भूजल स्‍तर में गिरावट के लिए जिम्‍मेदार है बिजली सब्सिडी

Electricity subsidy is responsible for the decline in ground water

पंजाब में किए गए एक नए अध्‍ययन से पता चला है कि भूजल में गिरावट के लिए किसानों को दी जाने वाली बिजली सब्‍स‍िडी भी जिम्‍मेदार हो सकती है। गिरते भूजल स्‍तर का सीधा संबंध फसल पद्धति से पाया गया है।

उमाशंकर मिश्र। (इंडिया साइंस वायर): विभिन्‍न राज्‍यों में भूजल के गिरते स्‍तर पर समय-समय पर विशेषज्ञ चेतावनी देते रहे हैं। पंजाब में किए गए एक नए अध्‍ययन से पता चला है कि भूजल में गिरावट के लिए किसानों को दी जाने वाली बिजली सब्‍स‍िडी भी जिम्‍मेदार हो सकती है। गिरते भूजल स्‍तर का सीधा संबंध फसल पद्धति से पाया गया है। राज्‍य में भूमिगत जल स्‍तर पर गहराते संकट के लिए चावल की फसल सबसे अधिक जिम्‍मेदार है। वर्ष 1980-81 में पंजाब में चावल की खेती 18 प्रतिशत क्षेत्र में होती थी। वर्ष 2012-13 में राज्‍य में चावल का रकबा 36 प्रतिशत बढ़ गया। जबकि चावल की खेती में गन्‍ने के मुकाबले 45 प्रतिशत और मक्‍के की अपेक्षा 88 प्रतिशत तक अधिक भूजल की खपत होती है। 

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद से सम्‍बद्ध राष्ट्रीय कृषि आर्थिकी एवं नीति अनुसंधान संस्थान, केंद्रीय समुद्री मत्स्‍य अनुसंधान संस्‍थान और नीति आयोग के अध्‍ययनकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्‍ययन हाल में करंट साइंस शोध पत्रिका में प्रकाशित किया गया है। अध्‍ययनकर्ताओं का कहना है कि फसल उत्‍पादन में प्रति घन मीटर खर्च होने वाले पानी के लिहाज से देखें तो अन्‍य फसलों की अपेक्षा चावल की खेती पंजाब के पारीस्थितिक तंत्र के मुफीद नहीं है।

अध्‍ययनकर्ताओं की टीम में शामिल डॉ. शिवेन्‍द्र कुमार श्रीवास्‍तव ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि ‘‘पिछले कुछ वर्षों में पंजाब की फसल पद्धति में बदलाव देखने को मिला है और चावल की खेती के साथ-साथ भूमिगत जल पर किसानों की निर्भरता तेजी से बढ़ी है। सिंचाई के लिए भूजल की उपलब्‍धता के साथ-साथ उच्‍च एवं सुनिश्चित पैदावार, समर्थन मूल्‍य, बेहतर बाजार, रियायती कृषि इन्‍पुट्स और खासतौर पर मुफ्त बिजली मिलने से किसान इस गैर-परंपरागत फसल की ओर ज्‍यादा आकर्षित हुए हैं।’’

वर्ष 1997 में पंजाब सरकार ने किसानों के लिए बिजली सब्सिडी शुरू की थी, जिसका दबाव पर्यावरण के साथ-साथ राज्‍य के खजाने पर भी लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2016-17 में राज्‍य सरकार का पावर सब्सिडी बिल 5,600 करोड़ रुपये था, जो मौजूदा वित्‍त वर्ष में बढ़कर 10 हजार करोड़ रुपये हो गया है। इसमें बिजली के लिए कृषि क्षेत्र को दी जाने वाली सर्वाधिक 7,660 करोड़ रुपये की रियायत शामिल है। 

राज्‍य में कृषि में भूमिगत जल के उपयोग के नियमन के लिए वर्ष 2009 में कानून बनाया गया था। अध्‍ययनकर्ताओं के अनुसार इस पर सख्‍ती से अमल किया जाए तो जलस्‍तर वृद्धि हो सकती है। लेकिन अध्‍ययन से पता चला है कि इस नियम के बावजूद जलस्‍तर में गिरावट हुई है। किसानों को अन्‍य फसलों की ओर आकर्षित करने की सरकार की कोशिश भी नाकाम रही है। वहीं, बिजली सब्सिडी और समर्थन मूल्‍य के कारण चावल मुनाफे वाली फसल बनी हुई है। 

अध्‍ययनकर्ताओं के अनुसार ‘‘पंजाब में बिजली सब्सिडी बंद की जाती है तो भूजल के दीर्घकालिक उपयोग और राज्‍य की खस्‍ता आर्थिक हालत को दुरुस्‍त करने में मदद मिल सकती है। इससे किसानों की आय कम हो सकती है, पर फसलों पर होने वाला उनका मुनाफा बना रहेगा। सामुदायिक सिंचाई यंत्रों की स्‍थापना के साथ-साथ भूजल बाजार को बढ़ावा देने से भी किसान किफायती तरीके से भूमिगत जल के उपयोग के लिए प्रेरित हो सकते हैं।’’

अध्‍ययन से यह भी पता चला है कि ‘‘भूमिगत जल स्‍तर कम होने से विभिन्‍न आकार की जोत वाले किसानों के कृषि अर्थतंत्र पर असर पड़ता है। लेकिन सबसे अधिक नुकसान छोटे एवं सीमांत किसानों को उठाना पड़ता है। भूजल स्‍तर में कमी से पारिस्थितिक संतुलन प्रभावित होता है। इससे किसानों पर आर्थिक बोझ बढ़ जाता है और भूमिगत जल के वितरण में सामाजिक-आर्थिक विषमता को भी बढ़ावा मिलता है।’’ (इंडिया साइंस वायर)

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