परीक्षण के लिए तैयार कोरोना वायरस से लड़ने के लिए गंगाजल आधारित नेज़ल स्प्रे

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एक नये अध्ययन में, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आईएमएस) के शोधकर्ताओं ने बैक्टीरियोफेज के चिकित्सीय उपयोग यानी ‘फेज थेरैपी’ के जरिये रोगजनक बैक्टीरिया से लड़ने के लिए एक नया नेज़ल स्प्रे विकसित किया है।

सूक्ष्मजीवों का संसार बेहद अनूठा और विविधता से भरा है। सभी जीवाणुओं (बैक्टीरिया), आर्किया एवं लगभग सभी प्रोटोजोआ के अतिरिक्त कुछ कवक, शैवाल इत्यादि को सूक्ष्मजीव जगत के रूप में जाना जाता है। कुछ सूक्ष्मजीव-विज्ञानी वायरस को भी सूक्ष्मजीव मानते हैं, तो कुछ अन्य लोग इन्हें 'निर्जीव' मानते हैं। वायरस, मनुष्यों एवं जंतुओं के साथ-साथ पौधों एवं बैक्टीरिया को भी संक्रमित करने के लिए जाने जाते हैं। इनमें से जो वायरस बैक्टीरिया को संक्रमित करके मेजबान कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं, उन्हें जीवाणुभोजी या बैक्टीरियोफेज कहते हैं।

एक नये अध्ययन में, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (आईएमएस) के शोधकर्ताओं ने बैक्टीरियोफेज के चिकित्सीय उपयोग यानी ‘फेज थेरैपी’ के जरिये रोगजनक बैक्टीरिया से लड़ने के लिए एक नया नेज़ल स्प्रे विकसित किया है। यह नेज़ल स्प्रे गंगाजल में पाए जाने वाले बैक्टीरियोफेज पर आधारित है। आईएमएस-बीएचयू के शोधकर्ता इस नेज़ल स्प्रे का कोविड-19 के मरीजों पर परीक्षण की तैयारी कर रहे हैं। परीक्षण की अनुमति के लिए इस नेज़ल स्प्रे को आईएमएस-बीएचयू की नैतिक मामलों की 12 सदस्यीय समिति के पास भेजा गया है।

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आईएमस-बीएचयू के शोधकर्ता प्रोफेसर विजयनाथ मिश्र ने कहा है कि “मंजूरी मिलने के बाद इस नेज़ल स्प्रे का परीक्षण शुरू कर दिया जाएगा। यह परीक्षण 250 लोगों पर किया जाना है। परीक्षण परिणामों के आधार पर ही आगे की रणनीति तय की जाएगी।” उन्होंने बताया कि गंगा में पाए जाने वाले फेज वायरस, जिन्हें बैक्टीरियोफेज के रूप में जाना जाता है, का उपयोग बहुत-से शोधकर्ता त्वचा के घावों और जलने से होने वाले संक्रमण के उपचार के लिए कर चुके हैं।

वायरस, मनुष्यों एवं जंतुओं के साथ-साथ पौधों एवं बैक्टीरिया को भी संक्रमित करने के लिए जाने जाते हैं। इनमें से जो वायरस बैक्टीरिया को संक्रमित करके मेजबान कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं, उन्हें जीवाणुभोजी या बैक्टीरियोफेज कहते हैं।

शोधकर्ताओं का कहना है कि गंगा नदी के पानी में 1200 से अधिक किस्मों के बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं। वहीं, यमुना में 200 और नर्मदा में 150 प्रकार के बैक्टीरियोफेज पाए जाते हैं। गंगाजल के इसी गुण के कारण नेज़ल स्प्रे में इसका उपयोग किया गया है।

"बैक्टीरियोफेज" का शाब्दिक अर्थ "बैक्टीरिया खाने वाला" होता है, जो मेजबान कोशिकाओं को नष्ट कर देते हैं। एक न्यूक्लिक एसिड अणु से बना बैक्टीरियोफेज प्रोटीन संरचना से घिरा रहता है। किसी अत्यंत संवेदनशील बैक्टीरिया से खुद को जोड़कर बैक्टीरियोफेज वायरस मेजबान कोशिका को संक्रमित करता है। संक्रमण के बाद, बैक्टीरियोफेज, बैक्टीरिया के कोशकीय तंत्र की कार्यप्रणाली पर कब्जा जमाने लगाते हैं और मेजबान कोशिका को वायरल घटकों के उत्पादन के लिए बाध्य करते हैं।

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शोधकर्ताओं में प्रोफेसर विजयनाथ मिश्रा के अलावा बीएचयू के प्रोफेसर रामेश्वर चौरसिया, डॉ अभिषेक, डॉ वरुण सिंह, डॉ आनंद कुमार एवं शोध छात्रा निधि और भारतीय विषविज्ञान संस्थान, लखनऊ के वैज्ञानिक डॉ रजनीश चतुर्वेदी शामिल हैं। प्रोफेसर मिश्र ने कहा कि इस अध्ययन और गंगा में पाए जाने वाले बैक्टीरियोफेज से संबंधित एक विस्तृत रिपोर्ट इंटरनेशनल जर्नल ऑफ माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित की गई है।

इंडिया साइंस वायर

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