सीसीएमबी के वैज्ञानिकों ने उजागर किया ततैया का जीनोम

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ततैया ड्रोसोफिला के लार्वा में अंडे देती है और इस तरह ततैया और ड्रोसोफिला के बीच जैविक संघर्ष की शुरुआत होती है। इस संघर्ष में यदि ततैया की जीत होती है, तो प्यूपा से ततैया बाहर निकलता है, अन्यथा ड्रोसोफिला फल मक्खी का जन्म होता है।

कीट-पतंगों की दुनिया रहस्यों से भरी हुई है। वैज्ञानिक अध्ययनों में कई अवसर आते हैं जब छोटे-छोटे कीट-पतंगों का जीवन और उनके रहन-सहन के तौर-तरीकों से वैज्ञानिकों को नयी दिशा मिलती है। इसी तरह के एक ताजा अध्ययन में भारतीय वैज्ञानिकों ने ततैया के जीनोम अनुक्रमण (Genome Sequencing) का खुलासा किया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ततैया के जीनोम की जानकारी फल मक्खी (ड्रोसोफिला) और ततैया के बीच होने वाले जैविक संघर्ष से संबंधित जटिलताओं को उजागर करने मददगार हो सकती है।

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यह अध्ययन वैज्ञानिक तथा औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) की हैदराबाद स्थित घटक प्रयोगशाला सेंटर फॉर सेलुलर ऐंड मॉलिक्यूलर बायोलॉजी (सीसीएमबी) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। शोधकर्ताओं ने ड्रोसोफिला के परजीवी ततैया लेप्टोपिलिना बोलार्डी (Leptopilina boulardi) का उच्च गुणवत्ता युक्त संदर्भ जीनोम (Reference Genome) पेश किया है। संदर्भ जीनोम को संदर्भ समूह (Reference Assembly) के रूप में भी जाना जाता है। यह एक डिजिटल न्यूक्लिक एसिड अनुक्रम डेटाबेस है, जिसे वैज्ञानिकों द्वारा किसी प्रजाति के आदर्श जीव में जीन्स के सेट के प्रतिनिधि उदाहरण के रूप में संकलित किया जाता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि यह जानना दिलचस्प है कि ततैया; ड्रोसोफिला के लार्वा में अंडे देती है और इस तरह ततैया और ड्रोसोफिला के बीच जैविक संघर्ष की शुरुआत होती है। इस संघर्ष में यदि ततैया की जीत होती है, तो प्यूपा से ततैया बाहर निकलता है, अन्यथा ड्रोसोफिला फल मक्खी का जन्म होता है। 

सीसीएमबी के निदेशक डॉ राकेश मिश्रा ने कहा है कि “ततैया, जिसका वैज्ञानिक नाम लेप्टोपिलिना है, ड्रोसोफिला की एक विशिष्ट परजीवी है। ततैया, ड्रोसोफिला के लार्वा में अंडे देते है और इस तरह मेजबान और परजीवी के बीच एक संघर्ष की शुरुआत होती है। ड्रोसोफिला का वैज्ञानिक अध्ययन में महत्व बेहद अधिक है। ततैया का जीनोम अनुक्रमण करने के बाद अब हम जान चुके हैं कि मेजबान और परजीवी के बीच होने वाले इस संघर्ष के दौरान क्या होता है। जीनोम तकनीक उन जीन्स के संपादन में कारगर हो सकती है, जो ततैया को कमजोर या फिर शक्तिशाली बना सकते हैं।”

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लेप्टोपिलिना का संबंध कीटों के परजीवी ततैया वंश से है, जो परजीवी ततैया के फिजितिडे (Figitidae) कुल से संबंधित है। परजीवी ततैया के इस वंश को मुख्य रूप से इसके तीन ड्रोसोफिला परजीवियों – लेप्टोपिलिना बोलार्डी (Leptopilina boulardi), लेप्टोपिलिना हेटेरोटोमा (Leptopilina heterotoma) और लेप्टोपिलिना क्लैवाइप्स (Leptopilina clavipes) के लिए जाना जाता है। ड्रोसोफिला के इन परजीवियों का उपयोग वैज्ञानिक मेजबान एवं परजीवी के प्रतिरक्षा तंत्र पर पड़ने वाले परस्पर प्रभाव के अध्ययन में करते हैं।

शोध पत्रिका जी-3 (जीन्स, जीनोम्स, जेनेटिक्स) में प्रकाशित इस अध्ययन में कुल 25,259 प्रोटीन कोडिंग जीन्स का पता लगाया गया है, जिसमें से 22,729 जीन्स की व्याख्या ज्ञात प्रोटीन सिग्नेचर्स के उपयोग से की जा सकती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अध्ययन में उजागर ततैया जीनोम भावी वैज्ञानिक अध्ययनों के लिए मूल्यवान संसाधन हो सकते हैं, जिसका उपयोग मेजबान एवं परजीवी कीटों की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के बारे में समझ विकसित करने में हो सकता है। 

इस अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में डॉ राकेश मिश्रा के अलावा सीसीएमबी की शोधकर्ता शगुफ्ता खान, दिव्या तेज सौपति, अरुमुगम श्रीनिवासन और मैमिला सौजन्या शामिल हैं। 

(इंडिया साइंस वायर) 

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