कमरे के तापमान पर क्वांटम सूचना प्रसंस्करण की कोशिश में जुटे वैज्ञानिक

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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी बॉम्बे (आईआईटी-बॉम्बे) के वैज्ञानिकों ने विशेष रूप से डिजाइन किए गए परतदार मैटेरियल का उपयोग करते हुए, कमरे के तापमान पर क्वांटम सूचना प्रसंस्करण के लिए एक नया तंत्र पेश किया है।

पिछले साल अक्तूबर में गूगल ने यह घोषणा कर सबको चौंका दिया कि उनका क्वांटम प्रोसेसर ऐसी गणनाएं महज 200 सेकेंड में कर सकता है, जिसे करने में आज के तीव्रतम सुपरकम्प्यूटरों को भी 10 हजार साल लग सकते हैं। आईबीएम ने इस दावे को चुनौती जरूर दी है, पर क्वांटम कम्प्यूटिंग तकनीक के लिए यह कोई असंभव कार्य नहीं है।

क्वांटम तकनीक, कम्प्यूटिंग की दुनिया में क्रांति ला सकती है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह तेजी से गणना करने की इसकी क्षमता को माना जाता है। विशेषज्ञ मानते हैं कि यह तकनीक ऐसे समाधान प्रस्तुत कर सकती है, जिसमें आधुनिक कम्प्यूटर सक्षम नहीं हैं। सुरक्षित एन्क्रिप्शन और सूचनाओं का डिक्रिप्शन इसका एक उदाहरण है। हालांकि, क्वांटम सूचना प्रसंस्करण के लिए 'परम शून्य' (ऐब्सोल्यूट जीरो) यानी न्यूनतम सम्भव ताप की आवश्यकता एक चुनौती है। इस ताप पर पदार्थ के अणुओं की गति शून्य हो जाती है। इसका मान -273 डिग्री सेन्टीग्रेड होता है। स्मरण रहे कि पृथ्वी पर अब तक का सबसे ठंडा तापमान -93.2 सेल्सियस दर्ज किया गया है।

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इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी बॉम्बे (आईआईटी-बॉम्बे) के वैज्ञानिकों ने विशेष रूप से डिजाइन किए गए परतदार मैटेरियल का उपयोग करते हुए, कमरे के तापमान पर क्वांटम सूचना प्रसंस्करण के लिए एक नया तंत्र पेश किया है। वास्तव में, इस अध्ययन के जरिये शोधकर्ताओं ने क्वांटम कम्प्यूटिंग को संभव बनाने के लिए आणविक स्तर पर पतली सामग्री से नई नैनोचिप बनाने का प्रस्ताव पेश किया है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के अनुदान पर आधारित यह अध्ययन शोध पत्रिका फिजिकल रिव्यू-बी में प्रकाशित किया गया है।

मौजूदा कम्प्यूटरों में कम्प्यूटिंग ब्लॉक का निर्माण करने वाली कम्प्यूटर की सबसे छोटी इकाई बिट्स (बाइनरी अंक 0-1 को संयुक्त रूप से बिट कहते हैं) के स्थान पर क्वांटम कम्प्यूटरों में उनका क्वांटम वर्ज़न उपयोग होता है, जिसे क्वांटम बिट्स (क्यूबिट्स) कहते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि क्यूबिट्स को प्राप्त करने का एक संभावित जरिया वैली मैटेरियल्स हो सकते हैं। ये ऐसे मैटेरियल हैं, जिनके ‘एनर्जी बैंड्स’ या ऊर्जा समूह, जो मैटेरियल में इलेक्ट्रॉनों पर कब्जा कर सकते हैं, वैली (घाटी) के आकार में होते हैं। चूँकि ये वैली संरचनाएं दो विपरीत किस्मों में दिखाई देती हैं, इसलिए ये दो अवस्थाओं का निर्माण एक साथ कर सकती हैं।

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इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने सैद्धांतिक रूप से दो सेटअप बनाए हैं, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि ये कमरे के तापमान पर भी क्वांटम अनुकूलन बनाए रख सकते हैं। शोधकर्ताओं ने अलग-अलग सेटअप में वैली मैटेरियल के रूप में दो ग्राफीन किस्मों को चुना है। वैली मैटेरियल को दूसरे मैटेरियल्स के शीर्ष पर खड़ा किया गया है, जो वैली अवस्था में पार्टिकल्स के अनुकूल सुपरपोजिशन, जिसे ‘एक्सिटोन्स’ कहते हैं, के लिए जिम्मेदार होते हैं।

आईआईटी बॉम्बे की लैबोरेटरी ऑफ ऑप्टिक्स ऑफ क्वांटम मैटेरियल्स के प्रमुख, प्रोफेसर अंशुमन कुमार ने बताया कि "इस अध्ययन में एक दूसरे के शीर्ष पर खड़ी परमाणु सामग्री से बने संपूर्ण उपकरण की मोटाई सौ नैनोमीटर से भी कम है।" यह मनुष्य के बाल से हजार गुना पतला है।

इसके बाद, टीम ने सैद्धांतिक सेटअप में इलेक्ट्रोस्टैटिक वोल्टेज को जोड़ा है, और संख्यात्मक गणनाओं के माध्यम से वैली अवस्थाओं की अनुकूलता को निर्धारित किया है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि दोनों सेटअप कमरे के तापमान पर भी अनुकूल वैली अवस्था का समर्थन कर सकते हैं। इस प्रकार, शोधकर्ताओं का मानना है कि ये अवस्थाएं क्वांटम सूचना या क्यूबिट्स की मूलभूत इकाई हो सकती हैं।

शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि मैटेरियल की मोटाई और इलेक्ट्रोस्टैटिक वोल्टेज का उपयोग विभिन्न तापमानों पर अनुकूलता के स्तर में परिवर्तन के लिए किया जा सकता है। इस सिद्धांत के व्यावहारिक पक्ष को रेखांकित करते हुए प्रोफेसर कुमार कहते हैं, "इलेक्ट्रोस्टैटिक वोल्टेज के माध्यम से क्वांटम अवस्था को सुसंगत बनाया जा सकता है, और उसे तकनीकी वास्तविकता में बदला जा सकता है।"

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इस दिशा में आगे खड़ी चुनौतियों को स्वीकार करते हुए प्रोफेसर कुमार बताते हैं कि "सेटअप के लिए सामग्री अत्यधिक शुद्ध होनी चाहिए, और नैनोमीटर पैमाने पर इस परिशुद्धता को प्राप्त करना काफी चुनौतीपूर्ण है।" हालांकि, अगले कुछ वर्षों में वैली मैटेरियल्स का बड़े पैमाने पर निर्माण संभव हो सकता है, लेकिन इतनी पतली सामग्री की एकरूपता प्राप्त करने में कुछ और समय लग सकता है।

इंडिया साइंस वायर

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