शोधकर्ताओं ने उजागर किया बैक्टीरिया की कोशिकाओं का आंतरिक रक्षात्मक तंत्र

bacterial cells

यह अध्ययन, भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग से संबद्ध नई दिल्ली स्थित स्वायत्त संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट जीनोम रिसर्च (एनआईपीजीआर) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

बर्फीले रेगिस्तान से लेकर गर्म पानी के झरनों में, जीवों के भीतर या उनके साथ रहने के लिए बैक्टीरिया स्वयं को हर पर्यावरणीय परिस्थितियों से अनुकूलित कर लेने में सक्षम होते हैं। बैक्टीरिया के पास प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों का मुकाबला करते हुए उसी के अनुरूप अपने विकास को समायोजित करने की क्षमता होती है। एक ताजा अध्ययन में भारतीय शोधकर्ताओ ने बैक्टीरिया के अंतःकोशकीय रक्षात्मक तंत्र को उजागर करते हुए इस बात की पुष्टि की है। शोधकर्ताओं का कहना है कि विभिन्न बैक्टीरिया, अपने साथ रहने वाले दूसरे बैक्टीरिया को लक्षित करने के लिए, अपने अंतःकोशकीय रक्षात्मक तंत्र को कोशिका के बाहर एक अस्त्र के रूप में उपयोग करते हैं।

इसे भी पढ़ें: विटामिन-ए का भंडार है पूर्वोत्तर का खीरा

यह अध्ययन, भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग से संबद्ध नई दिल्ली स्थित स्वायत्त संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट जीनोम रिसर्च (एनआईपीजीआर) के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है। 

एनआईपीजीआर के शोधकर्ताओं का कहना है कि बैक्टीरिया अपने विकास और पर्यावरणीय परिस्थितियों के साथ अनुकूलन स्थापित करने के लिए विभिन्न विषाक्त पदार्थों की एन्कोडिंग (कूटबद्ध) किए रहते हैं। उनका कहना है कि इनमें से कई टॉक्सिन बैक्टीरियल टॉक्सिन-एंटी-टॉक्सिन (टीए) तंत्र का हिस्सा होते हैं, जहाँ ये विशिष्ट टॉक्सिन उन बैक्टीरिया के खिलाफ ही अंतःकोशकीय एंटी-बैक्टीरियल गतिविधि करते हैं, जबकि एंटी-टॉक्सिन तत्व बैक्टीरिया को उन टॉक्सिन से बचाते हैं।

एनआईपीजीआर के वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ गोपालजी झा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि "प्राकृतिक परिस्थितियों में रहने वाले बैक्टीरिया को अपने साथ रहने वाले दूसरे बैक्टीरिया से स्थानीय तौर पर उपलब्ध संसाधन प्राप्त करने के लिए प्रतिस्पर्धा करनी पड़ती है। यह स्थिति उनके साथ रहने वाले रोगजनक बैक्टीरिया के विकास को सीमित करने और स्थान विशेष पर कब्जा जमाए रहने से जुड़ी रणनीति अपनाने के लिए विकासक्रम आधारित गंभीर दबाव डालती है।" 

इसे भी पढ़ें: कोरोना की वैक्सीन ‘जायकोव-डी’ परिक्षण के तीसरे चरण में

डॉ गोपालजी झा के नेतृत्व में शोध पत्रिका एम्बो रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक मौलिक अध्ययन में, एनआईपीजीआर के शोधकर्ताओं ने बताया कि चावल की फसल में फंगल खाने वाले बुर्कहोल्डरिया ग्लैडियोली स्ट्रेन एनजीजे नामक माइकोफैगस बैक्टीरिया ने अंतःकोशकीय विषाक्त पदार्थों (टीएसईटीबीजी के रूप में नामित) के एक परिवार को परिवर्तित कर दिया है, जिसमें कोशिका के बाहरी अस्त्र के रूप में दोहरी- न्यूक्लियस (DNase और RNase) गतिविधि होती है, और जो उन्हें साथ रहने वाले बैक्टीरिया को लक्षित करने के लिए तैनात करता है।

अंतःकोशकीय प्रोटीन TseTBg की राइबोन्यूक्लीज (RNase) गतिविधि ग्लैडियोली स्ट्रेन एनजीजे1 और शिकार बैक्टीरियल आरएनए में उभरकर आती है। वहीं, डीऑक्सीराइबोन्यूक्लीज (DNase) गतिविधि केवल शिकार होने वाले बैक्टीरिया के मामले में होती है। शोधकर्ताओं का कहना है कि संबद्ध प्रतिरक्षा (TsiTBg) प्रोटीन नॉन-कैलोनिकल हेलिक्स-टर्न-हेलिक्स लक्षणों का केंद्र होते हैं, और टाइप-II टॉक्सिन-एंटी-टॉक्सिन (टीए) तंत्र के समान ट्रांसक्रिप्शनल दमन गतिविधि के लिए जिम्मेदार होते हैं।

इसे भी पढ़ें: आंत के बैक्टीरिया का व्यवहार समझाने के लिए नया शोध

इस अध्ययन में, टी6एसएस इफेक्टर ओपेरॉन के नये ट्रांसक्रिप्शनल तंत्र को उजागर किया गया है। आनुवंशिकी में, ऑपेरॉन डीएनए की एक कार्यशील इकाई है जिसमें एकल प्रमोटर के नियंत्रण में जीनों का एक समूह होता है। जीनोम विश्लेषण से पता चलता है कि TseTBg के समरूपों को टीए या टी6SS इफेक्टर के रूप में विविध बैक्टीरिया में कूटबद्ध किया जाता है।

शोधकर्ताओं का कहना है कि टीएसईटीबीजी प्रोटीन की शक्तिशाली जीवाणुरोधी प्रकृति को देखते हुए इस अध्ययन के निष्कर्ष जैव प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप के माध्यम से पौधों में जीवाणु रोगों को नियंत्रित करने में उपयोगी हो सकते हैं। 

(इंडिया साइंस वायर)

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़