दुल्ला ने वह कह दिया, जो जमीनी हकीकत के नजदीक है। लोग चाहते हैं कि सामने वाला जो बोले, वह ऐसा ही हो, जैसा कि उनके दिल में है। लोगों के दिल में हर बात अपने-अपने हिसाब से होती है लेकिन अब्दुल्ला ने जो कहा उस पर सभी पक्षों को गंभीरता से विचार करना चाहिए।

कश्मीर के प्रति भारत की नीति ऐसी होनी चाहिए थी कि कश्मीरी लोग खुद कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय का प्रस्ताव रखते। लगभग यही बात, कुछ दूसरे शब्दों में, मैं भारत और पाकिस्तान के सभी प्रधानमंत्रियों से कहता रहा हूं। पाकिस्तानी कश्मीर के कई तथाकथित ‘प्रधानमंत्रियों’ और भारतीय कश्मीर के सबसे बड़े नेता शेख अब्दुल्ला से भी दिल्ली और श्रीनगर में कई बार यही बात हुई है। अटलजी ने कश्मीर का हल इंसानियत के दायरे में निकालने की बात कही थी और नरसिंहरावजी ने अपने लाल किला भाषण में ‘स्वायत्तता की सीमा आकाश तक’ बताई थी। अटलजी और जनरल मुशर्रफ इन बिंदुओं पर आगे बढ़ने वाले थे लेकिन दोनों देशों में सत्ता-परिवर्तन के कारण सारा मामला अधर में लटक गया। अभी दोनों देशों की सरकारें अपने-अपने जाल में उलझी हुई हैं। उनसे अभी ज्यादा कुछ उम्मीद करना ठीक नहीं है।

- डॉ. वेदप्रताप वैदिक

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़