राफेल विमान मामले में कुछ तो गड़बड़ है, अंबानी को यूँ ही नहीं मिला ईनाम!
राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर कांग्रेस द्वारा लगातार किये जा रहे सियासी हमलों से मोदी सरकार बैकफुट पर नज़र आ रही है। कांग्रेस ने एक प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से सरकार पर आरोप लगाया है कि नियमों को ताक पर रखकर यह सौदा किया गया है।
राफेल लड़ाकू विमान सौदे को लेकर कांग्रेस द्वारा लगातार किये जा रहे सियासी हमलों से मोदी सरकार बैकफुट पर नज़र आ रही है। कांग्रेस ने एक प्रेस कांफ्रेंस के माध्यम से सरकार पर आरोप लगाया है कि नियमों को ताक पर रखकर यह सौदा किया गया है। कांग्रेस द्वारा लगाये गए दो आरोप बेहद गम्भीर हैं। पहला मोदी सरकार द्वारा राफेल विमान के लिए यूपीए शासन के समय की डील के मुकाबले ज्यादा कीमत देना और दूसरा इस सौदे से जुड़ा ठेका सरकारी कम्पनी हिदुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड के स्थान पर एक निजी और एकदम अनाड़ी कम्पनी को सौंपना। कांग्रेस इस सौदे को जहाँ आक्रामक चुनावी मुद्दा बनाने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है वहीं एनडीए बेहद सधे हुए अंदाज में इस मुद्दे की धार को कुंद करना चाहता है। मोदी सरकार द्वारा किये गए इस सौदे में भ्रष्टाचार भले ही न हुआ हो परन्तु नियमों की अनदेखी को सिरे से ख़ारिज भी नहीं किया जा सकता। सरकार इस सौदे के लिए हुए समझौते को गोपनीय बताकर पल्ला झाड़ने का प्रयास कर रही है।
सूत्रों के अनुसार भारत और फ्रांस के बीच राफेल लड़ाकू विमान की खरीद सम्बन्धी जो समझौता हुआ है उसके मुताबिक भारत फ्रांस से 36 राफेल विमान खरीदेगा। जिसकी कुल कीमत 7.9 बिलियन यूरो अर्थात लगभग 59 हज़ार करोड़ रुपये होगी। भारत को इसके साथ स्पेयर पार्ट और मेटोर मिसाइल जैसे उन्नत हथियार भी प्राप्त होंगे। यह मिसाइल 100 किमी दूर स्थित दुश्मन के विमान को नेस्तनाबूत करने में सक्षम है। राफेल विमानों का निर्माण फ्रांस की डेसॉल्ट एविएशन कम्पनी ने किया है। दो शक्तिशाली इंजन वाले इस विमान की लम्बाई 15.20 मीटर तथा चौड़ाई 10.80 मीटर है। इसका कुल वजन बगैर हथियारों के 10 हजार तीन सौ किलोग्राम तथा हथियारों के साथ 15 हजार किलोग्राम है। राफेल में हवा से हवा में मार करने वाली 6 मिसाइलें लगी होती हैं। दो मिसाइलें इसके नीचे के हिस्से में लगी होती हैं। इसके दोनों पंखों में दो−दो मिसाइलें फिट की जा सकती हैं। यह विमान 3700 किमी की रेडियस से हमला कर सकता है। इसमें 1.30 एमएम की गन भी लगी होती है। जो एक बार में 125 राउंड फायर कर सकती है।
राफेल की ईंधन क्षमता 4700 किलोग्राम है। इन्हीं विशेषताओं के कारण राफेल को दुनिया का सबसे ताकतवर लड़ाकू विमान माना जाता है। यह विमान अपने नाम के मुताबिक काम करने में भी सक्षम है। फ्रेंच भाषा में राफेल का मतलब तूफ़ान होता है। यह विमान तूफानी गति से शत्रु को तबाह कर सकता है। चीन जैसे पड़ोसी देश पर दबाव बनाने के लिए भारत में ऐसे लड़ाकू विमानों की आवश्यकता वाजपेयी सरकार के समय महसूस की गयी थी। तभी इन विमानों के खरीद की रूपरेखा बनी थी। दरअसल भारतीय वायु सेना को अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कम से कम 42 लड़ाकू स्क्वाड्रंस की आवश्यकता थी जबकि वायु सेना की मौजूदा क्षमता महज 34 लड़ाकू स्क्वाड्रंस थी।
वाजपेयी सरकार में बने लड़ाकू विमान खरीद के प्रस्ताव को आगे बढ़ाते हुए यूपीए सरकार ने अगस्त 2007 में 126 विमानों की खरीद को मंजूरी दी। उसके बाद लड़ाकू विमानों के चयन की प्रक्रिया शुरू हुई। इस हेतु परिक्षण में अमेरिका के बोर्इंग एफ/ए−18ई/एफ सुपर हार्नेट तथा लॉकहीड मार्टिन एफ−16 फाल्कन, रूस का मिखोयान मिग−35, स्वीडन का साब जैस−39 ग्रिपेन और फ्रांस का डेसॉल्ट राफेल विमान शामिल हुआ था। इन छह फाइटर जेट्स के बीच राफेल का चुनाव किया गया था क्योंकि राफेल विमान कीमत तथा रखरखाव के लिहाज से अन्य विमानों की तुलना में काफी सस्ता था। चयन प्रक्रिया 2011 में पूरी हो पायी और 2012 में डेसॉल्ट एविएशन से सौदे पर चर्चा शुरू हुई लेकिन प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण पर गतिरोध होने के कारण 2014 तक यह सौदा नहीं हो पाया। विरोधियों का दावा है कि यूपीए सरकार 126 में से मात्र 18 पूर्ण तैयार राफेल लड़ाकू विमान डेसॉल्ट एविएशन से खरीदना चाहती थी और शेष 108 विमानों को प्रौद्योगिकी हस्तान्तरण के माध्यम से हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा असेम्बल किया जाना था। इस तरह यह सौदा सस्ता और व्यापक था। लेकिन डेसॉल्ट एविएशन भारत में बनने वाले 108 विमानों की गुणवत्ता की जिम्मेदारी लेने को तैयार नही था क्योंकि उसे हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमिटेड की कार्यप्रणाली पर भरोसा नहीं था।
कांग्रेस की मानें तो नये अनुबन्ध में जहाँ विमानों की कीमत पूर्व समझौते की तुलना में अधिक है वहीं इन विमानों के रखरखाव आदि का ठेका सरकारी कम्पनी एचएएल की जगह डेसॉल्ट रिलायंस एरोस्पेस लिमिटेड को दिया गया है। जो कि अनिल अम्बानी की रिलायंस डिफेन्स लिमिटेड और डेसॉल्ट एविएशन का संयुक्त उपक्रम है। रिलायंस को लड़ाकू विमान बनाने का लाइसेंस सरकार द्वारा आनन−फानन में देने की बात भी सामने आई है। अगर ये आरोप सही हैं तब फिर इस समझौते के बाद लड़ाकू विमान निर्माण के मामले में जहाँ भारत के आत्म−निर्भर बनने की सम्भवनायें स्वतः ही क्षीण हो जाती हैं वहीँ इसे एचएएल जैसी बड़ी और सरकारी कम्पनी के रहते एक निजी उद्यमी को लाभ देने का प्रयास भी कहा जायेगा। एचएएल ही भारत की एकमात्र कम्पनी है जो सैन्य विमान बनाती है। यदि एचएएल को इस अनुबन्ध में शामिल किया जाता तो यह कम्पनी राफेल की तकनीक को अपने यहाँ विकसित कर सकती थी। डेसॉल्ट एविएशन यहाँ अपने व्यापारिक हित साधने में पूरी तरह सफल रहा। रिलायंस डिफेंस लिमिटेड डेसॉल्ट एविएशन के साथ केवल एक इन्वेस्टर की भूमिका में ही रहेगा। कांग्रेस यदि देश की जनता को यह बात समझाने में सफल हो गयी तो आने वाले चुनाव में भाजपा के लिए यह मुद्दा एक बड़ी मुसीबत बन सकता है। भाजपा का यह तर्क शायद ही जनता को हजम हो कि डेसॉल्ट एविएशन अपना भारतीय ऑफसेट पार्टनर चुनने के लिए स्वतन्त्र है।
डॉ. दीपकुमार शुक्ल
(स्वतन्त्र पत्रकार)
नोटः लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं।
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