विपक्षी एकता को नयी ऑक्सीजन तो मिली, पर क्या राहुल सभी को स्वीकार होंगे

Will every opposition party will be accep Rahul Gandhi

कर्नाटक प्रकरण ने विपक्षी एकता को नई ऑक्सीजन प्रदान कर दी है। एचडी कुमारस्वामी के शपथ समारोह में विपक्षी नेताओं का होने वाला जमावड़ा बता रहा है कि मोदी नामक चुनौती से निपटने के लिए कर्नाटक विपक्षी राजनीति की प्रयोगशाला बनने जा रहा है।

चित भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का, एक गंवई कहावत है लेकिन हाल की कुछ सियासी घटनाओं को देखते हुए बीजेपी पर बिल्कुल फिट बैठती है। कांग्रेस मुक्त भारत की हड़बड़ी में सभी नियम कायदों को दरकिनार कर राज्य दर राज्य सरकार बनाने की सत्तालिप्सा नये कीर्तिमान गढ़ रही है। दलील भी ऐसी जो किसी के गले न उतरे। 22वें राज्य कर्नाटक को अपनी छतरी तले लाने के लिए बीएस येदियुरप्पा के 23वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने का बचाव इस दलील के साथ किया जा रहा है कि राज्य विधानसभा चुनाव में भाजपा 104 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है, ऐसे में राज्यपाल वजूभाई वाला ने येदियुरप्पा को सरकार बनाने का न्योता दिया। गौरतलब है कि बहुमत न होने के बावजूद न केवल शपथ दिलाई गई बल्कि बहुमत साबित करने के लिए 15 दिनों का लंबा वक्त भी दे दिया। 

जाहिर है ऐसा इसलिए किया गया ताकि विधायकों को अपने पाले में लाया जा सके लेकिन यह मंसूबा परवान नहीं चढ़ सका और बीएस येदियुरप्पा ढाई दिन के मुख्यमंत्री साबित हुए। इससे इतर जिस दलील के साथ कि भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है, राज्यपाल वजूभाई वाला ने बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई ऐसे में यह सवाल तो बनता ही है कि अगर बड़ी पार्टी को ही सरकार बनाने के लिए राज्यपाल बाध्य हैं तो फिर गोवा, मणिपुर और मेघालय में इस नियम की पालना क्यों नहीं की गई? क्यों वहां चुनाव बाद बने गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया?

उल्लेखनीय है कि 224 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा चुनाव में 222 सीटों पर हुए मतदान में भाजपा कांटे की टक्कर में 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी है। कांग्रेस को 78 और जेडीएस को 37 सीटें मिली हैं। बहुजन समाज पार्टी को एक तथा एक सीट पर निर्दलीय को जीत मिली है। पिछले चुनावों के मुकाबले कांग्रेस को 44 सीटों का जबकि जेडीएस को तीन सीटों का नुकसान हुआ है। चुनाव के बाद बने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के 116 विधायक हैं। इस गठबंधन ने भी राज्यपाल के पास सरकार बनाने का दावा पेश किया था। लेकिन उनके दावे को नकार कर राज्यपाल वजूभाई वाला ने बीएस येदियुरप्पा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कर सियासी भूचाल ला दिया।

मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 24 घंटे के भीतर बहुमत साबित करने का निर्देश दिया और परिणाम, बड़े बेआबरू होकर बीएस येदियुरप्पा को इस्तीफा देने को मजबूर होना पड़ा। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को यह भलीभांति पता था कि राज्य में जिस तरह से चुनाव नतीजे आने से पहले ही कांग्रेस ने जेडीएस को मुख्यमंत्री पद का ऑफर देते हुए बिना शर्त समर्थन देने की घोषणा कर दी उससे बीजेपी को समर्थन जुटाना आसान नहीं होगा। यही कारण है कि येदियुरप्पा के शपथ समारोह में न तो भाजपा अध्यक्ष अमित शाह शामिल हुए और न ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।

बहरहाल, बीएस येदियुरप्पा के शपथ लेने को कांग्रेस ने जहां संविधान का सर्जिकल स्ट्राइक करार दिया, वहीं भाजपा की दलील है कि राज्य की जनता का जनादेश कांग्रेस के खिलाफ है। अगर वाकई ऐसा है तो क्या गोवा में 13 सीटों के साथ भाजपा को सरकार बनाने का जनादेश मिला था। गौरतलब है कि गोवा में पिछले साल हुए 40 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कांग्रेस को यहां 17 सीटें मिली थीं जो बहुमत के आंकड़े 21 से 4 कम थे। उधर बीजेपी को महज 13 सीटों पर जीत मिली। लेकिन कांग्रेस को सत्ता से बाहर रखने के लिए भाजपा गोवा फॉरवर्ड पार्टी, महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी और तीन निर्दलियों के समर्थन के साथ सरकार बना ले गई। रातोंरात हुए जनादेश के इस अपहरण को सियासी मैनेजमेंट करार दिया गया। बता दें कि चुनाव से पहले कांग्रेस और गोवा फॉरवर्ड पार्टी के बीच औपचारिक गठबंधन नहीं हो पाया था, लेकिन सीटों की साझेदारी जरूर हुई थी। 

मणिपुर में भी कांग्रेस 60 सीटों में से 28 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी थी जबकि बीजेपी को 21 सीटें मिली थीं, लेकिन भाजपा ने सरकार बना ली। वहां भी गोवा का फार्मूला अपनाकर नगा पीपुल्‍स फ्रंट और नेशनल पीपुल्‍स पार्टी के साथ गठबंधन करके सरकार बनाने का दावा राज्यपाल नजमा हेपतुल्ला के सामने पेश किया और हेपतुल्ला ने भाजपा के दावे को स्वीकार करते हुए उसे पहले आमंत्रित किया था।

मेघालय में भी कुछ ऐसी स्थिति बनी थी जहां कांग्रेस एक बार फिर चूक गई थी। 60 सदस्यों वाली विधानसभा में उसे 21 सीटें मिली थीं। भाजपा ने एक बार जोड़तोड़ के जरिये जीत हासिल कर ली थी। भाजपा ने नेशनल पीपुल्‍स पार्टी ऑफ कांग्रेस संगमा, यूनाइडेट डेमोक्रेटिक पार्टी, पीपुल्‍स डेमोक्रेटिक फ्रंट, हिल स्‍टेट पीपुल्‍स डेमोक्रेटिक पार्टी और एक निर्दलीय के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई थी।

बहरहाल, कर्नाटक की बात करें तो सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप ने जहां बीजेपी को बैकफुट पर ला दिया है वहीं, विपक्षी एकता को नई ऑक्सीजन प्रदान कर दी है। एचडी कुमारस्वामी के शपथ समारोह में विपक्षी नेताओं का होने वाला जमावड़ा बता रहा है कि मोदी नामक चुनौती से निपटने के लिए कर्नाटक विपक्षी राजनीति की प्रयोगशाला बनने जा रहा है। विपक्ष को लगता है कि 2019 में एकजुट होकर मोदी नामक महाबली के विजय रथ को रोका जा सकता है। हालांकि अभी यह दूर की ही कौड़ी है। सबसे बड़ा सवाल है कि विपक्षी एकता की धुरी कौन बनेगा? इसका नेतृत्व कौन करेगा? चुनाव दर चुनाव हार का रिकॉर्ड कायम कर रहे कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को क्या पूरा विपक्ष अपना नेता मानने को तैयार होगा? इससे भी बड़ी बात कि भाजपा भी चुप नहीं बैठेगी। हो सकता है कि कुछ महीनों बाद कर्नाटक में भी बिहार की पुनरावृत्ति देखने को मिल जाये। ऐसे में कर्नाटक की सत्ता पर फिलहाल काबिज जेडीएस-कांग्रेस पर अभी भी सत्ता से बेदखल होने की तलवार लटक रही है। यह देखना भी दिलचस्प होगा कि प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा पाले क्षेत्रीय क्षत्रप किसी एक के नेतृत्व को स्वीकार करने के लिए तैयार होंगे या एक बार फिर तथाकथित विपक्षी एकता चूं चूं का मुरब्बा ही साबित होगा। 

-बद्रीनाथ वर्मा

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़