कच्छ क्षेत्र के भूदृश्य में बदलाव के पीछे तीव्र भूकंप की घटनाएं

earthquake

कच्छ क्षेत्र में भूकंपीय जटिलता अत्यधिक है। पूर्व-पश्चिम ट्रेंडिंग फॉल्ट लाइनों के रूप में विभिन्न भूकंपीय स्रोतों की विशेषता इसके कारणों में शामिल है, जो भूकंप उत्पन्न करने वाले अंतरालों पर संचित टेक्टोनिक तनाव पैदा करते हैं।

भारतीय शोधकर्ताओं के नये अध्ययन में भूकंप की घटनाओं के चलते गुजरात के कच्छ क्षेत्र में कटरोल हिल फॉल्ट के भूदृश्य में असाधारण परिवर्तनों का पता चला है। गत 30 हजार वर्षों की अवधि में तीव्र भूकंप घटनाएं भूदृश्य में इन बदलावों के लिए जिम्मेदार बतायी जा रही हैं। यह अध्ययन महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय, वड़ोदरा के भूवैज्ञानिकों द्वारा किया गया है।

इसे भी पढ़ें: हिमालयी पौधे ‘बुरांश’ में मिले एंटी-वायरल फाइटोकेमिकल्स

शोधकर्ताओं का कहना है कि भूवैज्ञानिक अतीत में फॉल्ट के भूकंपीय इतिहास के बारे में आश्चर्यजनक भूगर्भीय तथ्य सामने आने के बाद भूकंप के खतरों से निपटने के लिए नये सिरे से विचार करने की आवश्यकता है। उनका कहना है कि औद्योगिक गलियारे और भुज शहर सहित प्रमुख बस्तियों के निकट होने के कारण कच्छ बेसिन में इस खुलासे के बाद एक संशोधित भूकंपीय जोखिम मूल्यांकन एवं शमन रणनीति अपेक्षित हो जाती है। 

कच्छ क्षेत्र में भूकंपीय जटिलता अत्यधिक है। पूर्व-पश्चिम ट्रेंडिंग फॉल्ट लाइनों के रूप में विभिन्न भूकंपीय स्रोतों की विशेषता इसके कारणों में शामिल है, जो भूकंप उत्पन्न करने वाले अंतरालों पर संचित टेक्टोनिक तनाव पैदा करते हैं। वर्ष 2001 के विनाशकारी भुज भूकंप की घटना के बाद भूकंप की वास्तविक समय में की जा रही निगरानी से संकेत मिलते हैं कि इस क्षेत्र में अधिकांश फॉल्ट - जैसे कि कच्छ मैनलेंड फॉल्ट, दक्षिणी वागड फॉल्ट, गेडी फॉल्ट और आइलैंड बेल्ट फॉल्ट भूंकपीय रूप से सक्रिय हैं। 

शोधकर्ताओं का कहना है कि कटरोल हिल फॉल्ट (केएचएफ) जैसे अन्य फॉल्टों के साथ भूकंपीय गतिविधियां स्पष्ट नहीं होने के कारण इस क्षेत्र में भूकंपीय खतरे का आकलन और शमन कार्य वैज्ञानिक रूप से जटिल हो जाता है।

कटरोल हिल फॉल्ट को अब तक अच्छी तरह नहीं समझा जा सका है। महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के भूवैज्ञानिक भूगर्भीय विधियों का उपयोग करके कच्छ में भूकंपीय गतिविधि को समझने की कोशिश कर रहे हैं। प्रोफेसर एल.एस. चाम्याल और इसके बाद प्रोफेसर डी.एम. मौर्य के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने इस फॉल्ट के बारे में पिछले करीब 30 हजार वर्षों के दौरान अधिक तीव्रता वाले तीन बड़े भूकंपों से सतह के टूटने की लंबाई लगभग 21 किलोमीटर होने का अनुमान लगाया गया है।

इसे भी पढ़ें: डीआरडीओ की एंटी टैंक गाइडेड मिसाइल का सफल परीक्षण

यह अध्ययन, मुख्य रूप से भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के एफआईएसटी कार्यक्रम के तहत वित्त पोषित उच्च गुणवत्ता वाले वैज्ञानिक उपकरणों के जरिये संभव हो सका है। वहीं, महाराजा सयाजीराव विश्वविद्यालय के भूविज्ञान विभाग के उपकरणों का सक्रियता से भूगर्भीय और संबद्ध विज्ञानों में उन्नत अनुसंधान के लिए उपयोग किया जा रहा है। यह अध्ययन दो अलग-अलग शोध पत्रिकाओं 'इंजीनियरिंग जियोलॉजी' और 'अर्थ सरफेस प्रोसेसेज ऐंड लैंडफॉर्म्स' में प्रकाशित किया गया है। 

शोधकर्ताओं ने फॉल्ट लाइन से एकत्रित अवसादी नमूनों की सतह का उच्च आवर्धन स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप से अध्ययन किया है, जो सतह के फॉल्ट का संकेत देने वाली विशेषताओं को दिखाता है। विभिन्न फॉल्ट मापदंडों; जैसे कि सतह के टूटने की लंबाई, विस्थापन व फिसलन दर के आधार पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि कटरोल हिल फॉल्ट ने पिछले करीब 30 हजार वर्षों के दौरान अधिक तीव्रता वाली भूकंपीय घटनाओं को उत्पन्न किया है। शोधकर्ता इसे एक ठोस भूकंपीय स्रोत मान रहे हैं, जो कच्छ बेसिन में सतह के टूटने का खतरा पैदा करने में सक्षम है।

क्षेत्र-आधारित भू-आकृति विज्ञान के अध्ययनों से पता चला है कि इन घटनाओं के चलते भूदृश्य में असाधारण बदलाव हुए हैं। ये बदलाव फॉल्ट क्षेत्र में गुणावरी नदी के प्रवाह के विघटन और पुनर्गठन में स्पष्ट होते हैं। यह एक रोचक तथ्य है कि इन घटनाओं ने सतह में टूटन की क्रिया उत्पन्न की, लेकिन वर्ष 2001 के भुज भूकंप (एमडब्ल्यू 7.7) ने सतह में टूट पैदा नहीं की। 

शोधकर्ताओं का कहना है कि संभवत: पुरा-पाषाण काल के भूकंपों के चलते कटरोल हिल फॉल्ट में सतह का टूटना इसलिए हुआ, क्योंकि वे अपेक्षाकृत उथली गहराई पर उत्पन्न हुए थे। हालांकि, ये घटनाएं कच्छ बेसिन में अन्य भूकंपीय रूप से सक्रिय फॉल्टों की तुलना में हजारों वर्षों के पैमाने पर कटरोल हिल फॉल्ट के लिए एक दीर्घकालिक पुनरावृत्ति अंतराल को दिखाती हैं। 

(इंडिया साइंस वायर)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़