भारतीय वैज्ञानिकों ने बनाया चावल के दाने से छोटा राडार

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भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक अपने नये डिजाइन की बदौलत सभी इलेक्ट्रॉनिक घटकों को एक छोटी चिप में लगाने में सफल हुए हैं। राडार के विकास से जुड़ी विशिष्ट चुनौतियों से निपटने के लिए उन्होंने नई वास्तुशिल्प और सर्किट डिजाइन तकनीकों का उपयोग किया है, जिसमें विस्तृत बैंडविड्थ ट्रान्सीवर डिजाइन शामिल है।

नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): दीवार के आर-पार की गतिविधियों की जानकारी मिल जाए तो घटनास्थल पर सबसे पहले पहुंचने वाले पुलिसकर्मियों, दमकलकर्मियों और सुरक्षा बलों को आपात स्थितियों से निपटने में मदद मिल सकती है। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब चावल के दाने से भी छोटी चिप पर एक ऐसा राडार विकसित किया है, जो इस तरह की परिस्थितियों से निपटने में मददगार हो सकता है। 

भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलूरू के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित यह थ्रू-द-वॉल राडार (टीडब्ल्यूआर) है, जो एक तरह की इमेजिंग तकनीक है। इस तरह के राडार रक्षा क्षेत्र से लेकर कृषि, स्वास्थ्य और परिवहन समेत विभिन्न क्षेत्रों में उपयोगी हो सकते हैं।

इस राडार को विकसित करने वाले शोध दल का नेतृत्व कर रहे भारतीय विज्ञान संस्थान के इलेक्ट्रिकल कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर गौरब बैनर्जी ने बताया कि “दुनिया के कुछ मुट्ठी भर देशों के पास ही आज किसी राडार के पूरे इलेक्ट्रॉनिक्स को एक चिप पर स्थापित करने की क्षमता है।”

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संपूरक धातु ऑक्साइड अर्धचालक (सीमॉस) तकनीक के उपयोग से विकसित इस राडार में एक ट्रांसमिटर, एक उन्नत फ्रीक्वेंसी सिंथेसाइजर और तीन रिसीवर लगाये गए हैं, जो जटिल राडार संकेत उत्पन्न कर सकते हैं। इन सभी इलेक्ट्रॉनिक घटकों को एक छोटी-सी चिप पर लगाया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि छोटा आकार होने के कारण इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर आसानी से किया जा सकता है।

राडार किसी चीज से संकेतों के टकराकर वापस लौटने के सिद्धांत पर काम करते हैं और इनका उपयोग करते समय संकेतों के वापस लौटने में लगने वाले समय का आकलन किया जाता है। इस तरह के संकेतों के आधार पर वस्तु या इन्सान का एक खाका तैयार किया जा सकता है और यह निर्धारित करने में भी मदद मिल सकती है कि वह वस्तु किस गति से चलायमान है। टीडबल्यूआर तकनीक आम राडार से एक कदम आगे की चीज है, जो रेडियो तरंगों के जरिये दीवारों को भेदने के सिद्धांत पर काम करती है, जिसे प्रकाश की किरणें भेद नहीं पाती हैं।

डॉ बैनर्जी ने बताया कि “’राडार डिजाइन के मामले में टीडब्ल्यूआर इमेजिंग हमेशा से चुनौतीपूर्ण रहा है।” इसकी एक वजह यह है कि दीवारों से गुजरते हुए संकेत मंद पड़ जाते हैं। अधिक आवृत्तियों से युक्त रेडियो तरंगें इस चुनौती को हल करने में उपयोगी हो सकती हैं, जिसे डिजाइन करना एक जटिल कार्य है। इस तरह के राडार में खास तरह के चर्प संकेतों का उपयोग होता है, जिसमें माइक्रोवेव ट्रांसमीटर, एक रिसीवर और एक आवृत्ति सिंथेसाइजर जैसे अनुकूलित इलेक्ट्रॉनिक्स की आवश्यकता होती है।

भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक अपने नये डिजाइन की बदौलत सभी इलेक्ट्रॉनिक घटकों को एक छोटी चिप में लगाने में सफल हुए हैं। राडार के विकास से जुड़ी विशिष्ट चुनौतियों से निपटने के लिए उन्होंने नई वास्तुशिल्प और सर्किट डिजाइन तकनीकों का उपयोग किया है, जिसमें विस्तृत बैंडविड्थ ट्रान्सीवर डिजाइन शामिल है।

डॉ बनर्जी का कहना है कि "छोटे और सस्ते स्मार्टफोन बनाने की तकनीक का उपयोग राडार सिस्टम के लिए अत्यंत छोटे इलेक्ट्रॉनिक घटक डिजाइन करने में हो सकता है।" इस चिप का विकास मूल रूप से एयरपोर्ट सुरक्षा से जुड़े अनुप्रयोगों के लिए किया गया है। हालांकि, बैनर्जी और उनकी टीम स्वास्थ्य जैसे अन्य क्षेत्रों में भी इस चिप के उपयोग के तरीके खोजने में जुटी है। बुजुर्गों की सेहत की मॉनिटरिंग ऐसा ही एक क्षेत्र है, जिसमें इसका उपयोग हो सकता है। किसी घर को स्कैन करके टीडब्ल्यूआर सिस्टम वहां मौजूद व्यक्तियों की गतिविधि से लेकर उनके सांस लेने की दर का भी आकलन कर सकता है। 

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यह अध्ययन भारत सरकार के इम्प्रिंट कार्यक्रम, मानव संसाधन विकास मंत्रालय और रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के अनुदान पर आधारित है। इसके अलावा, भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड भी इम्प्रिंट परियोजना के आरंभ के समय से ही इसका औद्योगिक साझीदार रहा है। डॉ. बैनर्जी और उनकी टीम अब इस तकनीक के व्यावसायीकरण के विकल्पों की तलाश कर रही है। 

(इंडिया साइंस वायर)

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