मिट्टी के अनुकूल उर्वरक का चयन अब तकनीक की मदद से

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प्रत्येक प्रकार की मृदा की प्रकृति अलग होती है। ऐसे में उसके लिए उचित उर्वरक, कीटनाशक, पोषक तत्वों और यहां तक की जल की आवश्यकता का पैमाना भी अलग होता है। किसान स्थानीय संस्थाओं द्वारा मृदा परीक्षण या तात्कालिक तौर पर आंकड़े एकत्र करने के लिए सेंसर लगाते हैं, जिनके आधार पर किसान सूचनाएं जुटा रहे हैं।

भारत सरकार द्वारा हाल ही में मानचित्रण के क्षेत्र में खुलेपन की घोषणा के साथ देश में भू-स्थानिक मानचित्रण को लेकर गतिविधियां तेज हो गई हैं। कृषि क्षेत्र में भी मानचित्रण के विशेष उपयोग से देश के खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम का क्रांतिकारी कायाकल्प हो सकता है। इसके लिए मृदा मानचित्र (सॉइल मैप) बनाने की तैयारी हो रही है। ‘डिफ्रेंशियल जीपीएस’ (डीजीपीएस) के माध्यम से तैयार किए जाने वाले मृदा मानचित्र की मदद से किसी भी कृषि भूमि के लिए उपयुक्त उर्वरक के उपयोग का खाका तैयार किया जा सकेगा। इस तकनीक को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर ने विकसित किया है।

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प्रत्येक प्रकार की मृदा की प्रकृति अलग होती है। ऐसे में उसके लिए उचित उर्वरक, कीटनाशक, पोषक तत्वों और यहां तक की जल की आवश्यकता का पैमाना भी अलग होता है। किसान स्थानीय संस्थाओं द्वारा मृदा परीक्षण या तात्कालिक तौर पर आंकड़े एकत्र करने के लिए सेंसर लगाते हैं, जिनके आधार पर किसान सूचनाएं जुटा रहे हैं। इस तकनीक का उद्देश्य नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश (एनपीके) का सही संतुलन बैठाना है ताकि पारंपरिक तकनीकों और तौर-तरीकों के बजाय मृदा की आवश्यकताओं के अनुरूप उनका सही मिश्रण तैयार किया जा सके। इससे जुड़ी सेंसर आधारित तकनीकें अभी भी विकसित होने की प्रक्रिया में हैं।

आईआईटी खड़गपुर के निदेशक प्रो वीके तिवारी कृषि एवं खाद्य आभियांत्रिकी विभाग में अपनी पूर्व सहयोगी डॉ स्नेहा झा के साथ मिलकर इसे कुछ इस प्रकार समझाते हैं कि यह एक वैकल्पिक तरीका है जो एनपीके के विभिन्न अनुप्रयोगों को लेकर विविध जीपीएस के माध्यम से रीयल टाइम डेटा के आधार पर संचालित होता है। इस सॉइल मैप को उस कृषि भूमि पर उपयोग किया जा सकता है, जिसका परीक्षण जिला प्रशासन अथवा किसी निजी प्रयोगशाला द्वारा किया जा सकता है। इस डाटा को डीजीपीएस मॉड्यूल के माध्यम से जीयूआई इंस्टॉल्‍ड एप्लीकेटर से उपयोग किया जाएगा।

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इसकी प्रविधि को समझाते हुए प्रो तिवारी ने कहा, 'हमने एक हेक्टेयर भूमि को 36 ग्रिड में विभाजित किया और प्रत्येक ग्रिड की पोषण आवश्यकता सॉइल मैप में दर्ज थी। जिस वाहन के माध्यम से उर्वरकों का उपयोग होना था, उसे डीजीपीएस मॉ़ड्यूल और जीयूआई संचालित माइक्रोप्रोसेसर कम माइक्रोकंट्रोलर से जोड़ा गया ताकि वह मैप के माध्य से रियल टाइम आधार पर अपना काम कर सके।' उन्होंने कहा कि यह तकनीक न केवल और प्रभावी ढंग से अपना काम करने में सक्षम है, बल्कि इससे मानवीय श्रम पर निर्भरता भी कम होगी। 

(इंडिया साइंस वायर)

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