विश्व जनसंख्या दिवसः विकराल होती जा रही जनसंख्या

राजेश कश्यप । Jul 11 2016 12:58PM

हमारे देश की जनसंख्या भी बड़ी तेजी से बढ़ती चली जा रही है और निरन्तर अनेक विकट चुनौतियां चिन्ता का सबब बन रही हैं। देश की जनसंख्या गत 2001-2011 के दशक में 17.7 प्रतिशत की दर से बढ़ती हुई 1,21,05,69,573 हो गई है।

जनसंख्या को नियंत्रित रखने और लोगों को शिक्षित एवं जागरूक करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 11 जुलाई को ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ मनाया जाता है। इसकी शुरूआत 11 जुलाई, 1989 को हुई थी। उस समय विश्व की जनसंख्या तेजी से बढ़ती हुई 5 अरब के आंकड़े पर पहुंच चुकी थी। विकराल होती जनसंख्या के बाद पैदा होने वाली विकट चुनौतियों ने सभी देशों में चिंता का सबब बनने लगा। तब इस विशेष दिवस को संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की संचालक परिषद द्वारा जनसंख्या दिवस घोषित करके प्रतिवर्ष हर जनमानस में बढ़ती जनसंख्या के प्रति जागरूकता पैदा करने और परिवार नियोजन का संकल्प लेने का अभियान शुरू करना पड़ा।

आज विश्व की कुल आबादी 7 अरब को भी पार कर चुकी है। यदि विश्व की जनसंख्या इसी तरह बढ़ती रही तो वर्ष 2100 में यह आंकड़ा 11 अरब के आंकड़े को छू लेगा। आज पूरा विश्व विकराल होती जनसंख्या और बढ़ती विकट चुनौतियों का आकलन करके बेहद चिंतित है। बढ़ती जनसंख्या के कारण आर्थिक सन्तुलन तो गड़बड़ाया ही है, साथ ही प्राकृतिक सन्तुलन को भी काफी हद तक प्रभावित किया है। बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में मूलभूत जरूरतें पूरी नहीं हो पा रही हैं और संसाधन निरन्तर कम होते चले जा रहे हैं।

हमारे देश की जनसंख्या भी बड़ी तेजी से बढ़ती चली जा रही है और निरन्तर अनेक विकट चुनौतियां चिन्ता का सबब बन रही हैं। देश की जनसंख्या गत 2001-2011 के दशक में 17.7 प्रतिशत की दर से बढ़ती हुई 1,21,05,69,573 हो गई है, जिसमें 83,34,63,448 पुरूष और 37,71,06,125 महिलाएं शामिल हैं। जनसंख्या के मामले में हमारा देश विश्व में चीन के बाद दूसरे स्थान पर आता है। एक अनुमान के मुताबिक सन् 2030 तक चीन को पछाड़कर, भारत विश्व में प्रथम स्थान पर पहुंच जाएगा। भारत में विश्व की कुल जनसंख्या का 17.23 प्रतिशत निवास करती है, जबकि देश का क्षेत्रफल विश्व के कुल क्षेत्र का मात्र 2.45 प्रतिशत ही है। एक नजरिए से विश्व का हर छठा व्यक्ति भारतीय है। कहना न होगा कि विकराल होती जनसंख्या के कारण देश की उन्नति एवं प्रगति पर बड़े घातक प्रभाव पड़ रहे हैं और प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन हो रहा है। विकराल होती जनसंख्या के कारण रोटी, कपड़ा, मकान, स्वास्थ्य, शिक्षा, पानी जैसी बुनियादी आवश्यकताओं का अभाव निरन्तर बढ़ता चला जा रहा है।

देश में गरीबी और भूखमरी का साम्राज्य निरन्तर बढ़ता चला जा रहा है। विकासशील देशों में गिने जाने वाले भारत देश में आज भी 2.2 करोड़ से अधिक लोग खुले आसमान के नीचे खाना खाने को मजबूर हैं। यूनिसेफ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में करीब 60 करोड़ लोग खुले में शौच करते हैं। विश्व बैंक के अनुसार दुनिया की 64 प्रतिशत अति गरीब आबादी महज पाँच देशों में रहती है, जिनमें भारत (33 प्रतिशत), चीन (13 प्रतिशत), नाईजीरिया (7 प्रतिशत), बांग्लादेश (6 प्रतिशत) और लोकतांत्रिक गणराज्य कांगो (5 प्रतिशत) शामिल है। बेहद विडम्बना का विषय है कि इनमें भारत का प्रथम स्थान है। अति दरिद्रता के चलते देश में गैर-कानूनी होने के बावजूद छह लाख से अधिक लोग मैला ढ़ोने को विवश हैं। देश के 56 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हुए हैं। नैशनल सैम्पल सर्वे कमीशन के अनुसार देश में करीब 52 प्रतिशत किसान कर्जदार हैं। नेशनल क्राइम रिकार्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में प्रतिदिन औसतन 46 किसान आत्महत्या करने को विवश हैं।

संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व का हर तीसरा कुपोषित बच्चा भारत का है। देश में मातृ-मृत्यु दर के आंकड़े भी बड़े चैंकाने वाले हैं। यूनिसेफ के अनुसार लगभग एक लाख महिलाएं प्रतिवर्ष प्रसव के दौरान दम तोड़ जाती हैं और आधे से अधिक महिलाएं खून की कमी का शिकार हैं। जनसंख्या की अपार वृद्धि के कारण गरीबी, बेकारी, भूखमरी, बेरोजगारी में भारी बढ़ौतरी हुई है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1991 से वर्ष 2013 के बीच भारत के श्रमबल में 30 करोड़ लोग जुड़े, लेकिन 14 करोड़ रोजगार ही पैदा हो सका। इसका मतलब भारत में आधे से भी कम रोजगार पैदा हुआ। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिवर्ष 40 लाख नई नौकरियों की आवश्यकता है।

बढ़ती जनसंख्या के कारण न्याय प्रक्रिया भी बेहद प्रभावित हो रही है। देश की अदालतों में 3.15 करोड़ मुकदमे लंबित हैं और 3 करोड़ याचिकाकर्ता हैं। हर चौथा व्यक्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक याचिकाकर्ता है। अगले 20 साल में यह संख्या बढ़कर हर दूसरे व्यक्ति पर आ जायेगी। चैंकाने वाली बात यह है कि जहां अमेरिका में पूरा सुप्रीम कोर्ट मिलकर एक वर्ष में 81 मुकदमे निपटता है, वहीं भारत में एक जज 2600 मुकदमे निपटाता है। न्यायालायों पर बढ़ते निरन्तर दबाव के कारण गत दिनों मुख्य न्यायाधीश ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से एक कार्यक्रम में भावुक होकर जजों की संख्या 21 हजार से बढ़ाकर 40 हजार करने की अपील करनी पड़ी। 

जनसंख्या के बढ़ते ग्राफ के साथ ही कृषि क्षेत्र पर दबाव बढ़ा है। एक तरफ खाद्यान्न की मांग बढ़ी है और दूसरी तरफ कृषि भूमि में भारी कमी आई है। अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लीकेशन सेंटर (एसएसी) की रिपोर्ट के अनुसार भारत की उपजाऊ भूमि का 25 फीसदी हिस्सा रेगिस्थानी भूमि में तब्दील हो चुका है और 32 फीसदी भूमि बंजर हो चुकी है। इस समय देश में अभी 18.3 करोड़ हेक्टेयर भूमि ही कृषि योग्य है, जिसमें से कई कारणों के चलते मात्र 14.1 करोड़ हेक्टेयर में ही कृषि हो पा रही है। एक शोध रिपोर्ट में चिंता जाहिर की गई है कि जब देश की आबादी डेढ़ अरब के आसपास होगी, तब हम 1.69 करोड़ टन खाद्यान्न की कमी से जूझ रहे होंगे। ईंधन की आपूर्ति के लिए वनों की तेजी से कटाई हो रही है और प्रतिवर्ष एक प्रतिशत वन भूमि मरूभूमि में तब्दील होती चली जा रही है। इसके साथ ही पर्यावरण प्रदूषण की समस्या विकट से विकटतम होती चली जा रही है। पर्यावरणविदों के अनुसार स्वस्थ पर्यावरण के लिए कम से कम 33 प्रतिशत भूमि पर वन होने चाहिएं, जबकि हमारे यहां मात्र 11 प्रतिशत भूमि पर ही वन मौजूद हैं।

सबसे बड़ी चिंता का विषय है कि देश में जल स्तर निरन्तर घटता चला जा रहा है। पानी की बढ़ती मांग और अत्यधिक जल दोहन के कारण देश में पानी की मात्रा बेहद सीमित होती चली जा रही है, जिसके कारण पीने के पानी की समस्या भी अत्यन्त विकराल स्वरूप लेती चली जा रही है। सबसे बड़ी चिंता का विषय है कि देश का एक तिहाई से अधिक हिस्सा डार्क जोन में चला गया है। विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत का 15 प्रतिशत भूभाग पानी के गम्भीर संकट से घिरा हुआ है, वहीं वर्ष 2030 तक यह 60 प्रतिशत की चपेट में आ जायेगा। जल संसाधन एवं नदी विकास मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार देश के प्रमुख 91 जलाशयों में मात्र 15 प्रतिशत ही पानी बचा है।

हालांकि पहले से कहीं अधिक साक्षरता देशभर में बढ़ी है। लेकिन, इसके बावजूद एक बड़ी आबादी आज भी निरक्षर है और बहुत बड़ी चुनौती का विषय है। गाँवों में साक्षरता की स्थिति अत्यन्त चिंतनीय है। चाईल्ड राईट्स एण्ड यू (क्राई) की रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग 1 करोड़ 25 लाख बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। वर्ष 2001-2011 की अवधि के दौरान शहरी बालश्रम में 50 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज की गई। तमाम कोशिशों के बावजूद देश के करीब 36 प्रतिशत छात्र आठवीं कक्षा से पहले ही स्कूल छोड़ने को विवश हैं। इनमें लड़कियों और कमजोर तबके के बच्चों की संख्या सर्वाधिक है।

इन सब विकट समस्याओं का एकमात्र ठोस समाधान विस्फोटक स्थिति में जा पहुंची जनसंख्या पर हर हाल में काबू पाना है। बेलगाम जनसंख्या पर काबू पाने के लिए सबसे कारगर तरीका परिवार नियोजन अपनाना ही है। कितने बड़े आश्चर्य का विषय है कि सरकार परिवार नियोजन कार्यक्रमों एवं योजनाओं पर करोड़ों रूपये खर्च करके संचालन कर रही है। इसके बावजूद कोई सार्थक परिणाम नहीं निकल पा रहे हैं। 11 मई, 2000 को राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का गठन किया गया था, जिसका उद्देश्य बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए समग्र मार्गदर्शन प्रदान करना था। इसके तहत कई तरह के बहुआयामी प्रयास भी किए गए। योजना के व्यापक व बहुक्षेत्रीय समन्वय को सुनिश्चित करने तथा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण की योजनाओं को लागू करने के लिए राष्ट्रीय जनसंख्या आयोग का मई, 2005 में पुर्नगठन किया गया। लेकिन विडंबनावश हर तरह के प्रयासों के बावजूद विकराल होती जनसंख्या पर तनिक भी अंकुश नहीं लग पा रहा है। कहने की आवश्यकता नहीं है कि जब तक देश कर जन-जन बढ़ती जनसंख्या के बढ़ते भयंकर दुष्प्रभावों के प्रति जागरूक नहीं होगा और परिवार नियोजन का दृढ़ संकल्प नहीं लेगा, तब तक अनुकूल परिणाम संभव नहीं हैं।

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