भारत में वैज्ञानिक शोध को आम लोगों से जोड़ने की ज़रूरत

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विश्वविद्यालयों में शोधपरक वातावरण विकसित अभी विकसित नहीं हो पाया है। शोध कार्यों को बढ़ावा देने और समस्याओं के सस्ते और स्थानीय समाधान खोजने के लिए राज्यों के विश्वविद्यालयों और वहां स्थित संस्थानों में शोध को बढ़ावा देना होगा।

जालंधर। (इंडिया साइंस वायर): अनुसंधान और विकास में भारत की ताकत के पीछे देश की राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, आईआईटी, आईआईएससी, टीआईएफआर, आईआईएसईआर जैसे संस्थानों और केंद्रीय विश्वविद्यालयों की भूमिका अहम रही है। हालांकि, 95 प्रतिशत छात्र राज्यों के विश्वविद्यालयों में अध्ययन के लिए जाते हैं। लेकिन, इन विश्वविद्यालयों में शोधपरक वातावरण विकसित अभी विकसित नहीं हो पाया है। शोध कार्यों को बढ़ावा देने और समस्याओं के सस्ते और स्थानीय समाधान खोजने के लिए राज्यों के विश्वविद्यालयों और वहां स्थित संस्थानों में शोध को बढ़ावा देना होगा।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये बातें जालंधर में आयोजित 106वीं भारतीय विज्ञान कांग्रेस के उद्घाटन के अवसर पर कही हैं। भारतीय विज्ञान कांग्रेस का 106वां संस्करण लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में 3-7 जनवरी तक चलेगा, जिसमें नोबेल पुरस्कार विजेताओं समेत देशभर के वैज्ञानिक, शिक्षाविद, शोधार्थी और छात्र शामिल हो रहे हैं। इस कांग्रेस में प्राइड ऑफ इंडिया एक्सपो में देश में वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हो रहे विकास को भी प्रदर्शित किया गया है।

  

इस वर्ष विज्ञान कांग्रेस की थीम ‘भविष्य का भारत: विज्ञान और प्रौद्योगिकी’ का जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भारत की एक लंबी परंपरा रही है। लेकिन, सामान्य लोगों को विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार से जोड़कर ही विकास के लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।’ इस अवसर पर उन्होंने जे.सी. बोस, सी.वी. रमन, मेघनाद साहा, और एस.एन. बोस जैसे भारतीय वैज्ञानिकों को याद करते हुए कहा कि ‘इन वैज्ञानिकों ने कम संसाधनों और अधिकतम संघर्ष के जरिये लोगों की सेवा की है।’ 

प्रधानमंत्री ने कहा कि विज्ञान का अनुकरण दो उद्देश्यों की उपलब्धि के माध्यम से पूरा होता है, जिसमें ज्ञान में सतत् विकास और सामाजिक-आर्थिक भलाई के लिए उसका उपयोग शामिल है। इसके अलावा, उन्होंने शोध और वैज्ञानिक वातावरण को बढ़ावा देने के साथ नवाचार और स्टार्टअप परियोजनाओं पर भी ध्यान केंद्रित करने की बात कही। उन्होंने कहा कि नवाचार को बढ़ावा देने के लिए सरकार ने अटल इनोवेशन मिशन की शुरुआत की है और हाल के चार वर्षों में बड़ी संख्या में टेक्नोलॉजी बिजनेस इन्क्यूबेटर्स स्थापित किए गए हैं। वैज्ञानिकों को सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं, हाउसिंग, स्वच्छ पर्यावरण, पेयजल, ऊर्जा, कृषि उत्पादकता और खाद्य प्रसंस्करण से जुड़ी समस्याओं के समाधान के लिए अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

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प्रधानमंत्री ने कहा कि छोटे किसानों को केंद्र में रखकर बिग डाटा एनालिसिस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, और ब्लॉक-चेन इत्यादि का उपयोग कृषि जैसे क्षेत्रों में बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों को काम करना चाहिए। उन्होंने वैज्ञानिकों से लोगों का जीवन आसान बनाने के लिए काम करने का आग्रह किया है। इस संदर्भ में, उन्होंने कम वर्षा वाले क्षेत्रों में सूखा प्रबंधन, आपदा चेतावनी प्रणाली, कुपोषण से निपटने, बच्चों में इन्सेफेलाइटिस जैसे रोगों से निपटने, स्वच्छ ऊर्जा, पीने का साफ पानी और साइबर सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में अनुसंधान के माध्यम से समयबद्ध समाधान खोजने का आह्वान किया है।

केंद्र सरकार द्वारा 3600 करोड़ रुपये के निवेश से शुरू किए गए अंतःविषयक साइबर भौतिक प्रणालियों पर आधारित राष्ट्रीय मिशन का भी उन्होंने उल्लेख किया और कहा कि यह मिशन अनुसंधान, प्रौद्योगिकी विकास, मानव संसाधन और कौशल विकास, नवाचार, स्टार्ट-अप तंत्र और उद्योगों एवं अंतरराष्ट्रीय सहयोग को कवर करेगा। वहीं, अंतरिक्ष के क्षेत्र की उपलब्धियों की बात करते हुए प्रधानमंत्री ने कार्टोसेट समेत अन्य उपग्रह अभियानों का भी जिक्र किया और कहा कि हमारे वैज्ञानिक तीन भारतीयों को वर्ष 2022 तक गगगयान की मदद से अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी में जुटे हैं। सिकेल सेल एनीमिया के उपचार के लिए किए जा रहे शोध कार्यों पर भी उन्होंने संतुष्टि व्यक्त की है। उन्होंने बताया कि देश के विभिन्न संस्थानों के प्रतिभाशाली मस्तिष्कों को प्रधानमंत्री रिसर्च फेलो योजना के अंतर्गत आईआईटी और आईआईएससी जैसे प्रमुख संस्थानों में सीधे पीएचडी में प्रवेश मिल सकेगा। इस पहल से गुणवत्तापरक शोध और शिक्षकों की कमी को दूर करने में मदद मिल सकती है। 

(इंडिया साइंस वायर)

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