तालिबान शासन का एक साल, अफगान में रह रहे और देश छोड़ गये लोगों की जिंदगी में क्या बदलाव आये?

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तालिबान शासन में जहां नागरिकों के अधिकारों पर कुठाराघात किया गया है वहीं महिलाओं के अधिकारों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिये गये हैं, उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली गयी है और जातीय अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न जोरों पर चल रहा है।

"सालगिरह" का शब्द अमूमन खुशी और जश्न से जुड़ा होता है। लेकिन 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे को एक साल पूरा होने जा रहा है और निश्चित रूप से यह अफगानियों के लिए खुशी का नहीं बल्कि गम का अवसर है। याद कीजिये पिछले साल के वह दृश्य जब अपनी जान पर खेलते हुए विमान के ऊपर चढ़कर भी देश छोड़ने को अफगानी आतुर दिख रहे थे, याद कीजिये वह मंजर जब काबुल हवाई अड्डे पर लंबी-लंबी लाइनें लग गयी थीं क्योंकि हर कोई बस अफगानिस्तान छोड़कर जल्द से जल्द भाग जाना चाहता था। उस समय भाग रहे लोगों के मन में तालिबान शासन के प्रति जिस बात का डर था वह एकदम सही साबित हुआ। अफगानी लोग पिछले साल 15 अगस्त से पहले आजाद थे अपनी मर्जी के कपड़े पहनने, अपनी मर्जी से खाने-पीने, घूमने, फिल्में देखने, ब्यूटी पार्लर जाने या अपने ही अंदाज में जीवन जीने के। लेकिन 15 अगस्त 2021 से उनका जीवन पूरी तरह बदल गया है। महिलाएं जहां घरों में कैद होकर रह गयी हैं वहीं अर्थव्यवस्था का बैंड बज जाने से पुरुष बेरोजगार हो गये हैं। 

तालिबान शासन में जहां नागरिकों के अधिकारों पर कुठाराघात किया गया है वहीं महिलाओं के अधिकारों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिये गये हैं, उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली गयी है और जातीय अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न जोरों पर चल रहा है। गुरुद्वारों और सिखों पर हमले जब-तब होते रहते हैं। यही नहीं तालिबान ने मीडिया को भी सेंसर कर दिया है और कई पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार भी किया गया है। हाल की कुछ रिपोर्टें दर्शाती हैं कि पंजशीर में मानवता के खिलाफ जमकर अपराध किये जा रहे हैं साथ ही देश में खनिज संपदा का बेहिसाब दोहन भी किया जा रहा है। तालिबानी नेताओं की बेटियां भले विदेशों में पढ़ाई कर रही हों लेकिन इन लोगों ने अफगानिस्तान में लड़कियों के लिए माध्यमिक विद्यालयों पर प्रतिबंध लगा दिया है। हाल ही में वित्त मंत्रालय में तैनात महिला कर्मचारियों को बर्खास्त करके उनके पुरुष रिश्तेदारों को नौकरी पर रख लिया गया।

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यही नहीं महिला मामलों के मंत्रालय को भी समाप्त कर दिया गया है। तालिबान का मानना है कि शिक्षित महिला अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होती है इसलिए उसे शिक्षित होने से रोका जाये। इसके लिए तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा करते ही स्कूल, कॉलेजों में लड़कियों के जाने पर रोक लगाई और उसके बाद नौकरीपेशा महिलाओं को घर बैठने के लिए कहा गया। फिर टीवी कार्यक्रमों में महिलाओं को दिखाये जाने पर रोक लगा दी, फिर महिलाओं के ब्यूटी पार्लर बंद करवा दिये, फिर महिलाओं के अकेले कहीं आने-जाने या घूमने पर रोक लगा दी, फिर बच्चियों को बगैर हिजाब के स्कूल जाने पर मनाही कर दी, फिर लड़कियों के खेलों में भाग लेने पर रोक लगा दी, फिर लड़के और लड़कियों के एक साथ शिक्षा हासिल करने पर रोक लगा दी। उसके बाद तालिबान सरकार ने आदेश जारी कर दिया कि सार्वजनिक स्थानों पर महिलाएं बुर्के से पूरी तरह ढकी होनी चाहिएं और उसके बाद टीवी एंकरों के चेहरे भी ढकवा दिये। पार्क में महिलाओं और पुरुषों की एक साथ मौजूदगी पर भी रोक लगा दी गयी है। 

एमनेस्टी इंटरनेशनल की हालिया रिपोर्ट अफगान महिलाओं की स्थिति को "धीमी गति से मौत" की तरफ बढ़ने के रूप में वर्णित करती है। देखा जाये तो अफगानिस्तान में एक बार फिर से वही दौर लौट आया है जब तालिबान लड़ाके कभी भी महिलाओं को उठा ले जाते हैं, उनसे जबरन निकाह करते हैं या बलात्कार करके छोड़ देते हैं। महिलाओं का अपने लिए आवाज उठाने को गुनाह माना जाता है। महिलाएं यदि हिम्मत करके आवाज उठाने को आगे भी आयें तो उन्हें गोलियों से भून देने की धमकी दी जाती है। हाल ही में एक रिपोर्ट भी सामने आई थी जिसमें बताया गया कि तालिबानी लड़ाके कपड़ों की दुकानों में जाकर जांचते हैं कि महिलाओं को क्या बेचा जा रहा है। दर्जियों को भी हिदायत दी जाती है कि महिलाओं के कपड़े बड़े और ढीले होने चाहिए ताकि उनके शरीर का कोई अंग बाहर नहीं दिख सके।

यही नहीं, तालिबान ने पुरुषों को भी दाढ़ी बढ़ाने और इसे न काटने और स्थानीय कपड़े पहनने का निर्देश दिया है अन्यथा परिणाम भुगतने के लिए तैयार रहने को कहा गया है। तालिबान शासन में किस प्रकार की अमानवीयता बरती जा रही है इसका उदाहरण हाल ही में देखने को मिला था। आपको याद दिला दें कि अभी जून महीने में एक शक्तिशाली भूकंप आया था जिसमें हजारों लोगों की जान चली गयी। भूकंप से गिरे मकानों के मलबे में जो दबा वो दबा ही रह गया था क्योंकि राहत और बचाव के लिए प्रशासन की ओर से कोई आया ही नहीं। यही नहीं, भूकंप के बाद हैजा का प्रकोप भी फैला जिसमें बड़ी संख्या में लोगों की मौत हो गयी। लेकिन लोगों को मरने से बचाने के लिए तालिबान शासन ने कोई पहल नहीं की।

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अफगानिस्तान पर तालिबानी कब्जे के बाद से वहां रह रहे लोगों का तो जीवन दूभर हुआ ही है साथ ही उन लोगों की भी परेशानियां कम नहीं हुई हैं जो देश छोड़कर चले गये हैं। तालिबान जब अफगानिस्तान पर कब्जा कर रहा था तब अमेरिका सिर्फ उन लोगों को लेकर गया जिन्होंने अमेरिकी फौजों का साथ दिया था। बाकी जितने भी लाखों की संख्या में शरणार्थी अन्य देशों में गये उनका बुरा हाल ही रहा। हाल ही में रिपोर्ट आयी थी कि ईरान ने हजारों अफगान शरणार्थियों को निर्वासित तो किया ही साथ ही ईरानी जनता और अधिकारियों ने अफगान शरणार्थियों के साथ अपमानजनक व्यवहार भी किया। इसके अलावा तुर्की ने भी 10,000 से अधिक अफगान प्रवासियों को बलपूर्वक निर्वासित कर दिया है। बेल्जियम में सैंकड़ों अफगान शरणार्थियों के समक्ष निर्वासित होने का खतरा मंडरा रहा है क्योंकि उनके शरण के दावों को खारिज कर दिया गया है। वहीं यूक्रेन के शरणार्थियों के लिए जगह बनाने के लिए जर्मनी ने 24 घंटे के भीतर अफगान शरणार्थियों को उनके घरों से बेदखल कर दिया। यही नहीं, कनाडा ने अफगान शरणार्थियों की संख्या 40,000 पर सीमित कर दी है, जबकि यूक्रेनी शरणार्थियों के लिए इस प्रकार की कोई सीमा नहीं है। एक अनुमान के मुताबिक, अगस्त 2021 के बाद से पड़ोसी देशों से 650000 से अधिक अफगानों को निर्वासित या अफगानिस्तान लौटा दिया गया है।

जहां तक सवाल है कि अफगानिस्तान का क्या होगा तो अभी पिछले महीने ही उज़्बेकिस्तान के ताशंकद में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन के एजेंडे में अफगानिस्तान के समक्ष सुरक्षा, स्थिरता और नाजुक आर्थिक स्थिति समेत कई चुनौतियां सबसे ऊपर रहीं। इस सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले 20 देशों में भारत भी शामिल था। अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मौलवी अमीर खान मुत्तकी ने सम्मेलन में तालिबान के शासन की नुमाइंदगी की। लेकिन सवाल यह है कि अफगानिस्तान का भला आखिर कैसे होगा जब तक वह खुद को नहीं सुधारेगा। तालिबानी नेता कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं। इसे जरा एक उदाहरण से समझिये। अभी-अभी अल कायदा का प्रमुख अयमान अल जवाहिरी मारा गया। इसे छिपाया था आतंकवादी संगठन ‘हक्कानी नेटवर्क’ ने। अमेरिका जिस अल-कायदा सरगना अयमान अल-ज़वाहिरी को बरसों से ढूँढ़ रहा था उसे तालिबान ने काबुल में एक सुरक्षित मकान में रखा हुआ था। अमेरिका का दावा है कि तालिबान ने अल-ज़वाहिरी को देश में पनाह देकर शांति समझौते का उल्लंघन किया है। वहीं, तालिबान का कहना है कि अमेरिका ने हवाई हमला कर शांति समझौते का उल्लंघन किया। यही नहीं, अमेरिका और तालिबान के बीच हस्ताक्षरित दोहा समझौते को भी समाप्त कर दिया गया है क्योंकि तालिबान के तहत आतंकवादी समूह खुद को फिर से तैनात कर रहे हैं। ऐसे में अफगानिस्तान का भविष्य क्या होगा यह भविष्य के ही गर्त में छिपा हुआ है।

- नीरज कुमार दुबे

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