नई ऊर्जा के साथ नववर्ष का स्वागत करें, माँ प्रसन्न होंगी

Welcome new year with new energy

इस नववर्ष का स्वागत केवल मानव ही नहीं पूरी प्रकृति कर रही होती है। ॠतुराज वसन्त प्रकृति को अपनी आगोश में ले चुके होते हैं, पेड़ों की टहनियाँ नई पत्तियों के साथ इठला रही होती हैं, पौधे फूलों से लदे इतरा रहे होते हैं।

कर्नाटक में युगादि, तेलुगु क्षेत्रों में उगादि, महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा, सिंधी समाज में चैती चांद, मणिपुर में सजिबु नोंगमा नाम कोई भी हो तिथि एक ही है चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा, हिन्दू पंचांग के अनुसार सृष्टि की उत्पत्ति का दिन, नव वर्ष का पहला दिन, नवरात्रि का पहला दिन। इस नववर्ष का स्वागत केवल मानव ही नहीं पूरी प्रकृति कर रही होती है। ॠतुराज वसन्त प्रकृति को अपनी आगोश में ले चुके होते हैं, पेड़ों की टहनियाँ नई पत्तियों के साथ इठला रही होती हैं, पौधे फूलों से लदे इतरा रहे होते हैं, खेत सरसों के पीले फूलों की चादर से ढके होते हैं, कोयल की कूक वातावरण में अमृत घोल रही होती है, मानो दुल्हन सी सजी धरती पर कोयल की मधुर वाणी शहनाई सा रस घोल कर नवरात्रि में माँ के धरती पर आगमन की प्रतीक्षा कर रही हो।

इस प्रकार नववर्ष का आरंभ माँ के आशीर्वाद के साथ होता है। पृथ्वी के नए सफर की शुरूआत के इस पर्व को मनाने और आशीर्वाद देने स्वयं माँ पूरे नौ रातों और दस दिनों के लिए पृथ्वी पर आती हैं। "माँ" यानी शक्ति स्वरूपा, उनकी उपासना अर्थात् शक्ति की उपासना और नौ दिनों की उपासना का यह पर्व हममें वर्ष भर के लिए एक नई ऊर्जा का संचार करता है। सबसे विशेष बात यह है कि इस सृष्टि में केवल मानव ही नहीं अपितु देवता, गन्धर्व, दानव सभी शक्तियों के लिए माँ पर ही निर्भर हैं। दरअसल "दुर्गा" का अर्थ है "दुर्ग" अर्थात "किला"। जिस प्रकार एक किला अपने भीतर रहने वाले को शत्रुओं से सुरक्षा प्रदान करता है, उसी प्रकार दुर्गा के रूप में माँ की उपासना हमें अपने शत्रुओं से एक दुर्ग रूपी छत्रछाया प्रदान करती है।

लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें अपने शत्रुओं से तभी मुक्ति मिलती है जब हम उन्हें पहचान लेते हैं। इसलिए जरूरत इस बात को समझने और स्वीकार करने की है कि यह आज का ही नहीं बल्कि आनादि काल का शाश्वत सत्य है कि हमारे सबसे बड़े शत्रु हमारे ही भीतर होते हैं। दरअसल हर व्यक्ति के भीतर दो प्रकार की प्रवृत्तियाँ होती हैं, एक आसुरी और दूसरी दैवीय। यह घड़ी होती है अपने भीतर एक दिव्य ज्योति जलाकर उस शक्ति का आह्वान करने की जिससे हमारे भीतर की दैवीय शक्तियों का विकास हो और आसुरी प्रवृतियों का नाश हो।

माँ ने जिस प्रकार दुर्गा का रूप धर कर महिषासुर, धूम्रलोचन, चंड मुंड, शुभ निशुंभ, मधु कैटभ, जैसे राक्षसों का नाश किया, उसी प्रकार हमें भी अपनी भीतर पलने वाले आलस्य, क्रोध, लालच, अहंकार, मोह, ईर्ष्या,  द्वेष जैसे राक्षसों का नाश करना चाहिए। नवरात्रि वो समय होता है जब यज्ञ की अग्नि की ज्वाला से हम अपने अन्दर के अन्धकार को मिटाने के लिए वो ज्वाला जगाएँ जिसकी लौ में हमारे भीतर पलने वाले सभी राक्षसों का, हमारे असली शत्रुओं का नाश हो।

यह समय होता है स्वयं को निर्मल और स्वच्छ करके माँ का आशीर्वाद लेने का।

यह समय होता है नव वर्ष के आरंभ के साथ नई ऊर्जा के साथ एक नई शुरुआत करने का।

यह समय होता है स्वयं पर विजय प्राप्त करने का।

डॉ. नीलम महेंद्र

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