हनुमानजी को नागलोक भेजकर भगवान श्रीराम ने त्यागी थी अपनी देह

Lord Shriram sent Hanumanji to naaglok and sacrificed his body
शुभा दुबे । Mar 24 2018 11:28AM

भगवान श्रीराम जी ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बताया पर उससे उनका आशय यह था कि आम इंसान शांति के साथ जीवन व्यतीत कर सके और भगवान की भक्ति कर सके।

हिन्दुओं के आराध्य देव श्रीराम भगवान विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में विख्यात श्रीराम का नाम हिन्दुओं के जन्म से लेकर मरण तक उनके साथ रहता है। अयोध्या के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र श्रीराम ने असुर राज रावण और अन्य आसुरी शक्तियों के प्रकोप से धरती को मुक्त कराने के लिए ही इस धरा पर जन्म लिया था। उन्होंने अपने जीवन के माध्यम से नैतिकता, वीरता, कर्तव्यपरायणता के जो उदाहरण प्रस्तुत किये वह बाद में मानव जीवन के लिए मार्गदर्शक का काम करने लगे।

भगवान के जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य

भगवान श्रीराम जी ने अपने जीवन का उद्देश्य अधर्म का नाश कर धर्म की स्थापना करना बताया पर उससे उनका आशय यह था कि आम इंसान शांति के साथ जीवन व्यतीत कर सके और भगवान की भक्ति कर सके। उन्होंने न तो किसी प्रकार के धर्म का नामकरण किया और न ही किसी विशेष प्रकार की भक्ति का प्रचार किया।

जीवनकाल का सबसे बड़ा परिवर्तन

युवा श्रीराम के जीवनकाल में तब बड़ा परिवर्तन आया जब वह अपने छोटे भाई लक्ष्मण तथा मुनि विश्वामित्र के साथ जनकपुर पहुंचे और वहां श्रीराम ने जनकजी द्वारा प्रतिज्ञा के रूप में रखे शिव−धनुष को तोड़ दिया। जिसके बाद राजा ने साक्षात् लक्ष्मी के अंश से उत्पन्न सीता का विवाह राम के साथ कर दिया तथा दूसरी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण के साथ कर दिया। इसके बाद महाराज दशरथ ने अपने बड़े पुत्र राम को राज्य करने योग्य देखकर उन्हें राज्य भार सौंपने का मन में निश्चय किया।

श्रीराम को जब मिला वनवास

राजतिलक संबंधी सामग्रियों का प्रबंध हुआ देखकर महाराज दशरथ की तीसरी पत्नी रानी कैकेयी ने अपनी वशीभूत महाराज दशरथ से पूर्व कल्पित दो वरदान मांगे। उन्होंने पहले वरदान के रूप में अपने पुत्र भरत के लिये राज्य तथा दूसरे वरदान के रूप में श्रीराम को चौदह वर्षों का वनवास मांगा। कैकेयी का वचन मानकर श्रीरामचन्द्र जी सीता तथा लक्ष्मण के साथ दण्डक वन चले गये, जहां राक्षस रहते थे। इसके बाद पुत्र के वियोग जनित शोक से संतप्त पुण्यात्मा दशरथ ने पूर्व काल में एक व्यक्ति द्वारा प्रदत्त शाप का स्मरण करते हुए अपने प्राण त्याग दिये।

सीता माता का हो गया हरण

वनवास के समय, रावण ने सीता का हरण किया था। रावण राक्षस तथा लंका का राजा था। सौ योजन का समुद्र लांघकर हनुमान जी ने सीता का पता लगाया। समुद्र पर सेतु बना। रणभूमि के महायज्ञ में श्रीराम के बाणों ने राक्षसों के साथ कुम्भकर्ण और रावण के प्राणों की आहुति ले ली।

रावण को कर दिया परास्त

भगवान श्रीराम ने रावण को युद्ध में परास्त किया और उसके छोटे भाई विभीषण को लंका का राजा बना दिया। श्रीराम, सीता, लक्ष्मण और हनुमान पुष्पक विमान से अयोध्या लौटे और वहां सबसे मिलने के बाद श्रीराम और सीता का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ।

दैहिक त्याग

सीता जी जब अपने दोनों पुत्रों लव और कुश को श्रीराम को सौंप कर धरती माता के साथ भूगर्भ में चली गईं तो श्रीराम का जीवन भी एक तरह से पूर्ण हो गया। जब श्रीराम ने देह त्यागना चाहा तो यमराज का आह्वान किया लेकिन जहां हनुमानजी होते हैं वहां यमराज नहीं आते। यमराज ने जब अपनी यह दुविधा भगवान को बताई तो श्रीराम ने अपनी अंगूठी महल में गिरा दी जो एक छोटे से छिद्र में चली गयी। हनुमानजी उस अंगूठी को ढूंढने लगे और ढूंढते ढूंढते पाताल लोक पहुंच गये। वहां नागलोक में जब नागों के राजा वासुकी को उन्होंने सारी बात बताई तो उन्होंने अंगूठियों के ढेर की ओर इशारा करते हुए कहा कि आप इसमें से अंगूठी ढूंढ लीजिये। लेकिन अंगूठी ढूंढते ढूंढते हनुमानजी को भगवान श्रीराम के देह त्यागने का आभास हो गया क्योंकि हनुमानजी के जाने के बाद श्रीराम ने यमुना नदी में दैहिक त्याग किया और उनकी अमर आत्मा पुनः बैकुंठ धाम में विष्णु रूप में विराजमान हो गयी।

-शुभा दुबे

We're now on WhatsApp. Click to join.
All the updates here:

अन्य न्यूज़