मनमोहन वैद्ध के बयान पर हंगामा क्यों है बरपा?

मनमोहन वैद्य के बयान में ऐसा कुछ नहीं था, जिस पर इतना हंगामा किया जाए। उनके बयान में तो भीमराव अंबेडकर का सम्मान निहित था। वैद्य के बयान में तीन प्रमुख बिन्दु थे।

जाति और मजहब के आधार पर राजनीति करने वाले दलों की एक सीमा होती है। ये विकास और सुशासन के अलावा अन्य किसी भी मुद्दे को लपकने के लिए तैयार रहते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक मनमोहन वैद्य ने आरक्षण पर विचार क्या व्यक्त किया, सभी नेता निशाना लगाने लगे। ये जातीय आधार पर यह बताने लगते हैं कि आरक्षण समाप्त किया जा रहा है। ऐसे बयान ‘शेर आया, शेर आया’ जैसी झूठी कहानी को चारितार्थ करते हैं जबकि हकीकत में ऐसा कुछ भी नहीं है। यह आरोप लगाया जाता है कि भाजपा संघ के इशारों पर चलती है और आरक्षण की संवैधानिक व्यवस्था समाप्त की जा रही है। जबकि सच्चाई यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ दलित व वनवासी बस्तियों में हजारों की संख्या में सेवा अभियान चलाता है। भाजपा सरकार देश व प्रदेश में पहली बार नहीं बनी है। आज केवल केन्द्र में ही नहीं सर्वाधिक राज्यों में भाजपा कि सरकारें हैं। भाजपा की कई प्रदेश सरकारें तो लगातार तीन चार बार से विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज करा रही है। ये सरकारें सबको साथ लेकर चल रही हैं।

इसमें तीन बार नरेन्द्र मोदी की गुजरात में चली सरकार भी शामिल है। इनमें से किसी भी सरकार पर आरक्षण की भावना व उल्लंघन या दलित पिछड़ों से भेदभाव का आरोप नहीं लगा। दूसरी ओर मनमोहन वैद्य के बयान पर हंगामा करने वालों की स्थिति पर विचार करें। कांग्रेस को देश व प्रदेशों में सर्वाधिक समय तक शासन करने का अवसर मिला। दलितों, पिछड़ों को यदि न्याय नहीं मिला तो इसकी सबसे ज्यादा जवाबदेही भी इसी पार्टी की है। आज वह डॉ. अम्बेडकर की दुहाई दे रही है जबकि अम्बेडकर केन्द्रीय मंत्रीमण्डल से किस प्रकार हटे थे, इसकी चर्चा वह नहीं करना चाहते।

कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि वैद्य का बयान संघ और भाजपा की दलित व पिछड़ा विरोधी मानसिकता को दर्शाता है। ये लोग दलित और पिछड़ों को पंडित नेहरू व सरदार पटेल द्वारा सुनिश्चित करने वाले अधिकार को छीनना चाहते हैं। इस बयान में कांग्रेस प्रवक्ता एक बार फिर अपने राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी की शैली में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक पहुंच गए। उन्होंने कहा कि इस बयान पर मोदी से स्पष्टीकरण ही नहीं माफी की मांग करते हैं। कांगेस के नेता जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी उनकी सतही व हल्की बातों को गंभीरता से नहीं लेते हैं। चाहे मोदी की सरकार हो या दशकों से चली आ रही भाजपा की अन्य सरकारे हों। किसी ने भी ऐसा कुछ नहीं किया, जिससे आरक्षण समाप्त करने की आशंका भी उत्पन्न हो। ऐसे में दलितों व पिछड़ों के प्रति झूठी हमदर्दी दिखाने से कांग्रेस को कोई लाभ नहीं मिलेगा।

इसी प्रकार राजद ने भी मोर्चा खोल दिया। लालू प्रसाद की भी बड़ी दलील थी। उन्होंने कहा कि संघ व भाजपा आरक्षण समाप्त करना चाहते हैं। ऐसा होने नही देंगे। लालू ने यह नहीं बताया कि आरक्षण कहां समाप्त हो रहा है। क्या कहीं उन्हें इसका प्रस्ताव दिखाई दिया है। फिर रोकने के लिए कहां जोर लगा देंगे। जब कहीं कुछ है ही नहीं तो पिछड़ों, दलितों को झूठी बात समझाने का प्रयास क्यों कर रहे हैं। वैसे लालू यादव को यही भी बताना चाहिए कि पन्द्रह वर्षीय शासन में उन्होंने दलितों, पिछड़ों का कल्याण किया है। खुले आम एमवाई के आधार पर सियासत और शासन करने वाले लोग भी बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के चुनाव में सत्ता पक्ष ने परिवार को ही तरजीह दी है। ऐसे लोग जब सत्ता में होते हैं तो पहले अपना परिवार फिर अपनी जाति के चुनिंदा लोगों से आगे जाकर सोच भी नहीं पाते। यहां तक कि अल्पसंख्यकों को भी इनके शासन में कुछ नहीं मिलता। उन्हें यह भय दिखाते हैं कि हमको वोट दो, नहीं तो भाजपा आ जायेगी। जबकि इनके शासन से ज्यादा अच्छी स्थिति भाजपा शासित राज्यों में होती है। इस बहाने एक दिलचस्प लड़ाई भी दिखी। कांग्रेस ने कहा कि संघ व भाजपा पं. नेहरू व सरदार पटेल द्वारा दी गयी आरक्षण व्यवस्था छीनना चाहते हैं। इसके विपरीत बसपा प्रमुख मायावती मानती हैं कि आरक्षण की व्यवस्था भीमराव अम्बेडकर ने दी थी। जाहिर है कि संविधान निर्माताओं को भी ये जाति, मजहब, वोट बैंक के हिसाब से देखते हैं। 

मायावती को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह संघ कि सहमति और भाजपा के सहयोग से उत्तर प्रदेश की तीन बार मुख्यमंत्री बनी थीं। इसी ने उन्हें एक खास पहचान दिलाई थी जिसके बल पर उन्हें एक बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का अवसर मिला। अब उन्हें अन्य समीकरणों का सहारा लेना पड़ रहा है। यदि इन नेताओं कि सहानुभूति सबके प्रति है, ये शोषित वर्गों को अधिकार व न्याय दिलाना चाहते हैं तो सरकार बदलने पर व्यवस्था व मानसिकता क्यों बदल जाती है। एक पार्टी की सरकार आती है तो चुनिंदा दलितों का बोलबाला हो जाता है। पिछड़े व अति दलित उपेक्षित रहते हैं। दूसरे दल की सरकार आती है तो एक जाति विशेष का वर्चस्व हो जाता है। थानों में तैनाती से लेकर प्रदेश लोकसेवा आयोग की नियुक्तियां तक आरोपों से घिर जाती हैं। वंचितों व शोषित के प्रति इतनी हमदर्दी है तो पहले अपना परिवार ही क्यों दिखाई देता है। क्या सामान्य दलित व अपने भाई बन्धु को एक जैसा अवसर दिया जाता है। ऐसे लोग नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगा रहे हैं। जिन्होंने गरीबों, वंचितों, दलितों, पिछड़ों को न्याय दिलाने के लिए व्यवस्था को पक्षपातविहीन बनाया।

मनमोहन वैद्य के बयान में ऐसा कुछ नहीं था, जिस पर इतना हंगामा किया जाए। उनके बयान में तो भीमराव अंबेडकर का सम्मान निहित था। वैद्य के बयान में तीन प्रमुख बिन्दु थे। एक यह कि मजहबी आधार पर आरक्षण नहीं होना चाहिए। इससे विभाजन की मानसिकता बढ़ेगी। दूसरा यह है कि अब तक जिन लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिला, उन तक इससे पहुंचाने का प्रयास होना चाहिए। इसके लिए सर्वेक्षण या समीक्षा होनी चाहिए। तीसरा यह है कि सबको शिक्षा के अवसर देने का प्रयास होना चाहिए। जब तक वंचितों शोषितों को न्याय नहीं मिलता तब तक आरक्षण जारी रहेगा। समस्या स्थापित होने के बाद इसकी जरूरत नहीं रहेगी। यह तो अंबेडकर का विचार था। वह धार्मिक आधार पर आरक्षण को घोर विरोधी थे।

आज फिर आरक्षण विषय पर विवाद खड़ा करने का प्रयास हुआ है। संघ ने हमेशा यह प्रयास किए हैं कि संविधान प्रदत्त आरक्षण जारी रहना चाहिए। संविधान में एसटी, एससी, ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान है। इन सभी वर्गों को आरक्षण का पूरा पूरा लाभ मिले इसके लिए संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने 1991 में प्रस्ताव पास किया था।’ 'प्रस्ताव में स्पष्ट कहा था कि एसटी-एससी और ओबीसी को आरक्षण के प्रावधान का पूरा लाभ मिले इसके प्रयास होते रहना चाहिए।'

बहरहाल, मनमोहन वैद्य ने कहा कि 'संघ के पदाधिकारी के नाते मैं स्पष्ट करना चाहता हूं कि अनावश्यक विवाद पैदा करने का प्रयास किया गया है। जब तक देश में जाति और जन्म आधारित असमानता रहेगी तब तक आरक्षण की सुविधा रहनी चाहिए। यह वाक्य मैंने लिटरेचर फेस्टिवल में भी कहा था और यही आरएसएस का पक्का स्टैंड है। इस विषय में विवाद उत्पन्न करने का प्रयास हुआ है। इसलिए विषय को एक बार फिर बताना पड़ रहा है। संघ को लेकर कंट्रोवर्सी उत्पन्न करने का प्रयास नहीं करें। इससे सामाजिक दृष्टि से तनाव पैदा करने की स्थिति बनती है।’

जवाहनलाल नेहरू ने भी इस विषय को अंतिम रूप से मान लिया था। आज यही बातें मनमोहन वैद्य ने कहीं तो कुछ नेताओं ने आसमान सिर पर उठा लिया। विश्लेषण करें तो यह वही नेता हैं जो विकास के मुद्दे का सामना नहीं करना चाहते। जाति मजहब की बातें ही इन्हें सुकून देती हैं।

- डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

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