बाल ठाकरे किसी का घर तोड़ने में नहीं, टूटने से बचाने में यकीन रखते थे

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महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार आजकल विपक्ष के निशाने पर आ गयी है। दरअसल फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत के घर बीएमसी ने जिस तरह तोड़फोड़ की कार्रवाई की उसे बदले की कार्रवाई के तौर पर देखा गया। कंगना ने उद्धव ठाकरे को जवाब दिया तो अभिनेत्री पर एफआईआर दर्ज करा दी गयी।

सरकार से सवाल पूछना अपराध कैसे हो सकता है? सरकार को उसके वादे की याद दिलाना अपराध कैसे हो सकता है? सरकार की आलोचना करना अपराध कैसे हो सकता है? अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन जिस तरह महाराष्ट्र में हो रहा है वह ठीक नहीं है। लगता है सरकार भूल गयी है कि देश से आपातकाल भी हटाया जा चुका है और लॉकडाउन भी। फिल्म अभिनेत्री कंगना रनौत पर कार्रवाई करके महाराष्ट्र सरकार ने सेल्फ गोल कर लिया है क्योंकि कंगना को जिस तरह से सामाजिक और राजनीतिक समर्थन बढ़ता जा रहा है वह आखिरकार शिवसेना के लिए ही नुकसानदेह होगा। एक समय था जब बाल ठाकरे की पूरे महाराष्ट्र खासकर मुंबई में धमक हुआ करती थी लेकिन अब वह सारी धमक इस गठबंधन सरकार के दौरान खत्म होती दिख रही है। कह सकते हैं कि घर भले कंगना का ढहा हो लेकिन धाक ठाकरे परिवार की ढह गयी है। बाला साहेब ठाकरे के शिवसेना प्रमुख के तौर पर कार्यकाल को याद करें तो वह किसी का घर ढहाने में नहीं उसको टूटने से बचाने में मदद करते थे, वह किसी को फँसाने में नहीं उसको मुश्किल से बाहर निकालने में मदद करते थे।

कहा जा रहा है कि शिवसेना अब बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना नहीं सोनिया सेना बन गयी है। इसके पीछे का मंतव्य देखें तो वह यह है कि जैसे कांग्रेस चयनित मुद्दों पर बोलती है और चयनित मुद्दों पर चुप रहती है, उसी राह पर शिवसेना भी चल पड़ी है। कांग्रेस चीन के मुद्दे पर, अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर, रोजगार के मुद्दे पर, कोरोना के मुद्दे पर तो सरकार से सवाल उठाती है लेकिन जैसे ही उसे लगता है कि कोई मुद्दा उसके वोट बैंक को नुकसान पहुँचा सकता है, जैसे ही उसे लगता है कि कोई मुद्दा कांग्रेस में भगदड़ पैदा कर सकता है, पार्टी के शीर्ष से लेकर नीचे तक के नेता चुप हो जाते हैं और खामोशी का आवरण ओढ़ लेते हैं।

बाटला हाउस एनकाउंटर में आतंकवादियों के मारे जाने पर इन्हें रोना आ जाता है लेकिन पालघर में पुलिस के सामने संतों की निर्ममता के साथ हत्या किये जाने पर किसी को रोना नहीं आता, किसी के मुँह से निंदा लायक शब्द नहीं निकलते। सुशांत सिंह राजपूत की मौत के महीनों बाद भी एफआईआर दर्ज नहीं की गयी, लेकिन उसकी गर्लफ्रैंड ने जब सुशांत की बहन के खिलाफ एफआईआर लिखवानी चाही तो वह तुरंत लिख ली गयी। यह सारे मुद्दे एक के बाद एक जिस तरह सामने आ रहे हैं उससे महाराष्ट्र सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं, मुंबई पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल उठ रहे हैं और महाराष्ट्र में सत्ताधारी गठबंधन का नेतृत्व कर रही शिवसेना की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। इतने सारे सवालों के बीच दिक्कत है कि सवाल पूछ लो तो एफआईआर दर्ज करवा दी जा रही है। जेएनयू में टुकड़े-टुकड़े गैंग को चुप कराया जाये तो अभिव्यक्ति की आजादी के समर्थक मोमबत्तियाँ लेकर सड़कों पर आ जाते हैं, हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक याचिकाओं की बाढ़ ला देते हैं लेकिन महाराष्ट्र की घटनाओं पर यह चुप रहेंगे क्योंकि कब लोकतंत्र की दुहाई देनी है, यह सब यह लोग काफी सोच समझकर और योजना बनाकर तय करते हैं।

डिस्क्लेमर: प्रभासाक्षी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।


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