कम उम्र में बढ़ रहा है उच्च रक्तचाप का खतरा

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नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), केरल के त्रिस्सूर स्थित मदर हॉस्पिटल के गीवर जैकेरिया और नई दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हेल्थ इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका इंडियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

नई दिल्ली। (इंडिया साइंस वायर): हृदयाघात, हार्ट फेल, स्ट्रोक और कई अन्य जानलेवा बीमारियों के लिए जिम्मेदार उच्च रक्तचाप भारत में तेजी से पैर पसार रहा है। भारतीय शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन में यह खुलासा हुआ है। पूरे देश के 18 वर्ष से अधिक उम्र के 1.80 लाख से अधिक मरीजों के रक्तचाप आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे हैं। 

विभिन्न आयु वर्ग के लोग उच्च रक्तचाप का शिकार हो रहे हैं, लेकिन कम उम्र के युवा भी बढ़ते रक्तचाप से अछूते नहीं हैं। अध्ययन में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के 30 प्रतिशत से ज्यादा लोग उच्च रक्तचाप से ग्रस्त पाए गए हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि 18 से 19 वर्ष के युवाओं में से सिर्फ 45 प्रतिशत युवाओं का रक्तचाप सामान्य पाया गया है। 20 से 44 वर्ष के लोगों में उच्च रक्तचाप के मामले सबसे अधिक दर्ज किए गए  हैं। महिलाओं और पुरुषों दोनों में रक्तचाप के मामले बढ़ती उम्र के साथ बढ़ रहे हैं।

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मरीजों के रक्तचाप संबंधी आंकड़े कार्डियोलॉजिकल सोसायटी ऑफ इंडिया द्वारा वर्ष 2015 में देश के 24 राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों में एक साथ लगाए गए रक्तचाप शिविरों से प्राप्त किए गए हैं। इन शिविरों में 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोगों के रक्तचाप नमूने प्राप्त किए गए हैं, जहां स्वचालित ऑसिलोमेट्रिक मशीनों का उपयोग करके रक्तचाप मापा गया था। 

नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), केरल के त्रिस्सूर स्थित मदर हॉस्पिटल के गीवर जैकेरिया और नई दिल्ली के फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हेल्थ इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया यह अध्ययन शोध पत्रिका इंडियन हार्ट जर्नल में प्रकाशित किया गया है।

एम्स, नई दिल्ली के शोधकर्ता डॉ एस. रामाकृष्णा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि “भारत में उच्च रक्तचाप की व्यापकता के बारे में अभी समझ सीमित है। उच्च रक्तचाप हृदय रोगों के अलावा कई अन्य बीमारियों से जुड़ा प्रमुख जोखिम माना जाता है। इन बीमारियों से लड़ने के लिए बजट का बड़ा हिस्सा खर्च करना पड़ता है। रक्तचाप जैसे बीमारी पैदा करने वाले कारकों का प्रबंधन समय रहते हो जाए तो स्वास्थ्य खतरों को कम करने के साथ-साथ इसके आर्थिक एवं सामाजिक दुष्परिणामों से भी बचा जा सकता है।”

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अनुमान है कि उच्च रक्तचाप से ग्रस्त विश्व के लगभग 17.6 प्रतिशत मरीज भारत में रहते हैं, जिससे यहां निकट भविष्य में हृदय रोगों के बोझ में वृद्धि की आशंका बढ़ सकती है। पूर्व अध्ययनों में विकसित देशों में 70 वर्ष से कम उम्र के लोगों की कुल मौतों में 23 प्रतिशत मौतों के लिए हृदय रोगों को जिम्मेदार पाया गया है। भारत में यह आंकड़ा 52 प्रतिशत है, जो विकसित देशों की तुलना में दोगुने से अधिक है। 

स्वास्थ्य से जुड़ी इस उभरती चुनौती को देखते हुए शोधकर्ताओं का कहना है कि रक्तचाप की जांच नियमित नैदानिक देखभाल में शामिल होनी चाहिए। युवाओं को जागरूक करने की जरूरत है कि कम उम्र में भी वे उच्च रक्तचाप का शिकार हो सकते हैं। इससे बचाव के लिए नियमित व्यायाम और संतुलित वजन के साथ-साथ नमक का कम से कम उपयोग किया जाना जरूरी है। 

शोधकर्ताओं में एस. रामाकृष्णन के अलावा एम्स, नई दिल्ली के शोधकर्ता कार्तिक गुप्ता, मदर हॉस्पिटल, केरल के गीवर जैकेरिया और फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हेल्थ इंस्टीट्यूट, नई दिल्ली के अशोक सेठ शामिल थे।

(इंडिया साइंस वायर)

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