साक्षात्कारः योगेंद्र यादव ने कहा- कम से कम हम आंदोलनभोगी तो नहीं हैं

yogendra yadav

''आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार ने ऐड़ी से लेकर चोटी तक जोर लगा लिया। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। रही बात मुझ पर एफ़आईआर होने की। आंदोलन से जब हुकूमतें डगमगाने लगती हैं तो मुक़द्दमों को हथियार बनाती हैं।''

प्रधानमंत्री का भरी संसद में कहा एक शब्द हिरण की तेज चाल की भांति ट्रेंड कर रहा है। शब्द है ‘आंदोलनजीवी’! ये किसके लिए कहा गया शायद बताने की जरूरत नहीं, सभी जानते हैं। करीब ढाई महीने से दिल्ली में चले आ रहे किसान आंदोलन पर प्रधानमंत्री कुछ नहीं बोले, बोले भी तो तंजात्मक रूप से। संसद में अपनी चुप्पी तोड़ते हुए उन्होंने ऐसा बयान दिया, जिससे देश का एक वर्ग उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गया। प्रधानमंत्री ने आंदोलनजीवी जिन लोगों के संदर्भ में कहा उनमें योगेंद्र यादव भी शामिल हैं। उनको लगता है ये शब्द स्पेशली उनको लेकर बोला गया। इसी मुद्दे पर डॉ. रमेश ठाकुर ने सामाजिक कार्यकर्ता, चुनाव विश्लेषक व स्वराज इंडिया संगठन प्रमुख और दिल्ली में जारी किसान आंदोलन के मुख्य लोगों में शामिल योगेंद्र यादव से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश-

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प्रश्न- बीते कुछ वर्षों से विभिन्न आंदोलनों में आपकी मौजूदगी दिखी, शायद इसलिए आप पर इशारा हो?

उत्तर- मुझे ये तमगा हमारे प्रधानमंत्री ने दिया है इससे अच्छी और भला दूसरी बात क्या हो सकती है। मैं आंदोलनजीवी हूं, ताल ठोककर कहता हूं लेकिन चोरजीवी तो नहीं हूं, औरों की तरह आंदोलनभोगी तो नहीं हूं, मौक़ापरस्त भी नहीं हूं। आंदोलनों से मैंने कुछ हासिल तो किया नहीं, लोगों की आवाज़ उठाई है और उठाता रहूंगा? देखिए, एक सामान्य नागरिक के तौर पर धरना देना, आंदोलन करना, मौलिक अधिकार हैं। संविधान में व्यवस्था है और इजाज़त है। बावजूद इसके अगर प्रधानमंत्री को लगता है ऐसा नहीं होना चाहिए, तो उन्हें धरनों-आंदोलनों पर भी कानून बना देना चाहिए। ताकि जब तक उनकी सरकार रहे, उनकी कोई आलोचना न करे, उनका कोई विरोध न करे, उनके फैसले पर कोई उंगली न उठाए।

प्रश्न- आपको क्यों लगता है कि प्रधानमंत्री के फैसले गलत हैं?

उत्तर- सही क्या हैं आप बता दो। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल से लोगों को बहुत उम्मीदें थीं। जनादेश का बड़ा समुद्र था। लेकिन उसे पचा नहीं पाए। अब सिर्फ मुट्ठी भर लोग बचे हैं जो उनकी जयजयकार करते हैं। एक वक्त ऐसा आएगा, जब उनकी पार्टी में ही ऐसी भगदड़ मचेगी जिसे संगठित करना आसान नहीं होगा। हामेहामी मिलाने वाले समर्थक अंदर से भरे हुए हैं। ये बात लिख कर रख लो, आंदोलन अभी कृषि क़ानूनों को निरस्त करने को लेकर हो रहा है, पर अब देशवासियों ने उसकी दिशा दूसरी ओर सत्तापरिर्वन की तरफ मोड़ दी है। महापंचायतों में जुटती भारी संख्या में लोगों की भीड़ इस बात का परिणाम है।

प्रश्न- जारी आंदोलन के बीच कई राज्यों में महापंचायतें हो रही हैं, क्या है उनका मकसद?

उत्तर- अपना मुकम्मल हक मांगने वालों का जबसे प्रधानमंत्री ने मखौल उड़ाया है, तभी से देशवासी आंदोलनजीवी हो गए हैं। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और यूपी में आयोजित हुईं हालिया महापंचायतों में हजारों-लाखों का जमावड़ा क्या कहता है उसकी तस्वीर 2024 में दिखाई देगी। केंद्र के आधे से ज्यादा मंत्री प्रधानमंत्री के फ़ैसलों से नाखुश हैं। वह अलग बात है कि अभी बोल कोई नहीं रहा। जिस दिन अंदर खाने विरोध की चिंगारियां उठने लगीं, तो जनता का काम अपने आप आसान हो जाएगा। मीडिया भी आज उनकी हामेहामी मिला रही है, एकदम पलटी मारेगी देख लेना। 

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प्रश्न- 26 जनवरी हिंसा को लेकर आप पर भी एफ़आईआर दर्ज हुई है?

उत्तर- अरेस्ट करे पुलिस आकर। हमारा ठिकाना सिंघु बार्डर है वहीं मिलेंगे। हिंसा न हो, सतर्कता बरती जाए आदि को लेकर 25 जनवरी को मैंने खुद कई बड़े पुलिस अधिकारियों को आगाह किया था। हिंसा सरकार की सुनियोजित साजिश थी। उससे आंदोलनकारियों को बदनाम करना था। कुछ घंटों के लिए उन्होंने लोगों की सहानुभूति लूटी भी, लेकिन सच्चाई बहुत जल्द सामने आ गई। आंदोलन को खत्म करने के लिए सरकार ने ऐड़ी से लेकर चोटी तक जोर लगा लिया। लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। रही बात मुझ पर एफ़आईआर होने की। आंदोलन से जब हुकूमतें डगमगाने लगती हैं तो मुक़द्दमों को हथियार बनाती हैं। आजादी से लेकर इस आंदोलन तक मुकदमे दर्ज हुए, आगे भी होते रहेंगे।

प्रश्न- आंदोलनजीवी शब्द को आपने व्यक्तिगत क्यों लिया?

उत्तर- किसने कहा आपको कि मैंने व्यक्तिगत लिया है, कतई नहीं? इसलिए नहीं लिया क्योंकि मैं हूं आंदोलनजीवी। मैं अन्ना आंदोलन का भी हिस्सा था, बाकी अन्य राज्यों में होते रहे छिटपुट मूवमेंटों में भी गया। लोगों ने आमंत्रित किया मैं गया। मैं जो हूं, सबके सामने हूं, जीवन खुली किताब जैसा है। जब अन्ना आंदोलन हुआ तब भाजपाईयों का पर्दे के पीछे समर्थन था, तब उन्हें अच्छा लगता था। अब आंदोलन उन्हीं के खिलाफ है तो उसे विचार धाराओं में विभाजित कर दिया। पाकिस्तानी, खालिस्तानी, वामपंथी व पता नहीं क्या-क्या तमगे दिए गए।

प्रश्न- आंदोलन का परिणाम निकलता दिखाई नहीं देता, समाप्ति के कुछ आसार हैं या नहीं?

उत्तर- देखिए, इतना तय है किसान खाली हाथ लौटने वाला नहीं? दो सौ किसानों की शहादत जाया नहीं जाएगी। मौजूदा किसान आंदोलन तो अभी झांकी है। इसके बाद केंद्र सरकार कुछ ऐसे फैसले लेने जा रही है जिससे विरोध की चिंगारियां और भड़कने वाली हैं। जनसंख्या कानून, सीएए-एनआरसी आदि मुद्दों पर भी बाजार गर्म होगा। मौजूदा आंदोलन विपक्षी दलों से प्रेरित बताया जा रहा है। हम इस बात को मानते हैं विभिन्न दलों के नेता आते हैं लेकिन मंच साझा नहीं कराते, उनको हम महँगाई जैसे बाकी मुद्दों को उठाने की सलाह देते हैं।

प्रश्न- सरकार-किसानों के बीच दूसरे दौर की वार्ता की भी संभावनाएं नहीं दिखतीं?

उत्तर- मोर्चा बातचीत को तैयार है। सरकार और सरकार के लोग सिर्फ मीडिया में बयान देते हैं। कम से कम कोई पहल तो करे। मोर्चे की ओर से बातचीत के सभी रास्ते खोले हुए हैं। मैं इस बात का पक्षधर हमेशा से रहा हूं कि बिना संवाद के हल नहीं निकलने वाला। मोर्चे की मांग है दूसरे दौर की वार्ता में खुद प्रधानमंत्री या गृहमंत्री आएं ताकि समाधान निकल सके।

-बातचीत में जैसा योगेंद्र यादव ने डॉ. रमेश ठाकुर से कहा।

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