गाजियाबाद के भूजल में सीसा एवं कैडमियम की मात्रा हानिकारक स्तर पर
शोधकर्ताओं ने सचेत किया है कि उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद जिले के भूजल में पाए गए सीसा एवं कैडमियम की मात्रा बच्चों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है। इसके कारण सेहत पर खतरा निरंतर बढ़ रहा है।
शुभ्रता मिश्रा। वास्को-द-गामा (गोवा), (इंडिया साइंस वायर): उत्तर प्रदेश के औद्योगिक शहर गाजियाबाद के भूमिगत जल में सीसा, कैडमियम, ज़िंक, क्रोमियम, आयरन और निकल जैसी भारी धातुओं की मात्रा सामान्य से अधिक पाई गई है। इसके कारण सेहत पर खतरा निरंतर बढ़ रहा है, विशेषकर बच्चों पर। भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है।
गाजियाबाद जिले के विभिन्न औद्योगिक इलाकों में भारी धातुओं के भूमि में रिसाव के कारण वहां प्रभावित हो रही भूमिगत जल की गुणवत्ता और संभावित स्वास्थ्य संबंधी खतरों का मूल्यांकन करने के बाद असम की कॉटन कॉलेज स्टेट यूनिवर्सिटी और आईआईटी-दिल्ली के शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। इससे संबंधित शोध हाल ही में कीमोस्फियर जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है।
शोधकर्ताओं ने विविध मानक विश्लेषण विधियों के जरिये उन मूल स्त्रोतों का पता लगाया, जिनके कारण भारी धातुएं भूमिगत जल में पहुंचती हैं। इसके साथ ही भूमिगत जल में इन धातुओं के प्रदूषण स्तर का मूल्यांकन भी किया गया। भूमिगत जल में निकल को छोड़कर बाकी सभी भारी धातुएं जैसे- सीसा, कैडमियम और आयरन की मात्रा भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक पाई गई है।
शोधकर्ताओं के अनुसार प्रभावित इलाकों में भूमिगत जल में कॉपर और मैगनीज प्राकृतिक स्त्रोतों से पहुंचते हैं, जबकि क्रोमियम की मौजूदगी के लिए मानवीय गतिविधियां ही सबसे अधिक जिम्मेदार हैं। वहीं, लेड, कैडमियम, जिंक, आयरन और निकिल जैसी भारी धातुओं से भूमिगत जल के प्रदूषित होने में प्राकृतिक एवं मानवीय कारकों को समान रूप से जिम्मेदार पाया गया है। कुछ आंकड़े जो चिंता में डालने वाले हैं, वे बच्चों के स्वास्थ्य को लेकर हैं। शोधकर्ताओं ने सचेत किया है कि गाजियाबाद जिले के भूजल में पाए गए सीसा एवं कैडमियम की मात्रा बच्चों के लिए हानिकारक साबित हो सकती है।
शोधकर्ताओं के मुताबिक इस क्षेत्र में भूमिगत जल में भारी धातुओं के पहुंचने को रोकने के लिए विभिन्न तरीकों द्वारा जल के एकीकृत मूल्यांकन किए जाने की जरूरत है। इस समस्या से निपटने के लिए सुनियोजित कार्यक्रम बनाने और व्यापक प्रबंधन के लिए यह शोध बेहतरीन वैज्ञानिक आधार प्रदान कर सकता है। देश के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में भूमिगत जल का प्रदूषण की चपेट में आना गम्भीर संकट पैदा कर रहा है क्योंकि सिंचाई और पेयजल के रूप में भूमिगत जल का विशेष महत्व है। इस दूषित जल का प्रभाव पशुओं एवं फसलों पर भी पड़ता है।
वैसे तो मिट्टी की ऊपरी परत में उपस्थित बैक्टीरिया प्रदूषकों को गला देते हैं तथा कुछ प्रदूषणकारी तत्व मिट्टी के साथ प्रतिक्रिया करके स्वयं नष्ट हो जाते हैं। लेकिन, शोध में भूमिगत जल में पाई गई भारी धातुओं पर न तो बैक्टीरिया का कोई प्रभाव पड़ता है और न ही वे मिट्टी से ही कोई प्रतिक्रिया करती हैं। ये धातुएं भूमि में जल के रिसाव के साथ भूमिगत जल तक पहुंचकर उसे प्रदूषित करने लगती हैं। प्रदूषित भूमिगत जल पीने से डायरिया और पेट के कैंसर जैसे खतरनाक रोग होने का खतरा हो सकता है। एक अनुमान के अनुसार प्रदूषित भूमिगत जल से हमारे देश में प्रतिवर्ष लगभग 15 लाख बच्चे मर जाते हैं।
शोध के अनुसार भूमिगत जल के एक बार प्रदूषित हो जाने के बाद उसको वापस साफ करने में कई दशक लग सकते हैं। इसलिए सभी जगह इसके प्रदूषण स्तर का मूल्यांकन करना जरूरी हो गया है। इस तरह के मूल्यांकन के लिए मौजूदा शोध में अपनाई गई विधियां उपयोगी साबित हो सकती हैं। (इंडिया साइंस वायर)
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