गुर्दे की पथरी के उपचार के लिए वैज्ञानिकों ने बनायी हर्बल दवा

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डॉ शरद श्रीवास्तव ने बताया एक मरीज के लिए औसतन 15 दिन के डोज की जरूरत पड़ती है। दवा की तकनीक को लेने वाले मेसर्स मार्क लेबोरेटरीज के प्रबंध निदेशक प्रेम किशोर ने कहा है कि कंपनी जल्द ही इस हर्बल दवा को बाजार में उपलब्ध कराने की कोशिश करेगी।

किडनी स्टोन या गुर्दे की पथरी, गुर्दे एवं मूत्र-नलिका से संबंधित एक ऐसी बीमारी है, जिसमें, गुर्दे के भीतर छोटे या बड़े आकार के पत्थर बनने लगते हैं। पथरी छोटी हो तो यह प्रायः मूत्रमार्ग से होकर शरीर से बाहर निकल जाती है। लेकिन, पथरी का आकार बड़ा हो तो यह मूत्रमार्ग में अवरोध पैदा करती है, जिससे कमर के आसपास के हिस्सों में असहनीय पीड़ा होती है। 

लखनऊ स्थित राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के शोधकर्ताओं ने पथरी के उपचार के लिए एनबीआरआई-यूआरओ-05 नामक एक हर्बल दवा विकसित की है। एनबीआरआई के 67वें स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान व्यावसायिक उत्पादन के लिए इस दवा की तकनीक लखनऊ की कंपनी मेसर्स मार्क लेबोरेटरीज को सौंपी गई है। कंपनी जल्दी ही इसका उत्पादन शुरू करेगी, ताकि दवा को आम लोगों के उपयोग के लिए शीघ्रता से बाजार में उतारा जा सके।

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शोधकर्ताओं का कहना है कि एनबीआरआई-यूआरओ-05 दवा में पाँच जड़ी-बूटियों का उपयोग किया गया है, जो देश के विभिन्न हिस्सों में आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। यह दवा यूरोलिथियासिस, नेफ्रोलिथियासिस और पोस्ट लिथोट्रिप्सी स्थितियों यानी एक्स्ट्रा कॉर्पोरल शॉक वेव लिथोट्रिप्सी यानी ईएसडब्ल्यूएल की स्थितियों में सुधार हेतु एक सह-क्रियात्मक हर्बल संयोजन है। इसके प्रयोग से चूहों में रीनल कॉर्टेक्स अर्थात गुर्दे की पथरियों के स्तर में 70% कमी के साथ पथरियों की संख्या में 80% की कमी देखी गई है। 

इस दवा का चिकित्सीय परीक्षण लखनऊ की किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) के 90 मरीजों पर किया गया है। परीक्षण में 18 वर्ष से 60 वर्ष तक की उम्र के 59 पुरुष और 31 महिला मरीज शामिल थे। तीन माह तक इस दवा की डोज देने के बाद पाया गया कि परीक्षण में शामिल मरीजों की 75 फीसदी पथरी खत्म हो चुकी थी। वहीं, 75 फीसदी मरीज ऐसे थे, जिनकी दोनों किडनी में पथरी की समस्या थी। 65 फीसदी मरीजों ने लक्षणों में भी आराम होने की बात कही है। 

एनबीआरआई के वैज्ञानिक डॉ. शरद श्रीवास्तव ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “अन्य दवाओं की तुलना में इस दवा की कम खुराक भी असरदार होगी। उन्होंने बताया कि यह दवा एक सेंटीमीटर तक की पथरी को खत्म करने में प्रभावी ढंग से कार्य करती है। इसका चिकित्सीय परीक्षण किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के यूरोलॉजी विभाग में आने वाले कुछ मरीजों पर किया गया है। मरीजों के अनुभव के आधार पर हम कह सकते हैं कि परीक्षण सफल रहा है। यह दवा प्रोफिलैक्सिस और रोग पुनरावृत्ति की रोकथाम में भी प्रभावी है।” 

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डॉ शरद श्रीवास्तव ने बताया एक मरीज के लिए औसतन 15 दिन के डोज की जरूरत पड़ती है। दवा की तकनीक को लेने वाले मेसर्स मार्क लेबोरेटरीज के प्रबंध निदेशक प्रेम किशोर ने कहा है कि कंपनी जल्द ही इस हर्बल दवा को बाजार में उपलब्ध कराने की कोशिश करेगी।

इस हर्बल उत्पाद को विकसित करने वाली शोधकर्ताओं की टीम में एनबीआरआई के वैज्ञानिक डॉ शरद श्रीवास्तव के अलावा, संस्थान के निदेशक प्रोफेसर एस.के. बारिक एवं डॉ. अंकिता मिश्रा, सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. विकास श्रीवास्तव, डॉ. धीरेंद्र सिंह एवं डॉ. हफीजुर्रहमान खान और किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता डॉ. एस.एन. संखवार एवं डॉ. सलिल टंडन शामिल हैं। 

इस अवसर पर एनबीआरआई के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित गुलदाउदी की दो नई किस्में ‘एनबीआरआई-पुखराज’ एवं ‘एनबीआरआई-शेखर’ भी जारी की गई हैं। इसके अलावा, तेजी से घाव भरने और घाव में संक्रमण को कम करने के लिए बायोजेनिक सिल्वर नैनो-पार्टिकल्स को भी पेश किया गया है। 

(इंडिया साइंस वायर)

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