“विज्ञान संचार पाठ्यक्रम को सशक्त बनाने की जरूरत”

National Science Film Festival
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पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं इग्नू के संचार विभाग के संस्थापक अध्यक्ष और इस विज्ञान फिल्म महोत्सव के नॉमिनेशन ज्यूरी सदस्य प्रोफेसर शंभूनाथ सिंह ने कहा कि कानून और पर्यावरण अध्ययन जैसे पाठ्यक्रमों की तरह विज्ञान संचार पाठ्यक्रम के लिए क्रेडिट सिस्टम होना चाहिए।

भोपाल में चल रहे 12वें राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव (एनएसएफएफआई)-2022 में संचार विशेषज्ञों ने विज्ञान संचार पाठ्यक्रम को नये सिरे से सशक्त बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव के दूसरे दिन 'साइंस कम्युनिकेशन इन मीडिया स्टडीज ऐंड मीडिया स्टडीज दैट कैन नॉट बी इग्नोर्ड' विषय पर आयोजित पैनल चर्चा में देश के चर्चित मीडिया एजुकेटर्स, साइंटिस्ट, विज्ञान संचारकों ने एक सुर में यह बात कही है। भोपाल के रवींद्र भवन में 22 अगस्त को शुरू हुआ यह पाँच दिवसीय महोत्सव 26 अगस्त चलेगा। 

पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति एवं इग्नू के संचार विभाग के संस्थापक अध्यक्ष और इस विज्ञान फिल्म महोत्सव के नॉमिनेशन ज्यूरी सदस्य प्रोफेसर शंभूनाथ सिंह ने कहा कि कानून और पर्यावरण अध्ययन जैसे पाठ्यक्रमों की तरह विज्ञान संचार पाठ्यक्रम के लिए क्रेडिट सिस्टम होना चाहिए। छात्रों को विज्ञान संचार से जुड़ने के लिए प्रेरित करने के साथ डिजिटल साक्षरता को बढ़ाने को भी प्रोफेसर सिंह ने जरूरी बताया है।

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प्रोफेसर शूंभनाथ सिंह ने कहा कि विज्ञान संचार पर पाठ्यक्रम चलाना मुश्किल है, और इसे लगातार चलायमान रखना और भी कठिन है। विज्ञान संचार के बारे में ज्यादा से ज्यादा बातचीत और लोगों को सेंसेटाइज करने से इस मामले में बदलाव देखने को मिल सकते हैं। प्रोफेसर सिंह ने कहा कि नई शिक्षा नीति के आलोक में विज्ञान जनसंचार को सर्टिफिकेट या डिप्लोमा पाठ्यक्रम का अनिवार्य अंग बनाने के लिए 'भोपाल रेज्योलेशन या डिक्लेरेशन' तैयार करके भेजा जाना चाहिए।

जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड मास कम्युनिकेशन (जिम्सी), कानपुर के निदेशक डॉ उपेंद्र पांडेय ने कहा कि विज्ञान संबंधी समाचार मीडिया में कम होने का एक प्रमुख कारण संवाददाताओं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण की कमी है। विज्ञान को अपराध या स्वास्थ्य संबंधी समाचारों का प्राणतत्व बताते हुए उन्होंने कहा कि इतिहास और राजनीतिक खबरों में भी वैज्ञानिक एंगल हो सकता है। डॉ पांडेय ने कहा कि विज्ञान की खबरें भी रोचक अंदाज में लिखी जा सकती हैं। खबरें रोचक होंगी तो पढ़ी जाएंगी, और जब पाठक पढ़ेगा, तो मीडिया हाउस को समाचार देना ही पड़ेगा। उन्होंने कहा कि मीडिया अध्ययन संस्थानों को भी विज्ञान रिपोर्टिंग से संबंधित कोर्स शुरू करने चाहिए। जागरण इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट ऐंड मास कम्युनिकेशन और चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय, कानपुर के बीच कृषि पत्रकारिता एवं विज्ञान संचार विषयक पाठ्यक्रम के लिए हाल में ही एक करार हुआ है। 

माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के पत्रकारिता विभाग की अध्यक्ष डॉ राखी तिवारी ने कहा कि सांस्कृतिक समूहों की तर्ज पर विज्ञान से जुड़े समूह बनाए जाएं तो विज्ञान संचार से लोगों को जोड़ने में मदद मिल सकती है। उन्होंने कहा कि ‘घर-घर विज्ञान’ और ‘हर घर विज्ञान’ की चेतना का भी हमें प्रण लेना होगा।

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संचार अध्ययन और संचार माध्यमों में विज्ञान विषय पर बोलते हुए विज्ञान प्रसार के वरिष्ठ वैज्ञानिक निमिष कपूर ने कहा कि पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षण तथा प्रशिक्षण में विज्ञान का स्थान और महत्ता सुनिश्चित करना समय की मांग है। वहीं, मध्य प्रदेश विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के महानिदेशक डॉ अनिल कोठारी ने सुझाव दिया कि विज्ञान संचार विषय के मॉड्यूल के लिए विशेषज्ञों के सुझावों के आधार पर एक रूपरेखा तैयार की जानी चाहिए। 

जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय के मास कम्युनिकेशन एवं न्यू मीडिया विभाग के प्रमुख बच्चा बाबू ने कहा कि समकालीन मीडिया में विज्ञान संचार की कमी देखी जा रही है, और छात्रों में भी विज्ञान के प्रति रुचि कम ही दिखाई देती है। उनका रुझान राजनीति और अन्य विषयों की ओर ज्यादा है। विज्ञान प्रसार में कंसलटेंट डॉ बी.के. त्यागी ने कहा कि विज्ञान संचार पाठ्यक्रमों को लेकर प्रायः चर्चा होती रहती है। मीडिया कोर्स में विज्ञान संचार को सम्मिलित भी किया गया था, साथ ही विश्वविद्यालयों में यह विषय शुरू भी किया गया, लेकिन कभी छात्रों की कमी, तो कभी अध्यापकों की कमी की वजह से सफलतापूर्वक इसका संचालन नहीं हो सका। 

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इंडियन साइंस राइटर्स एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और विज्ञान संचारक तारिक बदर ने कहा कि विज्ञान संचार विषय के लिए समन्वित प्रयास करना होगा। पैनल चर्चा के दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय के रामलाल आनंद कॉलेज के साइंस कम्युनिकेशन कोर्स की सह-संयोजक श्वेता आर्य सहित अन्य विशेषज्ञों ने भी विज्ञान संचार में मीडिया-हाउसों की भूमिका पर अपने विचार रखे। 

भारत का राष्ट्रीय विज्ञान फिल्म महोत्सव देश का एकमात्र विज्ञान फिल्मोत्सव है, जिसे विज्ञान प्रसार द्वारा वर्ष 2011 से प्रतिवर्ष देश के विभिन्न भागों में आयोजित किया जा रहा है। विज्ञान संचार विशेषज्ञों की पैनल चर्चा इस आयोजन का एक अभिन्न हिस्सा है। 

(इंडिया साइंस वायर)

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