जूते-चप्पल में चिपकी धूल को सोख लेने वाला चिपचिपा मैट

Sticky mats

प्रोफेसर घटक बताते हैं कि इस मैट का उपयोग और पुनरुपयोग आसानी से किया जा सकता है। मैट में इकठ्ठा हुई धूल को उसी तरह से साफ कर लिया जाता है जैसे हम अपने कपड़े धोते हैं। इस प्रकार मैट की सतह दोबारा उपयोग के लिए फिर से तैयार हो जाती है।

लगातार बढ़ते प्रदूषण और निर्माण गतिविधियों से हवा में धूल-कणों की समस्या बहुत आम हो गई है। ये धूल -कण हवा के साथ  घर से लेकर दफ्तर तक, हर कहीं पहुँच जाते हैं। यह न केवल सेहत के लिए, बल्कि तमाम संवेदनशील उपकरणों के लिए भी हानिकारक हैं। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), कानपुर के एक प्रोफेसर ने इस समस्या के समाधान हेतु एक विकल्प उपलब्ध कराया है। उन्होंने एक ऐसा ‘स्टिकी मैट’ विकसित किया है जो संपर्क में आने वाली सतह के धूल कणों को समेट कर सतह को साफ सुथरा रख सकता है। इससे घर के अंदर आने वाले प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है। खास बात यह है कि यह मैट न केवल किफायती है, बल्कि उसका उपयोग करना भी बहुत आसान है। उसे सामान्य तरीके से धोकर कई बार उपयोग में लाया जा सकता है।

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आईआईटी कानपुर में रसायन इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर अनिमांगशु घटक ने भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की सहायता से मेक इन इंडिया कार्यक्रम के अंतर्गत यह मैट विकसित किया है। इस बारे में उन्होंने बताया कि मैट में मौजूद एड्हेसिव अपनी सतह पर मौजूद अति सूक्ष्म पिरामिड आकार के बंप की मदद से धूल कणों को अपनी ओर खींच लेता है। जब हम उस पर कदम रखते हैं तो हमारे जूतों के सोल साफ हो जाते हैं। प्रोफेसर घटक कई वर्षों से एडहेसिव पर शोध कार्य में जुटे हैं। अपनी नई खोज के लिए भी उन्होंने दो-तीन वर्षों तक गहन शोध किया है। उन्होंने दीवार पर चढ़ने वाले जीव-जंतुओं जैसे कि घरों में मिलने वाली छिपकली के पंजों में चिपकने वाले पैड को देख कर और उससे प्रेरित होकर इस मैट को विकसित किया है।

प्रोफेसर घटक बताते हैं कि इस मैट का उपयोग और पुनरुपयोग आसानी से किया जा सकता है। मैट में इकठ्ठा हुई धूल को उसी तरह से साफ कर लिया जाता है जैसे हम अपने कपड़े धोते हैं। इस प्रकार मैट की सतह दोबारा उपयोग के लिए फिर से तैयार हो जाती है। इस प्रकार इसे कई बार इस्तेमाल किया जा सकता है। प्रो घटक ने मैट के विकास के लिए बड़े क्षेत्र, सरल पद्धति द्वारा सतह के आकार के नियंत्रण, धोने की संभावना और पुनः उपयोग जैसी बातों का ध्यान रखते हुए इसे विभिन्न आकारों में तैयार करने की सोच पर काम किया है। इस मैट को प्रमाणन मिल चुका है और अब उसके पेटेंट के लिए आवेदन भी कर दिया गया है।

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प्रोफेसर घटक ने बताया कि यह नया मैट अस्पतालों के सघन चिकित्सा कक्षों (आईसीयू) में भी उपयोग किया जा सकता है। संवेदनशील उपकरणों को रखने वाले कक्ष और सुविधाओं में एयर फिल्टर के एक घटक के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह प्रौद्योगिकी ऐसी हर जगह के लिए महत्वपूर्ण है जहां साफ सफाई और स्वच्छता की आवश्यकता है। टेक्नोलॉजी रेडीनेस लेवल के स्तर पर यह उत्पाद 7-8 के स्तर पर है और इसका अभी व्यवसायीकरण किया जाना है। प्रो घटक का कहना है कि इस प्रौद्योगिकी को उत्पाद के रूप में बाजार में उतारने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है। इसके लिए इस तकनीक को किसी कंपनी को हस्तांतरित करने के बजाय बड़े स्तर पर स्वयं इसका उत्पादन करने के लिए प्रायोगिक संयंत्र का निर्माण प्रगति पर है।

इंडिया साइंस वायर

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