जायफल की टॉफियों के उत्पादन के लिए हुआ करार

nutmeg candies

जायफल मिरिस्टिका नामक वृक्ष से प्राप्त होता है, और मिरिस्टिका के बीज को जायफल कहते हैं। मिरिस्टिका प्रजाति के वृक्ष की लगभग 80 जातियां हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महासागर के कई द्वीपों पर पाई जाती हैं।

जायफल टॉफी के उत्पादन से संबंधित तकनीक के व्यावसायीकरण के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की गोवा स्थित शाखा सेंट्रल कोस्टल एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईसीएआर-सीसीएआरआई) और गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड के बीच एक करार हुआ है। इस करार पर आईसीएआर-सीसीएआरआई  के निदेशक डॉ ई.बी. चाकुरकर और गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड के सदस्य सचिव डॉ प्रदीप सरमोकदम ने हस्ताक्षर किए हैं।

इसे भी पढ़ें: रहस्यमय ‘आइंस्टीनियम’ को समझने के लिए नया शोध

जायफल मिरिस्टिका नामक वृक्ष से प्राप्त होता है, और मिरिस्टिका के बीज को जायफल कहते हैं। मिरिस्टिका प्रजाति के वृक्ष की लगभग 80 जातियां हैं, जो भारत, आस्ट्रेलिया तथा प्रशांत महासागर के कई द्वीपों पर पाई जाती हैं। यह फल छोटी नाशपाती जैसा दिखाई है, जिसकी लंबाई एक से डेढ़ इंच तक होती है। जायफल में लगभग 80-85 प्रतिशत पेरिकॉर्प यानी उसका बाहरी छिलका होता है। आमतौर पर, किसान जायफल के बीज और उसके गूदे का इस्तेमाल करते हैं, और उसके छिलके को खेतों में ही छोड़ देते हैं। लेकिन, इस तकनीक के माध्यम से व्यर्थ छोड़ दिए गए छिलकों के माध्यम से जायफल टॉफी बनायी जाएगी। 

व्यावसायिक दृष्टिकोण से जायफल टॉफी एक महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ है। यह उत्पाद जायफल के बीज और उसके गूदे की उपज से निर्मित मसाला उत्पादों के अलावा किसानों और उद्यमियों को एक अतिरिक्त आय दिलाने में भी मदद करेगा। इसकी खास बात यह है कि सामान्य तापमान पर इस उत्पाद का एक साल तक भंडारण किया जा सकता है।

इसे भी पढ़ें: जूते-चप्पल में चिपकी धूल को सोख लेने वाला चिपचिपा मैट

आईसीएआर-सीसीएआरआई के निदेशक डॉ ई.बी. चाकुरकर ने  गोवा राज्य में किसानों एवं कृषि उद्यमियों को लाभ पहुंचाने के लिए भविष्य की प्रौद्योगिकियों के व्यावसायिक उपयोग और हस्तांतरण की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि इसका उद्देश्य किसानों की आय को बढ़ाना, रोजगार के अवसर पैदा करना है, ताकि स्थानीय जैव-संसाधनों का संरक्षण किया जा सके।

गोवा स्टेट बायोडायवर्सिटी बोर्ड (जीएसबीबी) के सदस्य सचिव डॉ प्रदीप सरमोकदम ने कहा कि राज्य के जैविक संसाधनों के उपयोग के माध्यम से जैव विविधता को संरक्षण देने की दिशा में जीएसबीबी, आईसीएआर-सीसीएआरआई के साथ लगातार काम करता रहेगा। आईसीएआर-सीसीएआरआई द्वारा इस तकनीक को पेटेंट कराने के लिए आवेदन भी कर दिया गया है। 

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़